*नफरत* खुलकर और *मुहब्बत* छिपकर करते हैं,
हम अपनी ही बनाई *दुनियाँ* से कितना डरते हैं,,,!!
उम्मीदें *तैरती* रहती हैं *कशतिया* डूब जाती हैं,
कुछ घर *सलामत* रहते हैं, *आंधिया* जब भी आती है,
बचा ले जो *हर-तूफान* से उसे *आश* कहते हैं
बड़ा *मजबूत* यह *धागा* जिसे *विश्वास* कहते हैं,,,!!!
*कश्तियाँ* डूब जाती हैं *तूफान* में,पर
*हस्तियॉं* डूब जाती हैं *अभिमान* में,
बाहर *रिशतों* का मेला है, *भीतर* हर *शख्स* अकेला है,
यही *जिन्दगी* का *झमेला* है,,,,!!!
*भावनाएँ* ही तो हैं जो दूर रहकर भी अपनों की *नजदीकियों* का *अहसास* कराती हैं,
वरना *दूरी* तो दोनों *आँखों* के बीच भी है,,,!!!
एक *इन्सान* दो चीजों से बनता है,एक तो *किस्मत* से और दूसरा *मेहनत* से ,
*किस्मत* सबकी होती नहीं और *मेहनत* सबसे होती नहीं,,,!!!
*सम्बन्ध* बड़ी-बड़ी *बातें* करने से नहीं,
छोट-छोटे *भाव* को समझने से *गहरे* होते हैं,,,!!
*जिन्दगी* में दो *शब्द* कहने से काफी *मुश्य्किलें* होती है,
एक *दुआ* दूसरा *अलविदा*,,,!!!
इस *खोज* में न *उलझें* कि *भगवान* हैं या नहीं,
*खोज* यह रखें कि आप खुद *इन्सान* हैं या नहीं,,!!!
*सम्भल* कर रहें ऐसे लोगों से ,
जिनके *दिल* में भी *दिमाग* है ,,,,!!