*सुनो कान्हा !*
*चरण में रखना, शरण में रखना।*
*हरदम तेरी ही लगन में रखना...*
*सुख के उजाले हों, दु:ख के अँधेरे।*
*जो भी हो हरदम, मगन में रखना...*
*साँसों की माला, सिमरण के मोती।*
*मन नहीं भटके, जपन में रखना...*
*पलकें जो मूंदूँ, तेरे हों दर्शन।*
*हरदम इसी, तड़पन में रखना...*
*शून्य गगन में, दृष्टि न डोले।*
*धारों को ऐसे, मिलन में रखना...*
*कान्हा तू पुकारे, नित धुर घर से।*
*तार न छूटे, भजन में रखना...*
*सुनिए विनय कान्हा, दीन हृदय की ।*
*"दास" को अपनी, शरण में रखना...*