*कभी सोचा नहीं था,*
*ऐसे भी दिन आएँगें।* ....
*कल तक पैसे की हवा थी साहब*
*आज हवा के पैसे हैं*....
*छुट्टियाँ तो होंगी पर,*
*मना नहीं पाएँगे ।*
*आइसक्रीम का मौसम होगा,*
*पर खा नहीं पाएँगे ।*
*रास्ते खुले होंगे पर,*
*कहीं जा नहीं पाएँगे।*
*जो दूर रह गए उन्हें,*
*बुला भी नहीं पाएँगे।*
*और जो पास हैं उनसे,*
*हाथ मिला नहीं पाएँगे।*
*जो घर लौटने की राह देखते थे,*
*वो घर में ही बंद हो जाएँगे।*
*जिनके साथ वक़्त बिताने को*
*तरसते थे,उनसे ऊब जाएँगें।*
*क्या है तारीख़ कौन सा*
*वार,ये भी भूल जाएँगे।*
*कैलेंडर हो जाएँगें बेमानी,*
*बस यूँ ही दिन-रात बिताएँगे।*
*साफ़ हो जाएगी हवा पर,*
*चैन की साँस न ले पाएँगे।*
*नहीं दिखेगी कोई मुस्कराहट,*
*चेहरे मास्क से ढक जाएँगें।*
*ख़ुद को समझते थे बादशाह,*
*वो मदद को हाथ फैलाएँगे।*
*क्या सोचा था कभी,*
*ऐसे दिन भी आएंगे।।*....