ख़ामोश होने से पहले
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ख़ामोश होने से पहले हमने
देखा है दोस्त, टूटते अरमानों
और दिलों को, सर्द निगाहों को
सिसकियों भरे कंपकपाते लबों को
और फिर उस आखिरी पुकार को
रहम के लिये गिड़गिड़ाते जुबां को
बदले में मिले उस तिरस्कार को
अपनो से दूर एकान्तवास को
गिरते स्वास्थ्य ,भूख और प्यास को
सहा है मैंने , मित्रता के आघात को
पाप-पुण्य के तराजू पे,तौलता खुद को
मौन रह कर भी पुकारा था , तुमको
सिर्फ अपनी निर्दोषता बताने के लिये
सोचा था जन्मदिन पर तुम करोगे याद
ढेरों शुभकामनाओं के मध्य टूटी ये आस
ख़ामोशी बनी मीत,जब कोई न था साथ
दर्द अकेले सहा ,नहीं था कोई आसपास
चलो अच्छा हुआ तुम भी न समझे मुझको
अंधेरे से दोस्ती की ,दीपक जलाऊँ क्यों !!
- व्याकुल पथिक
जीवन की पाठशाला
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व्याकुल पथिक:
मानव जीवन की वेदनाओं को समेटी हुईंं मेरी रचनाएँ अनुभूतियों पर आधारित हैं। हृदय में जमा यही बूँद-बूँद दर्द मानव की मानसमणि है । यह दुःख ही जीवन का सबसे बड़ा रस है,सबको मांजता है,सबको परखता है।अतः पथिक को जीवन की इस धूप-छाँव से क्या घबड़ाना, हँसते-हँसते सह लो सब ।
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व्याकुल पथिक:
मानव जीवन की वेदनाओं को समेटी हुईंं मेरी रचनाएँ अनुभूतियों पर आधारित हैं। हृदय में जमा यही बूँद-बूँद दर्द मानव की मानसमणि है । यह दुःख ही जीवन का सबसे बड़ा रस है,सबको मांजता है,सबको परखता है।अतः पथिक को जीवन की इस धूप-छाँव से क्या घबड़ाना, हँसते-हँसते सह लो सब ।
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व्याकुल पथिक:
मानव जीवन की वेदनाओं को समेटी हुईंं मेरी रचनाएँ अनुभूतियों पर आधारित हैं। हृदय में जमा यही बूँद-बूँद दर्द मानव की मानसमणि है । यह दुःख ही जीवन का सबसे बड़ा रस है,सबको मांजता है,सबको परखता है।अतः पथिक को जीवन की इस धूप-छाँव से क्या घबड़ाना, हँसते-हँसते सह लो सब ।
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व्याकुल पथिक:
मानव जीवन की वेदनाओं को समेटी हुईंं मेरी रचनाएँ अनुभूतियों पर आधारित हैं। हृदय में जमा यही बूँद-बूँद दर्द मानव की मानसमणि है । यह दुःख ही जीवन का सबसे बड़ा रस है,सबको मांजता है,सबको परखता है।अतः पथिक को जीवन की इस धूप-छाँव से क्या घबड़ाना, हँसते-हँसते सह लो सब ।
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