अपने अन्दर का बचपना हमेशा जिन्दा रखें ,
क्योंकि ज्यादा समझदारी जिन्दगी को नीरस बना देती है,,,!
जितनी जरुरत है उतना ही बोलिए क्यो कि जैसे, नमक खाने में ज्यादा या कम हो जाये तो स्वाद बिगड़ जाता है,,, !!
पहला चरण,दुसरा चरण और तीसरा चरण छोडिये,,,
केवल प्रभु के दो चरणों पर विश्वास रखिये,
और अपने चरणों को घर पर ही रखिये,,!!
दोस्त हमदर्द होने चाहिए,
दर्द देने के लिए तो सारी दुनियाँ तैयार है,,!!
सदियों पहले लिखा गया था घर-एक-मंदिर है,
आज यही मंदिर हमारी ढाल बनी हुई है,
अत:इस मंदिर में बने रहें और सुरक्षित रहें,,!!!
पानी के लिये जब घडे थे,हम बीमारी से दुर खडे थे,
अब हमारे पास ओरो है और बीमारियाँ हजारों हैं,,,!
सिर्फ दरवाजों पर शुभ-लाभ लिखने से कुछ नहीं होगा,
शुभ-विचार रखिये अपने लिए भी और दूसरोँ के लिये भी,,,!
अहंकार मन को खा जाता है,
प्रायश्चित पाप को खा जाता है,
लालच धर्म को खा जाता है,
और चिन्ता आयु को खा जाती है,,!!
जब इन्सान का स्वार्थ पुरा हो जाता है तो वह आपसे मिलना तो दूर,
आपसे बोलना भी छोड देता है,,!!
मिले हुए समय को ही अच्छा बनाएं,
अगर अच्छे-समय की राह द्खेंगे तो पूरा जीवन कम पड़ जायेगा,,!!