*स्वरचित...*
*तेरी यादों में खोकर....*
तेरी यादों में खोकर ठोकर भी लगें
तो हे गोविन्द मुझे क्या गिला
तू नहीं मिले इस जग में आकर
तो जग मिलके भी मुझे क्या मिला
तू ही बता इन जमाने भर के जख्मों को
कहाँ तक छुपाऊँ किसे जाकर बताऊं...
राहों में दुख मिलते हैं मिला करें
पर जब तेरी याद आती हैं
दिल को रुला रुला जाती हैं
क्या इसी को प्रेम कहते हैं ?
जो याद का एक अनोखा
फूल सा खिला खिला जाती हैं..
तेरा मेरा कई जन्मों पुराना नाता है
तभी तो ऐसा होता है मेरे कान्हा
कि ये तेरी याद जब भी आती है
मेरे दिल के तारों को हिला जाती हैं
मेरा इसमें कोई कसूर हो तो बताना
कैसे पाऊं तुम्हें मुझे कुछ तो समझाना..
आ जाना कभी मेरे घर, यह सूरज है
संध्या होगी, यह भी क्षितिज में जा ढलेगा
मिट्टी का खिलौना है, टूटेगा फूटेगा, मिट जाएगा
और फिर चिता की आग पर जल जाएगा
परन्तु मोहन तेरा मेरा नाता अमर है अनादि है
यह एक दिन तुम में ही खो जाएगा..