*पता ही नहीं चला
अरे यारों कब साठ के हो गये
पता ही नहीं चला।
कैसे कटा 21 से 61 तक का यह सफ़र
पता ही नहीं चला
क्या पाया क्या खोया क्यों खोया
पता ही नहीं चला
बीता बचपन गई जवानी कब आया बुढ़ापा
पता ही नहीं चला
कल बेटे थे आज ससुर हो गये
पता ही नहीं चला
कब पापा से नानु बन गये
पता ही नहीं चला
कोई कहता सठिया गये कोई कहता छा गये
क्या सच है
पता ही नहीं चला
पहले माँ बाप की चली फिर बीवी की चली
अपनी कब चली
पता ही नहीं चला
बीवी कहती अब तो समझ जाओ
क्या समझूँ क्या न समझूँ न जाने क्यों
पता ही नहीं चला
दिल कहता जवान हु मैं उम्र कहती नादान हुं मैं
इसी चक्कर में कब घुटनें घिस गये
पता ही नहीं चला
लग गया चश्मा
कब बदलीं यह सूरत
पता ही नहीं चला
मैं ही बदला या बदले मेरे यार
या समय भी बदला
कितने छूट गये कितने रह गये यार
पता ही नहीं चला
कल तक अठखेलियाँ करते थे यारों के साथ
आज सीनियर सिटिज़न हो गये
पता ही नहीं चला
अभी तो जीना सीखा है कब समझ आई
पता ही नहीं चला
न दफ़्तर न कोई बोस न काम न कोई बोझ
कब हुए आज़ाद
पता ही नहीं चला
आदर सम्मान प्रेम और प्यार
वाह वाह करती कब आई ज़िन्दगी
पता ही नहीं चला
बहु जमाईं नाते पोते ख़ुशियाँ लाये ख़ुशियाँ आई
कब मुस्कुराई उदास ज़िन्दगी y
पता ही नहीं चला
जी भर के जी ले प्यारे फिर न कहना
मुझे पता ही नहीं चला।*