यह शरीर भी क्या है , ..
अभी मरा ,
जलाया फिर उसकी राख रखने में
भी डर लगता है।
कहते है सीधे दरिया में डाल दो ..लेकिन ऐसे शरीर का अभिमान कितना है !
पढाई का ,घर का , पैसे का , सुंदरता का नशा कितना दिखाते हैं
परन्तु यह सब है नाशवान ..
मै कौन हूँ , मेरा कौन है ,
यह समझाकर भगवान ने अंदर की आँखे खोल दी हैं।
वास्तव में न कोई मेरा है ,
न कोई मेरी है
और न कोई तेरा है ,न तेरी है।
एकाग्रता की शक्ति से बुद्धि को स्थिर बनाना है।
भगवान कहते हैं ...
अपने ऊपर ध्यान दो ,
जिनके लिये सोचते हो ,
चिंता करते हो ,
उनको आपकी ज़रूरत नही है।
भले आप उनकी चिंता में मर जाओ ,
कहेंगे फ़ालतू चिंता करते हैं ,
हमें जो करना है ,हम करेंगे ,
ऐसे में क्यों किसी की चिंता करनी है
सबका पार्ट अपना अपना है।
सब ड्रामा में नूँध है ।
बस भगवान की श्रीमत पर चलकर अपने को स्वर्ग लायक बनाओ ।
भगवान् के बच्चे बनकर रहोगे तो बचे रहोगे ।
अन्यथा या तो ..
भक्त की तरह भटकते रहोगे
या चेलों की तरह चिल्लाते रहोगे ।
इसी लिए भगवान् ने वर्तमान और भविष्य आपके हाथ में दिया है
इसे जैसा चाहो बना लो ।
नर ऐसी करनी कर चले
जो नर से नारायण और
नारी से लक्ष्मी बन जाये ।