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गुजरा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा, हाफ़िज़ खुदा तुम्हारा

1 अक्टूबर 2018

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गुज़रा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा , हाफ़िज़ खुदा तुम्हारा

********************************

आज रविवार का दिन मेरे आत्ममंथन का होता है। बंद कमरे में, इस तन्हाई में उजाला तलाश रहा हूँ। सोच रहा हूँ कि यह मन भी कैसा है , जख्मी हो हो कर भी गैरों से स्नेह करते रहा है।

*******************************


मेरे टूटे हुए दिल से कोई तो आज ये पूछे

के तेरा हाल क्या है

किस्मत तेरी रीत निराली, ओ छलिये को छलने वाली

फूल खिला तो टूटी डाली

जिसे उलफ़त समझ बैठा, मेरी नज़रों का धोखा था

किसी की क्या खता है ...


अभी कल ही मैंने अपने इस नादान मन से एक बार फिर से यह प्रश्न पूछा था कि जब तुम्हारी मंजिल उस वैराग्य की खोज है, जहाँ न किसी रिश्ते नाते की डोर है । अकेला आया था और अकेला जाना है,तो फिर किस प्रपंच में जा फंसा है। क्यों सामाजिक सारोकारों को उठा रहा है। अपने दर्द को यूँ खोल रहा है। जो राज वर्षों तक इस नाजुक मन को जख्मी करता रहा है, उन संस्मरणों को क्यों न दफन कर दे रहा है। दुनिया का तमाशा यूँ ही चलता रहेगा प्यारे ! तू क्यों बावला बना डोल रहा है रे मन !!

अब कौन यहाँ है तेरा , फिर क्यों है किसी का इंतजार। आने वाले को सलाम बोल ओर जाने वाले को खुदा हाफिज , क्यों कि हे मन..


गुज़रा हुआ ज़माना, आता नहीं दुबारा

हाफ़िज़ खुदा तुम्हारा

खुशियाँ थीं चार पल की आँसू हैं उम्र भर के

तन्हाइयों में अक़्सर रोएंगे याद कर के

दो वक़्त जो कि हमने इक साथ है गुज़ारा

हाफ़िज़ ...


ढ़ाई दशकों तक राजनीति पर लिखा, अपराध जगत पर लिखा। कितनों को पसंद आया तो कितनों ने बुरा भी माना । पर वह तुम्हारा पेशा था, रोजी रोटी का जरिया था। आज भी मित्रगण चाहते हैं कि तू ब्लॉग पर देश दुनिया के हालात पर लिख, पत्रकारिता के अपने अनुभवों से इस ब्लॉग की उपयोगिता को सार्थक कर। आखिर में मैं अपने विषय से क्यों भटक गया यहाँ आकर । क्यों इस समाज में एक नन्हा सा दीपक बनने को रे मन तू यूँ मचल रहा है, जब कि यहाँ नहीं कहीं तेरा ठिकाना है।

आज रविवार का दिन सदैव मेरे आत्ममंथन का होता है। सो, मुकेश के गाये इस गीत का रहस्य सुलझा रहा हूँ-


दुनिया बनाने वाले, क्या तेरे मन में समाई

काहेको दुनिया बनाई, तूने काहेको दुनिया बनाई

काहे बनाए तूने माटी के पुतले,

धरती ये प्यारी प्यारी मुखड़े ये उजले

काहे बनाया तूने दुनिया का खेला

जिसमें लगाया जवानी का मेला ...


बंद कमरे में, इस तन्हाई में उजाला तलाश रहा हूँ। सोच रहा हूँ कि यह मन भी कैसा है , जख्मी हो हो कर भी गैरों से स्नेह करते रहा है। दो बातें किसी ने क्या कर ली, उसे अपना मीत सा समझ लेता है। वर्षों गुजर गये मनमीत को लेकर क्यों कल्पनाओं में खोया- खोया सा रहा। भृतहरि सा वैराग्य क्यों तेरे मन में तब ना आया और अब तूँ , उन्हीं विषयों को उठा रहा है, एक टूटे हुये दर्पण को चूर-चूर कर रहा है। यह ठीक है कि तुझे किताबी धर्म नहींं सिर्फ कर्म में आस्था है। फिर मन की किताब के पन्ने क्यूँ बार बार पलट रहा है। वैराग्य धारण कर क्यों नहीं उस निर्वाण को प्राप्त कर रहा है। जो कब से तेरे द्वार पर दस्तक दे रहा है। तूने क्यों इसे भी छोड़ रखा है, खुद को सामाजिक भावनाओं से जोड़ रखा है। यादों की जंजीर पहने डोल रहा है,जरा सोच फिर कैसे मंजिल तेरे करीब आएगी। बचपन से ही तू एक चिन्तक रहा। दर्जा पांच में जब था, तभी मृत्यु भय से साक्षात्कार हुआ था। फिर दो वर्ष बाद ही अपनी प्यारी माँ की अर्थी लेकर निकला था। कोलकाता का वह महा श्मशान आज भी तुम्हें याद है। सोच जरा कोलकाता में पड़ोस वाले कमरे का बारजा तुझे याद है न, माँ की मौत पर तब तक वहाँ खड़ा अनंत को निहारता रहा, जब तक तुझे जबरन बनारस ना भेजा गया। जहाँ से तेरी बर्बादी की कहानी शुरू क्या हुई , नगरी- नगरी भटकता ही रहा है। अब तो तू इस बंद कमरे का द्वार खोल वैराग्य की किरणों से अपनी कोमल मन की उन सारी भावनाओं को झुलसा दें। न कहीं तू आता है, ना जाता है, न ही कहीं तू कुछ खाता है। जब जैनियों सा तेरा भोजन है,परिग्रह का लोभ न है, फिर क्यों नहीं ब्लॉग पर अंतिम हस्ताक्षर कर उस महानिर्वाण का सुख पाता है। इस अनंत की ओर तो जरा देख जहाँ तेरे अपने हैं , एक मनमीत को छोड़ दे , तो वहाँ तेरे सपने हैं। वहाँ न तुझे सिर दर्द की दवा चाहिए, ना ही नींद की गोली, इस अंधकार भरे कमरे में न हँसी न ठिठोली है, पर वहाँ तो हर वक्त उजाला है। रे हंसा प्यारे ! यह दुनिया का मेला है। मेले में तू बिल्कुल अकेला है। हाँ , यह तमन्ना जरूर है, तेरी कि तू किसी के काम आ सके। पर व्हाट्सएप्प का स्टेटस बदले से क्या तेरा अकेलापन दूर हो जाएगा। फिर से सोच रे पागल मन कहीं तूने कुछ झूठ तो न लिख डाला । इस पवित्र पुस्तक को बदरंग करने से पहले चल चला चल मेरे यार । अब तेरा इस जहां पर कुछ भी कार्य तो शेष नहीं बचा । जब तक रहा सिर उठा के जिया है, पहचान और सम्मान भी पा लिया है । पटरियों पर गुजरी रात या महल में, पकवान मिले भोजन में या लोटा भर जल ही पिया है । हाथ तेरे कभी न फैले थें किसी के सामने, परंतु किसी अपने की चाहत में तू गिरता गया, झुकता गया, टूटता गया, लूटता गया। फिर इस नगमे से कब और कैसे तेरा रिश्ता हो गया -


घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं

कभी इस पग में कभी उस पग में

बँधता ही रहा हूँ मैं

घुँघरू की तरह ...

कभी टूट गया कभी तोड़ा गया

सौ बार मुझे फिर जोड़ा गया

यूँ ही टूट-टूट के, फिर जुट-जुट के

बजता ही रहा हूँ मैं...


बस तेरी यही कहानी है, न वंश ना ही जिंदगानी है। पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नबाब, यह ख्वाहिश तेरे मन में भी लायी गयी थी बचपन में , पर तू तो " यतीम " बना दर दर भटक रहा है। रंगमंच पर अपने उस आदर्श पुरुष " जोकर " सा अभिनय कर रहा है। आज शरीर साथ दे रहा है, तो दलिया बना ले रहा है, कल को रोटी जब न बना पाया तो क्या करेगा प्यारे । तूने अपना बैग हमेशा तैयार रखा है ,जैसे एक लम्बे सफर पर निकला है । तो फिर से ये मन क्यों भटक रहा है , जब न कोई साथी न बसेरा है। देख तो जरा वहाँ कितना उजाला है, जहाँ तुझे जाना है। आज तूने इस शाम के अंधेरे में , इस एकांत में , जहाँ न कोई सखा न सहेली यह जो चिन्तन किया है मेरे दोस्त , फिर पीछे पलट कर न देख। दर्द जो तेरे हृदय में समाया है , स्वयं को अनंत को समर्पित कर उसे बांट ले। जहाँ न किसी के संदेश की प्रतीक्षा हो, न गुजरे दिनों की याद हो..

रे मन ! तू उस कठोरता (वैराग्य) को प्राप्त कर । एक संत बनने की राह पर बढ़, फिर प्रस्थान कर इस जग से ।


अपनों में रहे या ग़ैरों में

घुँघरू की जगह तो है पैरों में

कभी मन्दिर में कभी महफ़िल में

सजता ही रहा हूँ मैं

घुँघरू की तरह ...

मुक्त हो जा अब इस दर्द से, इस तन- मन से ...

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(सचमुच हम पत्रकार बुझदिल हैं, जो अपने हक की आवाज भी नहीं उठा पाते हैं) "अमन बेच देंगे,कफ़न बेच देंगे जमीं बेच देंगे, गगन बेच देंगे कलम के सिपाही अगर सो गये तो, वतन के मसीहा,वतन बेच देंगे" पत्रकारिता से जुड़े कार्यक्रमों में अकसर यह जुमला सुनने को मिल ही जाता है औ

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महान समाज सुधारक संत कबीर को लेकर मेरा अपना चिंतन है। कबीर की वाणी में मुझे बचपन से ही आकर्षण रहा है । जब छोटा था, तो विषम आर्थिक परिस्थितियों में पापा (पिता जी) अकसर ही कहा करते थें - " रुखा सुखा खाई के ठंडा पानी पी। देख पराई चुपड़ी मत ललचाओ जी।।" जिसे सुन हम सभी अपनी सारी तकलीफों और श

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“विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है।" मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर उनका यह उद्घोष मुझे फिर से याद हो आया। सो, मैंने अपने ब्लॉग पर एक बार दृष्टि डाली। अंतरात्मा से सवाल पूछा कि संघर्ष के प्रतीक, जीवन एवं अपनी रचना दोनों से ही और हम जैसों की लेखन शक्ति के ऊर्जा स्रोत के कथन

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"समझेगा, कौन यहाँ दर्द भरे, दिल की ज़ुबां रुह में ग़म, दिल में धुआँ जाएँ तो जाएँ कहाँ... एक कश्ती, सौ तूफां " अपनों से जब वियोग हो जाता है, शरीर जब साथ छोड़ने लगता है, प्रेम जब धोखा देता है, कर्म जुगाड़ तंत्र में उपहास बन जाता है, लक्ष्मी जब रूठ जाती है, पथिक जब राह भटक जाता है, जब आत्मविश्

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सभी को देखो नहीं होता है नसीबा रौशन सितारों जैसा

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सभी को देखो नहीं होता है नसीबा रौशन सितारों जैसा सच भले ही सूली हो और जुगाड़ तंत्र सिंहासन, फिर भी.. ------------------ शशि/ अपनी बात --------------- " एक बंजारा गाए, जीवन के गीत सुनाए हम सब जीने वालों को जीने की राह बताए ज़माने वालो किताब-ए-ग़म में खुशी का कोई फ़साना ढूँढो हो ओ ओ ओ ... आँखों में

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दुख और सुख के रास्ते, बने हैं सब के वास्ते जो ग़म से हार जाओगे, तो किस तरह निभाओगे खुशी मिले हमें के ग़म, खुशी मिले हमे के ग़म जो होगा बाँट लेंगे हम जहाँ में ऐसा कौन है कि जिसको ग़म मिला नहीं इ

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ऐ मेरे प्यारे वतन, तुझ पे दिल कुर्बान

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ऐ मेरे प्यारे वतन, तुझ पे दिल कुर्बान ------ सवाल यह है कि तिरंगे की आन बान और शान की सुरक्षा के लिये हमने क्या किया ------ एक बार बिदाई दे माँ घुरे आशी। आमी हाँसी- हाँसी पोरबो फाँसी, देखबे भारतवासी । ------- अमर क्रांति दूत खुदीराम बोस की शहादत से जुड़ा यह गीत, मैंने राष्ट्रीय पर्व पर कोलकाता

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यादों के झरोखे में तुझको बैठा कर रखूंगा अपने पास

16 अगस्त 2018
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यादों के झरोखे में तुझकों बैठा रखूंगा अपने पास नाग पंचमी पर याद आया अपना भी बचपन ------------------------------------------------------------------ सुबह जैसे ही मुसाफिरखाने से बाहर निकला , "ले नाग ले लावा " बच्चों की यह हांक चहुंओर सुनाई पड़ी। मीरजापुर में इसी तरह की तेज आवाज लगाते गरीब बच

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बाधाएं आती हैं आएं, कदम मिला कर चलना है

18 अगस्त 2018
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बाधाएं आती हैं आएं, कदम मिलाकर चलना है **************** अटल जी ऐसे राजनेता रहें , जिनका कर्मपथ अनुकरणीय है। उनके सम्वाद में कभी भी उन्माद की झलक नहीं दिखी *************************** राजनीति की यह दुनिया जहां मित्र कम शत्रु अधिक हैं । उसमें ऐसा भी एक मानव जन्म लेगा, जिसके निधन पर हर कोई नतमस

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साथी हाथ बढ़ाना ...

22 अगस्त 2018
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साथी हाथ बढ़ाना ... एक अकेला थक जाएगा , मिलकर बोझ उठाना ********************************************** पत्रकारिता में अपनों द्वारा उपेक्षा दर्द देती है, लेकिन गैरों से मिला स्नेह तब मरहम बन जाता है ********************************************* "आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे तीर-ए-नज़र देखेंगे ज़ख़

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जिंदा है जो इज्ज़त से , वो इज्ज़त से मरेगा

24 अगस्त 2018
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सुबह सड़कों पर एक जीवन संघर्ष दिखता है, इबादत, समर्पण और कर्मयोग दिखता है -------------------------------------------------------------------- " दुनियाँ में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा जीवन हैं अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा गिर गिर के मुसीबत में संभलते ही रहेंगे जल जाये मगर आग प़े चलते ही रहेंगे...."

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अपने पे हँस कर जग को हँसाना , ग़म जब सताये सीटी बजाना

28 अगस्त 2018
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परिश्रम यदि हमने निष्ठा के साथ किया है, तो वह कभी व्यर्थ नहीं जाता। भले ही कम्पनी की नजरों में हम बेगाने हो, तब भी समाज हमारे श्रम का मूल्यांकन करेगा। किसी को धन , तो किसी को यश मिलेगा । **************** मिसाइल मैन डा0 एपीजे अब्दुल कलाम का एक सदुपदेश पिछले दिनों सोशल मीडिया पर पढ़ा

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एक इंसान हूँ मैं तुम्हारी तरह

31 अगस्त 2018
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.. कबाड़ बटोरते इन बच्चों का स्वाभिमान देखें, इनका रूप रंग नहीं -------------------- कभी आपने अपनी गलियों में या फिर सड़कों पर बिखरे कूड़ों के ढ़ेर में से कबाड़ बटोरती महिलाओं को देखा है , नहीं देखा , तो दरबे से बाह

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एक अकेला इस शहर में, आशियाना ढूंढता है

3 सितम्बर 2018
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एक अकेला इस शहर में,आशियाना ढूँढता है *********************************** मैं कुछ ठीक से समझ नहीं पा रहा हूँ कि ये यादों की पोटली मुझे संबल प्रदान करती है या जंजीर बन मेरे पांवों को जकड़ी हुई है यह **************************** " एक अकेला इस शहर में,रात में और दोपहर में आब-ओ-दाना ढूँढता है, आशिय

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4 सितम्बर 2018
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हार के ये जीवन , प्रीत अमर कर दी *************************** " तेरे मेरे दिल का, तय था इक दिन मिलना जैसे बहार आने पर, तय है फूल का खिलना ओ मेरे जीवन साथी..." यौवन की डेहरी पर अभी तो इस युगल ने ठीक से पांव भी नहीं रखा था। वे पड़ोसी थें, अतः बाली उमर में ही प्रेम पुष्प खिल उठा। बसंत समीर को कितने

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मेरे खुदा कहाँ है तू ,कोई आसरा तो दे

10 सितम्बर 2018
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मेरे खुदा कहाँ है तू , कोई आसरा तो दे ****************************** साहब ! यह जोकर का तमाशा नहीं , नियति का खेल है। हममें से अनेक को मृत्यु पूर्व इसी स्थिति से गुजरना है । जब चेतना विलुप्त हो जाएगी , अपनी ही पीएचडी की डिग्री पहचान न आएँगी और उस अंतिम दस्तक पर दरवाजा खोलने की तमन्ना अधूरी रह जाएगी।

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14 सितम्बर 2018
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विलायती बोलीः बनावटी लोग ****************************************** हमारे संस्कार से जुड़े दो सम्बोधन शब्द जो हम सभी को बचपन में ही दिये जाते थें , " प्रणाम " एवं " नमस्ते " बोलने का , वह भी अब किसमें बदल गया है, इस आधुनिक भद्रजनों के समाज में... *******************************************

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17 सितम्बर 2018
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आपके कर्मों की ज्योति अब राह हमें दिखलायेगी-----------------------------------------कुछ यादें कुछ बातें, जिनकी पाठशाला में मैं बना पत्रकार***************************एक श्रद्धांजलि श्रद्धेय राजीव अरोड़ा जी को***********************किया था वादा आपने कभी हार न मानेंगे ,बनके अर्जुन जीवन रण में जीतेंगे हा

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30 सितम्बर 2018
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ओ दूर के मुसाफ़िर हम को भी साथ ले ले रे******************** मैं छोटी- छोटी उन खुशियों का जिक्र ब्लॉग पर करना चाहता हूँ, उन संघर्षों को लिखना चाहता हूँ, उन सम्वेदनाओं को उठाना चाहता हूँ, उन भावनाओं को जगाना चाहता हूँ, जिससे हमारा परिवार और हमारा समाज खुशहाली की ओर बढ़े । बिना धागा, बिना माला इन बिख

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गुजरा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा, हाफ़िज़ खुदा तुम्हारा

1 अक्टूबर 2018
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गुज़रा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा , हाफ़िज़ खुदा तुम्हारा********************************आज रविवार का दिन मेरे आत्ममंथन का होता है। बंद कमरे में, इस तन्हाई में उजाला तलाश रहा हूँ। सोच रहा हूँ कि यह मन भी कैसा है , जख्मी हो हो कर भी गैरों से स्नेह करते रहा है।*************

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जागते रहेंगे और कितनी रात हम..

4 अक्टूबर 2018
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जागते रहेंगे और कितनी रात हम ... ************************सच कहूँ, तो मेरा अब तक का अपना चिन्तन जो रहा है, वह यह है कि पुरुष व्यर्थ में श्रेष्ठ होने के दर्प में जी रहा है ,क्यों कि वह नारी ही जो अपने प्रेम, समर्पण और सानिध्य से उसे सम्पूर्णता देती है। यहाँ उसका सहज कर्म योग है।**********************

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इस्तीफा जो नज़ीर न बना...

6 अक्टूबर 2018
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इस्तीफा जो नज़ीर न बना ..( बातें, कुछ अपनी- कुछ जग की ) ************************* सोच रहा हूँ कि जिस नज़ीर की बात उस समय शीर्ष पर स्थित राजनेता कर रहे थें। उनके उस चिन्तन का क्या हश्र हुआ ,इस आधुनिक भारत में ..? क्या आज शीर्ष पर बैठें राजनेता, अधिकारी से लेकर परिवार का मुखिया तक किसी भी मामले में

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माँ, महालया और मेरा बाल मन

7 अक्टूबर 2018
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माँ , महालया और मेरा बाल मन...************************** आप भी चिन्तन करें कि स्त्री के विविध रुपों में कौन श्रेष्ठ है.? मुझे तो माँ का वात्सल्य से भरा वह आंचल आज भी याद है। ****************************जागो दुर्गा, जागो दशप्रहरनधारिनी, अभयाशक्ति बलप्रदायिनी, तुमि जागो... माँ - माँ.. मुझे

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कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है

12 अक्टूबर 2018
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कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है..******************** पुरुष समाज में से कितनों ने अपनी अर्धांगिनी में देवी शक्ति को ढ़ूंढने का प्रयास किया अथवा उसे हृदय से बराबरी का सम्मान दिया..? शिव ने अर्धनारीश्वर होना इसलिये तो स्वीकार किया। पुरुष का पराक्रम और नारी का हृदय यह किसी कम्प्यूटर के हार्डवेय

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जब किसी से गिला रखना

14 अक्टूबर 2018
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जब किसी से कोई गिला रखना ************************ यहाँ मैं गृहस्थ, विरक्त और संत मानव जीवन की इन तीनों ही स्थितियों को स्वयं की अपनी अनुभूतियों के आधार पर परिभाषित करने की एक मासूम सी कोशिश में जुटा हूँ। *************************मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यूँ नह

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जब तक मैंने समझा जीवन क्या है , जीवन बीत गया..

17 अक्टूबर 2018
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जब तक मैंने समझा जीवन क्या है ,जीवन बीत गया...********************************रावण का पुतला दहन हम नहीं भूले हैं। लेकिन, भ्रष्टाचार, अनाचार और कुविचार से ग्रसित हो हम

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है ये कैसी डगर चलते हैं सब मगर ..

21 अक्टूबर 2018
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है ये कैसी डगर चलते हैं सब मगर... ************************मैं और मेरी तन्हाई के किस्से ताउम्र चलते रहेंगे , जब तक जिगर का यह जख्म विस्फोट कर ऊर्जा न बन जाए , प्रकाश बन अनंत में न समा जाए।***************************(बातेंःकुछ अपनी, कुछ जग की)कल सुबह अचानक फोन आया ..अंकल! महिला अस्पताल में पापा ने आ

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वसुधैव कुटुम्बकम का दर्पण यूँ कैसे चटक गया...

22 अक्टूबर 2018
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वसुधैव कुटुम्बकम का दर्पण यूँ क्यों चटक गया..********************बड़ी बात कहीं उन्होंने ,यदि हम इतना भी त्याग नहीं कर सकते तो आखिर फिर क्यों दुहाई देते हैं वसुधैव कुटुम्बकं की ? शास्त्र कहते हैं कि आदर्श बोलते तो है पर उसका पालन नहीं करते तो पुण्य क्षीण होता है ।****************गुज़रो जो बाग से तो दु

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वो जुदा हो गये देखते देखते...

27 अक्टूबर 2018
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वो जुदा हो गए देखते देखते..*************************दबाव भरी पत्रकारिता हम जैसे फुल टाइम वर्कर के लिये जानलेवा साबित हो रही है। पहले प्रेस छायाकार इंद्रप्रकाश श्रीवास्तव की दुर्घटना में मौत और एक और छायाकार कृष्णा का घायल होना,वरिष्ठ क्राइम रिपोर्टर दिनेश उपाध्याय का मौत के मुहँ से निकल कर किसी तरह

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आदमी मुसाफिर है, आता है जाता है..

29 अक्टूबर 2018
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दिवंगत पत्रकार की श्रद्धांजलि सभा में फफक कर रो पड़ी केंद्रीय राज्यमंत्री अनुप्रिया ----------आदमी मुसाफिर है, आता है, जाता है************************** पत्रकारिता जगत ही नहीं समाजसेवा के हर क्षेत्र में यदि हम त्यागपूर्ण तरीके से अपना कर्म करेंगे, तो समाज हमारा ध्यान आज इस अर्थ प्रधान युग में भी रखता

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रस्म-ए- उल्फ़त को निभाएं तो निभाएं कैसे

1 नवम्बर 2018
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रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएं तो निभाएं कैसे..********************** एक बात मुझे समझ में नहीं आती है कि इस अमूल्य जीवन की ही जब कोई गारंटी नहीं है, तो फिर क्यों इन संसारिक वस्तुओं से इतनी मुहब्बत है। खैर अपना यह जीवन आग और मोम का मेल है, कभी यह सुलगता है, तो कभी वह पिघलता है...***********************दर्द

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आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन..

4 नवम्बर 2018
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आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन ..***************************** यहाँ मंदिर पर बड़े लोग सैकड़ों डिब्बे मिठाई दनादन बंधवा रहे हैं। ये बेचारे मजदूर तो ऊपरवाले का नाम ले, अपने मन की इच्छाओं का दमन कर लेते हैं , परंतु इन गरीबों के बच्चों को कभी आप ने दूर से टुकुर-

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मुझसे पहले तू जल जाएगा...

7 नवम्बर 2018
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मुझसे पहले तू जल जायेगा.. दीपोत्सव पर्व को लेकर बजारों में रौनक है। कल धनतेरस पर करोड़ों का व्यापार हुआ है। बड़े प्रतिष्ठान चाहे जो भी हो,धन सम्पन्न ग्राहकों का प्रथम आकर्षण वहीं केंद्रित रहता है। छोटे -छोटे दुकानदार फिर भी कुछ उदास से ही दिख रहे हैं , इस चकाचौंध भरे त्योहार में। सो, हमारा प्रयास हो

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कितना मुश्किल है पर भूल जाना...

8 नवम्बर 2018
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कितना मुश्किल है पर भूल जाना...(दीपावली और माँ की स्मृति)*******************************हमें तो उस दीपक की तरह टिमटिमाते रहना है ,जो बुझने से पहले घंटों अंधकार से संघर्ष करता है, वह भी औरों के लिये, क्यों कि स्वयं उसके लिये तो नियति ने " अंधकार " तय कर रखा है..******************************बिछड़ गया

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दुनिया सुने इन खामोश कराहों को...

10 नवम्बर 2018
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दुनिया सुने इन खामोश कराहों को..***************************असली तस्वीर तो अपने शहर के भद्रजनों की इस कालोनी का यह चौकीदार है और उसके सिर ढकने के लिये प्रवेश द्वार पर बना छोटा सा यह छाजन है, जहाँ एक कुर्सी है और शयन के लिये पत्थर का पटिया है।****************************इस समूह में इन अनगिनत अनचीन्ही

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आदमी बुलबुला है पानी का..

13 नवम्बर 2018
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आदमी बुलबुला है पानी का..****************************मृतकों के परिजनों के करुण क्रंदन , भय और आक्रोश के मध्य अट्टहास करती कार्यपालिका की भ्रष्ट व्यवस्था के लिये जिम्मेदार कौन..************************* यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बस्ते हैं ग़ज़ब ये है की अपनी मौत की आहट नहीं सुनते ख़ुदा जाने यह

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ठहर जाओ सुनो मेहमान हूँ मैं चंद रातों का..

15 नवम्बर 2018
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मेरे दिल से ना लो बदला ज़माने भर की बातों का ठहर जाओ सुनो मेहमान हूँ मैं चँद रातों का चले जाना अभी से किस लिये मुह मोड़ जाते हो खिलौना, जानकर तुम तो, मेरा दिल तोड़ जाते हो मुझे इस, हाल में किसके सहारे छोड़ जाते हो खिलौना ... खिलौना फिल्म की यह गीत और यह मेहमान ( अतिथि ) शब्द मेरे जीवन की सबसे कड़वी

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ये ज़िद छोड़ो,यूँ ना तोड़ो हर पल एक दर्पण है..

20 नवम्बर 2018
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ये ज़िद छोड़ो, यूँ ना तोड़ो हर पल एक दर्पण है ..***************************ये जीवन है इस जीवन का यही है, यही है, यही है रंग रूप थोड़े ग़म हैं, थोड़ी खुशियाँ यही है, यही है, यही है छाँव धूप ये ना सोचो इसमें अपनी हार है कि जीत है उसे अपना लो जो

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दिल से कदमों की आवाज़ आती रही

2 दिसम्बर 2018
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दिल से कदमों की आवाज़ आती रही************************हो, गुनगुनाती रहीं मेरी तनहाइयाँदूर बजती रहीं कितनी शहनाइयाँज़िंदगी ज़िंदगी को बुलाती रहीआप यूँ फ़ासलों से गुज़रते रहेदिल से कदमों की आवाज़ आती रहीआहटों से अंधेरे चमकते रहेरात आती रही रात जाती रही... कैसी विडंबना है मानव जीवन का कि कर्म नहीं नि

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ढूंढती हैं नजर तू कहां है मगर

6 दिसम्बर 2018
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ढूँढती हैं नज़र तू कहाँ हैं मगर*****************************हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ हैअब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमेंयाद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी सेरात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमेंज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमेंये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें ... कहने को तो पत

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आईना वोही हता है, चेहरे बदल जाते हैं

14 दिसम्बर 2018
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आईना वो ही रहता है , चेहरे बदल जाते हैं *****************************जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगेकिराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है.. तो मित्रों , सियासी आईने की तस्वीर एक बार फिर बदल गयी । जिन्हें गुमान था , उनका विजय रथ रसातल में चला गया। सिंहासन पर बैठे वज़ीर बदल गये हैं। भारी जश्न है चार

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यातना गृह

31 जुलाई 2019
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यातना गृह..!*********** मीरजापुर के एक रईस व्यक्ति के " करनी के फल " पर लिखा संस्मरण***************************** यह पुरानी हवेली उसके लिये यातना गृह से कम नहीं है..मानों किसी बड़े गुनाह के लिये आजीवन कारावास की कठोर सजा मिली हो .. ऐसा दंड कि ताउम्र इस बदरंग हवेली के चहारदीवारी के पीछे उस वृ

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रामनाम सत्य..!

3 अगस्त 2019
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रामनाम सत्य ..!!!***************( लघु कथा )रामनाम सत्य .. रामनाम सत्य.. क्या कोई शवयात्रा है ? सड़क पर तो ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा था.. फिर क्यों भरी दुपहरी में यह व्यक्ति ऐसे बुदबुदा रहा था .! क्या यह उसका अंतर्नाद है अथवा विरक्त मन की आवाज ..ठीक से समझ नहीं

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काकी माँ

11 अगस्त 2019
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काकी माँ..**************************** काकी माँ तो सचमुच बड़े घर की बेटी हैं। संकटकाल में भी वक्त के समक्ष न तो वे नतमस्तक हुईं , न ही अपने मायके एवं ससुराल के मान- सम्मान पर आंच आने दिया । वे संघर्ष की वह प्रतिमूर्ति हैं ।*************************** काकी माँ..

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माँ तुझे ढ़ूंढता रहा अपनों में

14 अगस्त 2019
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जन्म दिन पर एक बालक की अपनी माँ से प्रार्थना है कि वह अपने उस स्नेह को उसकी स्मृति से हटा ले ,जिसकी तलाश में उसे तिरस्कृत एवं अपमानित होना पड़ता है। ------------------------------------------------माँ तुझे ढ़ूंढता रहा अपनों में***********

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हम न संत बन सके

25 अगस्त 2019
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माँ की छाया ढ़ूंढने में सर्वस्व लुटाने वाले एक बंजारे का दर्द --( जीवन की पाठशाला )--------------------------------------हम न संत बन सके***************शब्द शूल से चुभे , हृदय चीर निकल गये दर्द जो न सह स

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ज़ख्म दिल के

2 सितम्बर 2019
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ज़ख्म दिल के************(जीवन की पाठशाला)कांटों पे खिलने की चाहत थी तुझमें,राह जैसी भी रही हो चला करते थे ।न मिली मंज़िल ,हर मोड़ पर फिरभी अपनी पहचान तुम बनाया करते थे।है विकल क्यों ये हृदय अब बोल तेरादर्द ऐसा नहीं कोई जिसे तुमने न सहा।ज़ख्म जो भी मिले इस जग से तुझेसमझ,ये पाठशाला है तेरे जीवन की।शुक्रिय

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ज़िंदगी तूने क्या किया

6 सितम्बर 2019
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ज़िदगी तूने क्या किया*****************( जीवन की पाठशाला से )जीने की बात न कर लोग यहाँ दग़ा देते हैं।जब सपने टूटते हैंतब वो हँसा करते हैं। कोई शिकवा नहीं,मालिक ! क्या दिया क्या नहीं तूने।कली फूल बन के अब यूँ ही झड़ने को है।तेरी बगिया में हम ऐसे क्यों तड़पा करते हैं ?ऐ

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ऐसे थें मेरे शिक्षक.. ( संस्मरण)

7 सितम्बर 2019
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ऐसे थें मेरे शिक्षक .. *************** विद्वतजनों से भरा सभाकक्ष , मंच पर बैठे शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी एवं सम्मानित होने वाले वे दर्जन भर शिक्षक जो स्नातकोत्तर महाविद्यालय से लेकर प्राइमरी पाठशालाओं से जुड़े हैं मौजूद थें। सभ

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सत्य का अनुसरणःएक यक्ष प्रश्न

10 सितम्बर 2019
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सत्य का अनुसरणः एक यक्ष प्रश्न ?************************( जीवन की पाठशाला से )*************************आज का मेरा विषय यह है कि यदि मैंने यह कह दिया होता - " हाँ, पिताजी यह स्याही की बोतल मुझसे ही गिरी है।" तो मेरे इस असत्य वचन से मेरा परिवार नहीं बिखरता।************************* जहां में सबसे ज

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ख़ामोश होने से पहले

12 सितम्बर 2019
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ख़ामोश होने से पहले **************** ख़ामोश होने से पहले हमने देखा है दोस्त, टूटते अरमानों और दिलों को, सर्द निगाहों को सिसकियों भरे कंपकपाते लबों को और फिर उस आखिरी पुकार को रहम के लिये गिड़गिड़ाते जुबां को बदले में मिले उ

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मयंक का हठयोग

15 सितम्बर 2019
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मयंक का हठयोग ( लघु कथा ) ********* अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर सुबह का

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क्या खोया क्या पाया जग में

18 सितम्बर 2019
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क्या पाया क्या खोया जग में**********************गुरु कृपा से उपजे ज्योति गुरू ज्ञान बिन पाये न मुक्तिमाया का जग और ये घरौंदाफिर-फिर वापस न आना रे वंदे पत्थर-सा मन जल नहीं उपजेहिय की प्यास बुझे फिर कैसे.. भावुक व्यक्ति की सबसे बड़ी कमजोरी यह होती है कि वह अपने प्रति किसी के द्वारा दो बोल सहानुभूति

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सजदा

21 सितम्बर 2019
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सजदा*******न कभी सजदा कियाना दुआ करते हैं हम दिल से दिल को मिलाया बोलो,ये इबादत क्या कम है। दर्द जो भी मिला ख़ुदा ! तेरी दुनियाँ से कोई शिकवा न किया बोलो,ये बंदगी क्या कम है ।कांटों के हार को समझ नियति का उपहारहर चोट पे मुस्कुरायाबोलो,ये सब्र क्या कम है।अपनों से मिले ज़ख्म पे ग़ैरों ने लगाया

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माँ , महालया और मेरा बालमन

27 सितम्बर 2019
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माँ , महालया और मेरा बालमन...************************** आप भी चिन्तन करें कि स्त्री के विविध रुपों में कौन श्रेष्ठ है.? मुझे तो माँ का वात्सल्य से भरा वह आंचल आज भी याद है। ****************************जागो दुर्गा, जागो दशप्रहरनधारिनी,अभयाशक्ति बलप्रदायिनी, तुमि जागो... माँ - माँ.. मुझे भी महाल

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सुर मेरे..

29 सितम्बर 2019
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सुर मेरे...सुर मेरे ! उपहार बन जा जिसे पा न सका जीवन में सुन , मेरा वो प्यार बन जा फिर न पुकारे हमें कोई तू ही वह दुलार बन जा खो गये हैं स्वप्न हमारे दर्द की पहचान बन जा न कर रूदन, मौन हो अब सुर, मेरा वैराग्य बन जा जीवन की तू धार बन जा राधा का घनश्याम बन तू प्रह्लाद का विश्वास बन ना ध

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पथिक ! जो बोया वो पाएगा

1 अक्टूबर 2019
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पथिक ! जो बोया वो पाएगा------. अंतराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर********************* बारिश में भींगने के कारण पिछले चार-पांच दिनों से गंभीर रूप से अस्वस्थ हूँ। स्थिति यह है कि बिस्तरे पर से कुर्सी पर बैठन

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गाँधी तेरा सत्य ही मेरा दर्पण

3 अक्टूबर 2019
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गाँधी तेरा सत्य ही मेरा दर्पण**********************" हम कोई महात्मा गाँधी थोड़े ही हैं कि समाजसेवा की दुकान खोल रखी है। किसी दूसरे विद्यालय में दाखिला करवा लो अपने बच्चे का.." पिता जी के स्वभाव में अचानक

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हमारी छोटी-छोटी खुशियाँ

9 अक्टूबर 2019
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हमारी छोटी- छोटी खुशियाँ********************* भाग -1 उस उदास शाम भी मैं जीवन की शून्यता और दर्द से स्वयं को उभारने की कोशिश में जुटा हुआ था कि किसी ने आवाज लगायी.. " सा'ब , खुरमा ताजा है, लेंगे ? " " ले आओं भाई दस का " -मैंने कहा। ठेलेवाले की पुकार सुनकर उस दिन न जाने क्यों मैं स्वयं को रोक न

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स्नेह भरे ये पर्व..

13 अक्टूबर 2019
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हमारी छोटी-छोटी खुशियाँ( भाग- 2)*************************** परम्पराओं के वैज्ञानिक पक्ष को तलाशने की आवश्यकता है , उसमें समय के अनुरूप सुधार और संशोधन हो , न कि उसका तिरस्कार और उपहास ..**************************** यह परस्पर प्रेम

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इक वो भी दीपावली थी..

18 अक्टूबर 2019
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हमारी छोटी-छोटी खुशियाँ( भाग- 3 )*************************** सच कहूँ तो पहले अभाव में भी खुशियाँ थीं और अब इस इक्कीसवीं सदी में सबकुछ होकर भी खुशियों का अभाव है।**************************** पिछले कुछ महीनों में स्वास्थ्य तेजी से गिरा है, फिर भी ठीक पौने चार बजे ब्रह्ममुहूर्त में शैय्या त्याग

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सामाजिक स्नेह की प्रथम अनुभूति (हमारी छोटी-छोटी खुशियाँ)

23 अक्टूबर 2019
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हमारी छोटी- छोटी खुशियाँ ( भाग- 4) दीपावली की वह शाम************************** नियति ने हमारे लिये क्या तय कर रखा है, हम नहीं जानते, कहाँ तो मैं इस चिंता में दुःखी था कि घर पहुँचने पर भोजन क्या कर

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रोशनी के साथ क्यों धुआँ उठा चिराग से

30 अक्टूबर 2019
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हमारी छोटी-छोटी खुशियाँ (भाग -5)************************** मैं अपनी भावनाओं से ऊपर उठकर इन दीपकों की तरह अपने दर्द को अपनी खुशी बनाने की कला सीख रहा हूँ। आँसू को मोती समझना यदि आ गया ,तो जीवन की पाठशाला में हो रही इस कठिन परीक्षा में स्वयं को सफल समझूँगा। *************************** सुबह के स

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जेकर जाग जाला फगिया उहे छठी घाट आये.

2 नवम्बर 2019
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जेकर जाग जाला फगिया उहे छठी घाट आये..**************आठ दशक पूर्व खत्री परिवार ने मीरजापुर में शुरू की थी छठपूजा*******************काँच ही बांस के बहंगिया बहँगी लचकत जायेपहनी ना पवन जी पियरिया गउरा घाटे पहुँचायगउरा में सजल बाटे हर फर फलहरियापियरे पियरे रंग शोभेला डगरिया

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शब्दबाण

14 नवम्बर 2019
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शब्दबाण********************************* उसके वह कठोर शब्द - " कौन हूँ मैं ..प्रेमिका समझ रखा है.. ? व्हाट्सअप ब्लॉक कर दिया गया है..फिर कभी मैसेज या फोन नहीं करना.. शांति भंग कर रख दिया है ।" यह सुनकर स्तब्ध रह गया था मयंक.. ********************************** अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर

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कलुआ ( जीवन की पाठशाला )

20 नवम्बर 2019
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**************************कलुआ होने का उसे कोई मलाल नहीं है..यह तो उसके श्रम की निशानी है..। हाँ, उसके निश्छल हृदय को कोई काला-कलूटा न कहे..इंसानों की इस बस्ती में फिर कोई शुभचिंतक उसे न छले..और कोई कामना नहीं है उसकी..।*************************अरी सुनती हो.. !जरा देख

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नारी-सम्मान पर डाका ?

8 दिसम्बर 2019
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नारी-सम्मान पर डाका ?*********************************पुत्र के मामले में माता-पिता और पति के मामले में पत्नी की दृष्टि जबतक सजग नहीं होगी , पुरुषों के ऐसे पाशविक वृत्ति एवं कृत्य पर अंकुश नहीं लग सकेगा********************************

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माँ ! एक सवाल मैं करूँ ? ( जीवन की पाठशाला )

25 दिसम्बर 2019
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माँ ! एक सवाल मैं करूँ ? ( जीवन की पाठशाला )*************************** इस सामाजिक व्यवस्था के उन ठेकेदारों से यह पूछो न माँ - " बेटा-बेटी एक समान हैं , तो दो- दो बेटियों के रहते बाबा की मौत किसी भिक्षुक जैसी स्थिति में क्यों हुई.. क्रिसमस की उस भयावह रात के पश्चात हमदोनों के जीवन में उजाला क्यों

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पथिक! काहे न धीर धरे

30 दिसम्बर 2019
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पथिक! काहे न धीर धरे( जीवन की पाठशाला )----आत्म उद्बोधन---- ज़िदगी में ग़म है ग़मों में दर्द है दर्द में मज़ा है मज़े में हम है.. वर्ष 2019 का समापन मैं कुछ इसी तरह के अध्यात्मिक चिंतन संग कर रहा हूँ , परंतु ऐसा भी नहीं है कि इस ज्ञानसूत्र से मेरा हृदय आलोकित हो उठा है। असत्य बोल कर क्यों कथन

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नया सवेरा

27 जुलाई 2020
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नया सवेरा *************************** लॉकडाउन ने क्षितिज को गृहस्वामी होने के अहंकार भरे " मुखौटे" से मुक्त कर दिया था, तो शुभी भी इस घर की नौकरानी नहीं रही। प्रेमविहृल पति-पत्नी को आलिंगनबद्ध देख मिठ्ठू पिंजरे में पँख फड़फड़ाते हुये..*************************** क्षितिज कभी मोबाइल तो कभी टीवी

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आत्माराम

1 अगस्त 2020
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आत्माराम उसके घर का रास्ता बनारस की जिस प्रमुख मंडी से होकर गुजरता था। वहाँ यदि जेब में पैसे हों तो गल्ला-दूध , घी-तेल, फल-सब्जी, मेवा-मिष्ठान सभी खाद्य सामग्रियाँ उपलब्ध थीं।लेकिन, इन्हीं बड़ी-बड़ी दुकानों के मध्य यदि उसकी निगाहें किसी ओर उठती,तो वह सड़क के नुक्कड़ पर स्थित विश्वनाथ साव की कचौड़

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यादों की ज़ंजीर

6 अगस्त 2020
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यादों की ज़ंजीर रात्रि का दूसरा प्रहर बीत चुका था, किन्तु विभु आँखें बंद किये करवटें बदलता रहा। एकाकी जीवन में वर्षों के कठोर श्रम,असाध्य रोग और अपनों के तिरस्कार ने उसकी खुशियों पर वर्षों पूर्व वक्र-दृष्टि क्या डाली कि वह पुनः इस दर्द से उभर नहीं सका है। फ़िर भी इन बुझी हुई आशाओं,टूटे हुये हृद

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माँ का रुदन

13 अगस्त 2020
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माँ का रुदन************** अरे ! ये कैसा रुदन है..? स्वतंत्रता दिवस पर्व पर उल्लासपूर्ण वातावरण में देशभक्ति के गीत गुनगुनाते हुये चिरौरीलाल शहीद उद्यान से निकला ही था कि किसी स्त्री के सिसकने की आवाज़ से उसके कदम ठिठक गये थे। ऐसे खुशनुमा माहौल में रुदन का स्वर सुन च

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सज़ा

21 अगस्त 2020
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सज़ा**** पौ फटते ही उस मनहूस रेलवे ट्रैक के समीप आज फिर से भीड़ जुटनी शुरू हो गयी थी। यहाँ रेल पटरी के किनारे पड़ी मृत विवाहिता जिसकी अवस्था अठाइस वर्ष के आस-पास थी, को देखकर उसकी पहचान का प्रयास किया जा रहा था। सूचना पाकर पुलिस भी आ च

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इतनी बड़ी सज़ा

23 अगस्त 2020
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इतनी बड़ी सज़ा************* शहर की उस तंग गली में सुबह से ही तवायफ़ों के ऊपर तेजाब फेंके जाने से कोहराम मचा था। मौके पर तमाशाई जुटे हुये थे। कुछ उदारमना लोग यह हृदयविदारक दृश्य देख -- " हरे राम- हरे राम ! कैसा निर्दयी इंसान था.. ! सिर्फ़ इतना कह कन्नी काट ले रहे थे। " एक दरिंदा जो इस

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नौकरानी

27 अगस्त 2020
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नौकरानी********** समीप के देवी मंदिर में कोलाहल मचा हुआ था। मुहल्ले की सुहागिन महिलाएँ पौ फटते ही पूजा का थाल सजाये घरों से निकल पड़ी थीं। उनके पीछे- पीछे बच्चे भी दौड़ पड़े थे। उधर,आकाँक्षा इन सबसे से अंजान सिर झुकाए नित्य की तरह घर के बाहर गली में मार्निंग वॉक कर रही थी । वह भूल चुकी थी कि

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फेरीवाला

3 सितम्बर 2020
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फेरीवाला **********(जीवन के रंग) वही अनबुझी-सी उदासी फिर से उसके मन पर छाने लगी थी। न मालूम कैसे यह उसके जीवन का हिस्सा बन गयी है कि दिन डूबते ही सताने चली आती है। बेचैनी बढ़ने पर मुसाफ़िरख़ाने से बाहर निकल वह भुनभुनाता है-- किस मनहूस घड़ी में उसका नाम रजनीश रख दिया गया है ,जबकि उसके खुद की ज़िदगी म

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मोक्ष

7 सितम्बर 2020
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मोक्ष*****(जीवन के रंग) बचपन से ही वह सुनता आ रहा है कि जैसा कर्म करोगे-वैसा फल मिलेगा , किन्तु अब जाकर इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि पाप-पुण्य की परिभाषा सदैव एक-सी नहीं होती है। बहुधा उदारमना व्यक्ति को भी कर्म की इसी पाठशाला में ऐसा भयावह दंड मिलता है कि उसकी अंतर्रात्मा यह कह चीत्कार कर उठती है

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यादों की ज़ंजीर

12 सितम्बर 2020
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यादों की ज़ंजीर(जीवन के रंग) रात्रि का दूसरा प्रहर बीत चुका था, किन्तु विभु आँखें बंद किये करवटें बदलता रहा। एकाकी जीवन में वर्षों के कठोर श्रम,असाध्य रोग और अपनों के तिरस्कार ने उसकी खुशियों पर वर्षों पूर्व वक्र-दृष्टि क्या डाली कि वह पुनः इस दर्द से उभर नहीं सका है। फ़िर भी इन बुझी हुई आशाओं,टूटे

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