चित्रा, कोई भी त्यौहार हो बड़े जोर -शोर से तैयारी करती है ,अब तो उसके सुहाग का त्यौहार ''करवा चौथ ''आ रहा है। आज बाजार गयी और नये कपडे ,शृंगार का सामान ,साथ ही बच्चों के कपड़े भी ले आई .बड़े उत्साह से घर का सभी कार्य कर रही है। बेटी के लिए भी उसके 'सिंधारे 'का सामान ले आई। तभी बेटी को फोन लगाया और उसे एक -एक सामान के विषय में बताया और उससे आजकल चलन में क्या है ?कुछ इस तरह की बातें की। चित्रा इतना सब हर वर्ष करती है ,जब बेटी का विवाह नहीं हुआ था ,तब भी दोनों माँ -बेटी बाजार चल देती थीं । वो उसकी बेटी ही नहीं ,उसकी दोस्त जो हो गयी थी ,दोनों ही एक -दूसरे की उम्र और उस समय को घ्यान में रखते हुए ,एक -दूसरे के लिए कपड़े से लेकर साज -सज्जा तक के सामान का ख़्याल रखती थीं।
ये सब रौनक उसकी बेटी के कारण ही आयी। चित्रा हमेशा से ही ऐसी नहीं थी ,वो तो सीधी -सरल थी ,अपने से पहले दूसरों की भावनाओं का ध्यान रखती थी। किन्तु उसकी ज़िंदगी की कुछ कड़वाहट थी ,जो उसे हिला गयी। वो अकेली उस कड़वाहट को पीकर ,उसे साथ लिए जीती रही ,उस कड़वाहट का असर उसने अपने चेहरे पर नहीं आने दिया किन्तु जब भी ''करवा चौथ ;;आती उस कड़वाहट को साथ लाती।
आज भी उसे वो दिन रह -रहकर याद आते हैं ,जब उसका विवाह नवीन से हुआ ,न जाने कितने अरमानों को सजाये ,उसने अपनी ससुराल में क़दम रखा। नवीन तो स्वभाव में व्यवहारिक ,हँसमुख होने के साथ ही, अपनी माता जी के नज़दीक ,विवाह से पहले ही माँ ने अपने बेटे से वचन ले लिया था ,या यूँ कहो ,उसे समझा दिया था कि बेटे बहु के आने पर बदल जाते हैं। एक तरह से ये भी कह सकते हैं ,माँ बहु को तो लाना चाहती है किन्तु साथ ही ,अपने को असुरक्षित महसूस करती हैं और बातों ही बातों में बेटे को अप्रत्यक्ष रूप से उसकी होने वाली पत्नी के विरुद्ध करती हैं ,जैसे -अब तो माँ की बातें कहाँ अच्छी लगेंगी ?अब तो कल की आयी बहु ही, सर्वोपरी होगी ,उसकी बातें ही मानी जाएँगी। नवीन की मम्मी भी इसी तरह की बातों से नवीन के मन को टटोलतीं। तब नवीन हंसकर कह देता- देखना मम्मी !मैं नहीं बदलूंगा ,वो भी आपकी सेवा करेगी। नवीन की बातों से उसकी मम्मी संतुष्ट हो जाती। माँ की एक तरफ तो इच्छा होती है कि उसका समय से विवाह हो जाये ,उसका घर बस जाये किन्तु आने वाली बहु पर आधिपत्य जताना चाहती है ,उस बहु की अपनी कोई इच्छा नहीं होनी चाहिए बल्कि सास के इशारों पर चले। जिधर घुमाये उधर घूमे ,जिधर चलाये उधर चले, इससे उसका अहम संतुष्ट होता है। उसकी असुरक्षा की भावना को बल मिलता है किन्तु ये नहीं सोचती कि ये दूसरे घर से आई है ,इसकी भी कुछ भावनायें अथवा इच्छा होंगी।
चित्रा की सास भी इसी तरह की ही थी ,उसने नवीन को आने वाली दूसरे घर की लड़की से जुड़ने, नहीं दिया बल्कि ऐसा वातावरण बनाया ताकि उस पर नवीन का विश्वास न बढे ,प्यार करने या उनको नज़दीक आने से पहले ही, घर में किसी न किसी बात पर क्लेश हो जाता। जबरदस्ती चित्रा के काम में कोई न कोई कमी निकालकर उसे अपने बेटे की नजरों में नीचा दिखाने का प्रयत्न करती। नवीन चित्रा के काम और उसकी मेहनत को देखते हुए ,उसे समझाने का प्रयत्न करता ,कहता- जैसा मम्मी कह रही हैं ,उनके अनुसार चलने में क्या जाता है ?तब चित्रा उसे समझाने का प्रयत्न करती, उसे हर परिस्थिति से अवगत कराती ,नवीन उसकी बातें सुनता अवश्य ,किन्तु बाद में परिणाम शून्य ही आता और कहता -जैसा वो कहती हैं ,वही करने में तुम्हारा क्या जाता है ?उसे पता था कि मैं सही हूँ किन्तु मुझे वो बेबस नजर आता और मैं भी उसमें उस इंसान को ढूंढने का प्रयत्न करती जो सही के लिए मेरे साथ खड़ा हो, किन्तु चित्रा ने कभी उसे अपने साथ खड़ा नहीं पाया। उसे लगता ,नवीन प्यार भी करता है या नहीं ,क्योकि उसके किसी भी व्यवहार से नहीं लगता था कि वो उसे प्यार भी करता है। चित्रा ने अपनी माँ से भी कई बार बातें कीं किन्तु वो भी ठहरीं ,पुराने विचारों कीं ,'पुरातन पंथी' ,बोलीं -समाज में चार लोगों को पता चलेगा तो क्या कहेंगे ?मिश्रा जी की बेटी अपनी ससुराल में नहीं टिक पाई। आगे छोटे बहन -भाइयों के रिश्तों में दिक्क़त आयेगी। बर्दाश्त करना सीखो ,धैर्य से काम लो ,सब ठीक ही होगा।
इन बातों और व्यवहार से तो चित्रा पहले से ही आहत थी ,अब तो अनाहिता ने भी उसके जीवन में प्रवेश किया। वो उसके पेट में थी ,चित्रा की उन दिनों तबियत खराब रहती ,शरीर के अंदर अजीब सी बेचैनी रहती ,चित्रा नवीन से बोली -मुझे डॉक्टर के दिखा दो ,तो सास ने कुछ नहीं कहा ,तो नवीन भी उसे लेकर नहीं गए ,जब तक की माँ ने नहीं कहा और वो कहती- कि सब काम न करने के चोंचले हैं, जिससे घर का काम न करना पड़े।इसी तरह दिन कट रहे थे। छह माह बीत जाने पर ,अब थोड़ा वो सम्भल रही थी ,तभी त्योहारों के दिन आ गए जिनमें से एक त्यौहार 'करवा चौथ 'भी था। चित्रा की मम्मी ने कहा -ऐसी हालत में व्रत नहीं रखना किन्तु सास ने कहा -क्यों नहीं रखना चाहिए ?सालभर का त्यौहार है ,एक दिन व्रत रख लेगी तो कुछ नहीं होगा। चित्रा ने अपनी माँ की बातों को नजरअंदाज कर ,व्रत रखने का निर्णय लिया ,न रखने पर उसे अंदाजा था कि त्योेहार में ,घर में क्या हो सकता है ?वो क्लेश का कारण नहीं बनना चाहती थी। माँ कहती थी ,कि जब बच्चे का घरवालों को पता चलेगा तो सबके व्यवहार बदल जायेंगे किन्तु चित्रा के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ ,जैसा कि चलचित्रों में दिखाते हैं ,घर में सभी प्रसन्न होते हैं ,ससुर बहु के लिए, उसके खाने के लिए ,उसके पसंद की चीजें लाते हैं ,पति अपनी पत्नी को ख़ुशी में गोद में उठा लेता है। सास कहती है -बहु, तुम अब ज्यादा काम मत करो ,आराम करो और वो बहु सबकी दुलारी बन जाती है। घर में चारों ओर सकारात्मक वातावरण होता है ,किन्तु ये सब चित्रा के कभी न पूर्ण होने वाले सपने थे। जब उसके घर में पता चला तो सास का एक तीर उसकी तरफ तेजी से आया ,इसे इतनी भी अक़्ल नहीं ,इसे बग़ैर डॉक्टर के पता ही नहीं चला कि ये गर्भवती है ,बेकार में डॉक्टर के पैसे भरवा दिए। पति प्रतिदिन की तरह अपने काम पर ,किसी में कहीं भी कोई बदलाव नहीं था बल्कि सास को कहते सुना -ये कोई अनोखा काम कर रही है ,दुनिया के बच्चे होते हैं। एक दिन तो जब वो सुबह उठी ,सास अपने पति यानि ससुर से कुछ कह रही थी। वो जल्दी से अपने काम निपटाने लगी ,तब ससुर ने नवीन से कहा -भई ?ये कैसे बच्चे होंगे जो सुबह के नाश्ते को भी देर हो गयी।नवीन बोला -रात में इसे थोड़ी दिक्क़त थी इसीलिए देरी से आँख खुली। तब ससुर कहते हैं ,इसके कौन सा अजूबा हो रहा है ?गांव में तो खेतों में बच्चे हो जाते हैं और काम में लगी रहती हैं ,इन्हें इतनी सुविधा मिली है तो नखरे ही हो रहे हैं। घर में एक भी सदस्य ऐसा नहीं जो सास की सोच के विपरीत चला जाये क्योंकि हर कोई गृह क्लेश से बचना चाहता था ,जानते हुए भी कि जो हो रहा है ग़लत है, फिर भी सब चुप थे।
एक दिन चित्रा ने परेशान होकर अपनी सास से कह ही दिया ,जब आपको इतनी ही परेशानी थी तो आपको अपने लड़के का विवाह ही नहीं करना चाहिए था।नवीन से मेरे लिए तो वायदा ले लिया कि बहु आकर सेवा करेगी जिन्हें मैं अब भी ठीक से जानती नहीं ,नवीन ने अपनी माँ से कोई वायदा क्यों नहीं लिया? कि मेरी पत्नी से अच्छा व्यवहार करना। सास ने उस समय तो कुछ नहीं कहा और चुपचाप पता नहीं, क्या सोचकर अपने कार्य में लगी रहीं। तीन दिन बाद ''करवा चौथ ''था ,चित्रा के घर से खूब सारा सामान आया ,उसके लिए साड़ी ,शृंगार का सामान इत्यादि। चित्रा भी भूल गयी कि उसकी सास और उसके बीच क्या बात हुई ?रात को उसने मेहँदी लगाई ,सुबह के लिए तैयारी पहले ही करके रख ली थी ,उसके छटवें माह की आख़िरी तारीख़ थी ,डॉक्टर ने उसे ख़ाली पेट रहने के लिए मना किया था। रात के पश्चात उसे भूख लगती थी उसने कुछ न खाकर एक कप चाय माँगी क्योंकि बिना नहाये वो रसोईघर में नहीं घुस सकती थी किन्तु सास ने सुनकर भी ,नहीं सुना। चित्रा को परेशानी हो रही थी ,उसने स्वयं जाकर चाय बना ली। उसे देखकर उसकी सास ने जो शोर मचाया ,वो शब्द आज तक भी उसके कानों में गूंजते हैं। बोलीं -ये देखो ,ये त्यौहार में अशुभ कर दिया ,ये तो मेरे बेटे का बुरा चाहती है ,सुबह से ही चाय गटकने बैठ गयी और जोर -जोर से रोने लगी और कहने लगी -अरे मुझे कहती है, कि बेटे का विवाह क्यों किया ?मैं क्या बुरा चाहूँगी ,मैं तो इन लोगों की दुश्मन हो गयी। ये तो मुझे मिलकर घर से निकाल देना चाहते हैं। मैं किसी को क्या कहूंगी ,मुझे तो दो रोटी खानी हैं ,वो भी ठीक से नहीं मिलतीं। इतना शोर सुनकर ,पति का चेहरा लटक गया , दो दिन से वो भी प्रसन्न नजर आ रहे थे। चित्रा उस चाय को कैसे पी पाती ?वो चाय नाली में गयी। चित्रा ने सास से क्षमा याचना की और वो समझ गयी थी कि ये मौक़े की तलाश में थीं और आज मौका मिल गया , बदला ले लिया। चित्रा ने भरसक प्रयत्न किया कि घर का वातावरण पूर्ववत हो जाये ,किन्तु सास को जब भी लगता कि ये दोनों नजदीक आ रहे हैं ,कुछ न कुछ प्रपंच कर ही डालती। आज भी यही हुआ ,चित्रा ने नवीन को समझाने का प्रयत्न किया किन्तु नवीन ने ये कहकर उस त्यौहार में कड़वाहट घोल दी ''मैं मनाऊँगा ,तेरी'' करवा चौथ '' उस दिन पूरे दिन नवीन बाहर रहा ,माँ ने पहले कुछ खाया और तब चित्रा दिया कोई और परिस्थिति होती तो चित्रा नहीं खाती किन्तु अपने बच्चे के लिए ,खून के से घूंट पीकर रह गयी। रात को भी नवीन ने अपनी माँ के पास ही अपनी चारपाई बिछा ली।
पूरी रात चित्रा ने रोते हुए काटी ,ये उसकी दूसरी, ससुराल में पहली ''करवा चौथ ''थी जिसकी कड़वाहट उसे आज तक नहीं भूली। उसके बाद कई ''करवा चौथ ''आई और गयीं किन्तु वो कड़वाहट वो भुलाये नहीं भूलती। हर बरस एक टीस सी उभरती है फिर भी वो अपने रीति -रिवाज़ और संस्कार निभाती है क्योंकि ये रिश्ते हमें बुरे अनुभव अवश्य दे जाते हैं किन्तु ये रिश्ते बुरे नहीं होते वरन उस रिश्ते की गरिमा को न समझने वाला इंसान बुरा होता है। हमारी ज़िंदगी में गिने -चुने रिश्ते ही तो होते हैं ,माता -पिता, भाई -बहन। ससुराल में सास -ससुर और पति ,ननद अथवा देवर। इनमें से कोई भी रिश्ता बुरा नहीं है किन्तु उस रिश्ते को निभाने वाला व्यक्ति, उस रिश्ते के लायक है या नहीं ,ये पहचानना मुश्किल हो जाता है। उसने अपनी बेटी को कभी सास के प्रति भड़काया अथवा उसके विपरीत कुछ नहीं कहा क्योंकि उसका मानना है ,सास रूपी रिश्ते को अथवा किसी भी रिश्ते को पहले से ही हम जाँच -परख नहीं सकते। इसी सोच के चलते उसने अपनी बेटी को विदा किया और परिणामतः उसकी बेटी और बेटी की सास, माँ -बेटी की तरह अपने रिश्ते को निभा रही हैं। ये तो रिश्तों की आपसी समझदारी है कि कौन सा रिश्ता ,कितनी दूर तक जाता है ?ये तो आवश्यक नहीं कि जो कटु अनुभव चित्रा को हुए हों वो सभी को हों।