हम ईश्वर को यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ ढूँढ़ते फिरते हैं, लेकिन अपने भीतर
झाँककर नहीं देखते... हमारा ईश्वर तो हमारे भीतर ही हमारी आत्मा के रूप में
विराजमान है... प्रकृति के हर कण में... हर चराचर में ईश्वर विद्यमान है... जिस
दिन उस ईश्वर के दर्शन कर लिए उस दिन से उसे कहीं ढूँढने की आवश्यकता नहीं रह
जाएगी... कुछ इसी प्रकार के उलझे सुलझे भाव हैं हमारी आज की इस रचना में... मैंने
तो बस तुझे पुकारा... रचना सुनने के लिए कृपया वीडियो देखें... कात्यायनी...