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काकी माँ

11 अगस्त 2019

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काकी माँ..

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काकी माँ तो सचमुच बड़े घर की बेटी हैं। संकटकाल में भी वक्त के समक्ष न तो वे नतमस्तक हुईं , न ही अपने मायके एवं ससुराल के मान- सम्मान पर आंच आने दिया । वे संघर्ष की वह प्रतिमूर्ति हैं ।

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काकी माँ.. ! यह प्यार भरा सम्बोधन आज भी स्मृतियों में आकर मुझे आह्लादित कर जाता है। हाँ , इतने बड़े घर में एक काकी माँ ही तो थीं। जिनके समक्ष हुड़दंगी बच्चों की भी बोलती बंद हो जाया करती थी , फिर भी उनके चौखट पर हाजिरी देने परिवार के सारे बच्चे आया करते थें। आर्थिक परिस्थितियाँ चाहे जैसी रहीं हो, लेकिन काकी माँ न जाने कहाँ और किस तिजोरी से बिस्किट-टॉफी का जुगाड़ इन शैतानों के लिये किये रहती थीं। इनके जन्मदिन पर भी कुछ न कुछ वे देती ही थीं। कोई दर्जन भर बच्चे तो घर के ही थें।

वैसे मैंने स्वयं किसी को कभी काकी माँ नहीं कहा है। परंतु बचपन में इस कर्णप्रिय शब्द को उस घर-आंगन में गूंजते हुये देखा है। जिसका अब अस्तित्व ही नहीं है। वहाँ न संयुक्त परिवार रहा,न बच्चे रहें और नहीं ही काकी माँ । अब तो वे नानी माँ बन गयी हैं।

मैं यहाँ जिस भद्र महिला की बात कर रहा हूँ । विवाह के पूर्व वे बड़े घर की बेटी जैसी ही थीं । महानगर में रहती थीं और अपने माँ- बाप की लाडली बिटिया थीं। जिस परिवार से तब वे संबंध रखती थीं, वे धनिक थें। बंगला, गाड़ी और नौकर भी सेवा में हाजिर रहते थें। वैसे तो, काकी माँ के पिता उतने संपन्न नहीं थें , क्यों कि जब वे छोटे थें तभी माँ की मृत्यु के बाद उनकी सम्पत्ति का बंदरबांट हो गया था । फिर भी रहन-सहन उनका धनिकों से कम नहीं था , यूँ कहें कि वे दिल से अमीर थें । उनकी दो पुत्रियों में काकी माँ छोटी हैं। हर कार्य में निपुण और व्यवहारिक ज्ञान ऐसा है कि कई प्रांतों में फैले सगे सम्बंधियों से आत्मीयता आज भी कायम है।

हाँ, जिनके बीच वे रहती थीं , उस सोसाइटी के अनुरूप जरा बन संवर के रहना पड़ता था। बनावट, दिखावट और मिलावट ,भद्रजनों की यह एक गंभीर बीमारी है । वे समाज में अपनी श्रेष्ठता प्रदर्शित करना चाहते हैं। अतः उनके साथ उठते- बैठते काकी माँ ने भी अपने ऊपर यह आवरण डाल रखा था। सम्भवतः यदि वे ऐसा न करती तो हीन भावना से ग्रसित हो सकती थीं , उन्हें वह सम्मान नहीं मिलता और इन जेंटलमैनों की सोसायटी में कोई उन्हें स्वीकार नहीं करता ।

इतने सम्पन्न परिवार के मध्य उनका अविवाहित जीवन ठीक-ठाक गुजर रहा था। एक नटखट बालक कुछ वर्षों तक इस परिवार का अंग रहा। वह अपनी नानी माँ और मौसी माँ का राजदुलारा था । कोलकाता जैसे महानगर के पहचान वाले कान्वेंट स्कूल में उसे दाखिला दिलाया गया था। काकी माँ उसे अंग्रेजी की कविता रटवाया करती थीं।

उन्हें पता था कि हिन्दी भाषी तभी जेंटलमैन कहे जाते हैं, जब विलायती बोली उनकी जुबान पर हो। लेकिन , दो बंगालियों को आपस में अपनी भाषा छोड़ अंग्रेजी बोलते उन्होंने भी कम ही सुना होगा ।

खैर वह शैतान बालक पढ़ने की जगह कमरे से लेकर बरामदे तक दौड़ लगाया करता था। माँ -बाबा( नाना-नानी ) तो उसे डांटते न थें कभी , ऐसे में काकी माँ की तिरछी नजरों से ही वह तनिक घबड़ाता था। वही क्या हर बच्चा काकी माँ की आँखों का इशारा समझता था। मायके और ससुराल दोनों ही जगह जब बच्चे शैतानी करते थें ,तो काकी माँ की सेवा ली जाती थी। ऐसे हठी बच्चों को रास्ते पर लाने के लिये डांट- फटकार एवं पिटाई की कभी आवश्यकता ही नहीं पड़ी काकी माँ को। वे तो बस आँखें तरेरती थीं और स्टेच्यू बनकर खड़े हो जाते थें, ये सारे हुड़दंगी बच्चे । मानो वे अनुशासन की पाठशाला थीं । जिसने इसमें प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया । वह अडानी- अंबानी परिवार के मध्य पहुँच कर भी अपनी परवरिश पर गर्व कर सकता है। फिर भी उस नटखट बालक को यह औपचारिकता पसंद नहीं थी। बचपन से ही उसे दुनिया की हर दौलत से कहीं अधिक प्रिय था ,अपनों से मिलने वाला प्यार - दुलार। इसी स्नेह और अपनत्व के लिये न जाने क्यों आज प्रौढ़ावस्था में भी वह उसी बालक सा मासूमियत लिये मचलता है ?

वह नादान ,जिन्हें अपना समझता है, उसी से जब कभी दुत्कार मिलता है। तो अस्वस्थ तन से कहीं अधिक उसका मन आहत हो उठता है। अपनी इस निर्लज्जता पर वह क्या कहे ! संत बनने की चाहत है और भिक्षुक बना स्नेह की याचना करता है। उसकी अंतरात्मा उसे झकझोरती है कि धिक्कार है उसके जीवन पर , संकल्प में जिसके बल न हो ।

क्या यह विकल इंसान वही बालक है ,जो डिनर टेबल पर प्लेट से चम्मच का टकराव न हो, काकी माँ के इस फरमान को रद्दी टोकरी में डाल, कभी यह कहता था कि ऐसे भद्रजनों के मध्य उसका क्या काम ? उस बालक की निर्भिकता , स्पष्टवादिता एवं आत्म स्वाभिमान के समक्ष जब ऐसे जेंटलमैन मौन रहते थें, तो आज वह आत्मबल कहाँ चला गया उसका ? सम्भवतः इसीलिये कहा गया है , " समय होत बलवान "

लेकिन, काकी माँ तो सचमुच बड़े घर की बेटी हैं। संकटकाल में भी वक्त के समक्ष न तो वे नतमस्तक हुईं , न ही अपने मायके एवं ससुराल के मान- सम्मान पर आंच आने दिया । वे संघर्ष की वह प्रतिमूर्ति हैं , जो अपनी माँ , पिता , श्वसुर एवं पति की मृत्यु के पश्चात भी न टूटी और न झुकी ही। तब ऐसे संकटकाल में भी अपने धनाढ्य सगे सम्बंधियों से आर्थिक सहयोग उन्होंने नहीं मांगा था।

विवाह के बाद जब तक उनकी माँ जीवित थीं , ससुराल आना-जाना लगा रहता था। पति उच्च शिक्षा प्राप्त थें, परंतु दुर्भाग्य से अथवा अपनों के छल से, उनका व्यवसाय ठीक से चला नहीं। फिर भी मायके की छत्रछाया में उनका दाम्पत्य जीवन सुखमय थी। लम्बी प्रतीक्षा के बाद एक नन्ही परी का आगमन उनकी माँ के रहते ही हो गया था। माँ ने तो पहले से ही नाती हो या नातिन सारी व्यवस्था कर रखी थी। लेकिन, काकी माँ के धैर्य की कठोर परीक्षा तब शुरू हुई , जब माँ का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया। ऐसे में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी बमुश्किल ही हो पा रहा था । काकी माँ को तेल और नमक से चावल खाते कभी सगे- संबधियों ने नहीं देखा । कभी- कभी इस मुट्ठी भर चावल के लिये भी पैसे नहीं होते थें। उन्हें हल्दीराम का भुजिया और समोसा अत्यंत प्रिय है। कोलकाता में थीं, तो बाबा दिन भर तरह तरह के चाट और महंगे फल भेजा करते थें। शाम को वह बूढ़ा नौकर भेलपुरी बनवा कर लाता था। मलाई गिलौरी, मलाई लड्डू, काजू एवं पिस्ता बर्फी से लेकर संदेश, राजभोग , खीरमोहन और वह शुद्ध देशी घी का सोनपापड़ी तो नीचे कारखाने से ही आ जाया करता था। लेकिन यह ससुराल में अपने मुहल्ले के चौक पर स्थित प्रसिद्ध दुकान से वह बड़ा वाला समोसा जो, तब पचास पैसे में मिलता था , उस एक छोटे सिक्के की व्यवस्था भी कठिन थी।

परंतु उनका व्यक्तित्व इतना विराट था कि दरवाजे पर लटके पर्दे के पीछे के अपने जीवन संघर्ष की भनक तक उन्होंने अपने संयुक्त परिवार को लगने नहीं दिया। उनके हाथ की बिना घी लगी रोटी , कभी कड़ी नहीं हुआ करती थी। छोटी सी लौकी से वे रसेदार सब्जी इतना स्वादिष्ट बनाती थीं कि पकवान का स्वाद तक फीका पड़ जाता था। दीपावली - होली जैसे पर्व घर आने वाले मेहमानों को उनके हाथों से बने व्यंजन इस तरह पसंद थें कि सबसे पहले वे काकी माँ के दरवाजे पर ही उनके पति अथवा पुत्री का नाम लेकर आवाज लगाया करते थें। कांजीबड़ा, दहीबड़ा, मालपुआ सहित तरह - तरह के पकवान बनाने की व्यवस्था वे कैसे कर लेती थीं, यह रहस्य उनके दिवंगत पति भी नहीं जान सके थें।

हाँ,उनके शरीर पर से गहने एक-एक कर कम होते चले गये, फिर भी अपनी इस उदासी को पर्दे के उस पार नहीं जाने दिया। वह बालक जो समझदार हो गया था, उसे जब कभी वे अपने खाली हुये शरीर के उन अंगों को दिखलाती थीं, जिनपर मायके से मिले स्वर्णाभूषण शोभा बढ़ता थें, तो काकी माँ की डबडबाई आँखों में जिस दर्द को उसने देखा है, उसे कोई बड़े घर की बेटी ही सहन कर सकती है। फिर भी औरों के यहाँ आयोजित मांगलिक कार्यक्रमों में वे खाली हाथ कभी नहीं गयीं। बाद में एक दौर वह भी आया ,जब काकी माँ को सुबह से शाम तक चौका - बर्तन करते देखा गया। मायके में जिन हाथों से वे झाड़ू पोछा तक नहीं करती थीं। उन्हीं नाजुक कलाइयों से वे घंटे भर चटनी और मसाला पीसा करती थीं , क्यों कि उनके पति का व्यापार जब चौपट हो गया, तो पिता ने उन्हें नालायक समझ अपनी दुकान में मालिक नहीं, वरन् अघोषित सेवक के रुप में जगह दे रखी थी। सो, श्वसुर और उनकी मित्र मंडली के भोजन की सारी व्यवस्था काकी माँ ही किया करती थीं। श्रम उनका था और धन ससुर जी का।

देखें न नियति को यह भी कहाँ मंजूर था। ससुर जी ने जैसे ही आँखें बंद की , उनके पति को अपने ही सगे सम्बंधियों ने पिता की दुकान से बेदखल कर दिया। यह घृणित कार्य करते हुये , तनिक भी नहीं पसीजे थें, उनके भाई- भतीजे। बिल्कुल सड़क पर आ गया यह दम्पति। जीवकोपार्जन के लिये किसी तरह से एक छोटे से विद्यालय में नौकरी मिली थी उनके पति को। घर पर काकी माँ भी छोटे बच्चों को पढ़ा लिया करती थी। एक चिन्ता और थी उन्हें , पुत्री के लिये योग्य वर की खोज पूरी नहीं हो पा रही थी। उन्होंने तो बड़े घर की नातिन और अपने इकलौती संतान के लिये कितने ही स्वप्न संजोये थें। काकी माँ योग्य जमाता के लिये अनगिनत बार ईश्वर से प्रार्थना करती थीं,पर उन्हें क्या पता कि अग्नि परीक्षा तो अभी बाकी है और एक दिन ठंड के मौसम में विद्यालय जाते समय उनके पति की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। जो पिता सुबह से रात तक स्कूल-कोचिंग पढ़ा अपनी पुत्री के हाथ पीले करने का स्वपन साठ वर्ष की अवस्था में देख रहा था। वह सड़क दुर्घटना का शिकार हो गया। बाहदुर पुत्री ने ही तब पिता का अंतिम संस्कार किया था, क्यों कि सम्पन्न होकर भी सगे सम्बंधियों ने कभी भी उनकी आर्थिक स्थिति समझने का प्रयत्न नहीं किया । अतः बेटी ने पुत्र बन पिता को मुखाग्नि दी थी। वह बालक जिसे काकी माँ ने बचपन में बड़ा दुलार दिया था। वह भी उनके संकट में काम नहीं आया। वह तो किसी दूसरे प्रांत में दो वक्त की रोटी के लिये गुलामी कर रहा था।

अब बचीं माँ - बेटी । काकी माँ अपने जर्जर मकान में छोटे बच्चों को पढ़ाया करती थीं और उनकी पुत्री ने भी एक निजी विद्यालय में नौकरी कर ली। तब उनके मन में एक ही प्रश्न था कि किस अपराध का दण्ड मिला है। अपने मांग का सिंदूर तो उजड़ गया , परंतु पुत्री के हाथ पीले कैसे हो। अनेक प्रांतों में अति सम्पन्न रिश्तेदार जिसके हो , जिसने कितनी ही शादियों में अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज करवाई है। उसके आंगन में शहनाई बजवाने वाला कोई नहीं !

डगमगाने लगा था उनका स्वाभिमान। तभी एक चमत्कार सा हुआ और एक उच्चकुल के सुशील लड़के ने उनकी पुत्री का हाथ थाम लिया। इस तरह से काकी माँ के संघर्षपूर्ण जीवन का धुंध छंट गया। अब वे अपनी पुत्री, जमाता और सुंदर से नाती के साथ रहती हैं। इस अवस्था में भी दुर्बल तन को किसी तरह संभाल वे घर का काम काज किया करती हैं। अब वह प्यारा चंचल बालक जब नानी- नानी पुकारते हुये खिलखिलाता है , तो अतीत के आईने में काकी माँ को उसी का मुखड़ा नजर आता है। उस बच्चे के परवरिश में वे अपनी सारी वेदनाओं को न जाने कब का भूल चुकी हैं। काकी माँ अब बेहद खुश हैं, परंतु वृद्धावस्था ने अपना प्रभाव दिखलाना शुरू कर दिया है। फिर भी वे कोलकाता वाले उस शैतान बालक को भुला नहीं पायी हैं।


- व्याकुल पथिक

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विलायती बोलीः बनावटी लोग ****************************************** हमारे संस्कार से जुड़े दो सम्बोधन शब्द जो हम सभी को बचपन में ही दिये जाते थें , " प्रणाम " एवं " नमस्ते " बोलने का , वह भी अब किसमें बदल गया है, इस आधुनिक भद्रजनों के समाज में... *******************************************

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मेरा प्यार कह रहा है,मैं तुझे खुदा बना दूँ

17 सितम्बर 2018
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मेरा प्यार कह रहा है, मैं तुझे खुदा बना दूँ ***************************************** विडंबना यह है कि मन के सौंदर्य में नहीं बाह्य आकर्षक में अकसर ही पुरुष समाज खो जाता है। पत्नी की सरलता एवं वाणी की मधुरता से कहीं अधिक वह उसके रंगरूप को प्राथमिकता देता है ****************************************

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किसी का दर्द मिल सके , तो ले उधार ...

22 सितम्बर 2018
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किसीका दर्द मिल सके तो ले उधार ****************************** अब देखें न हमारे शहर के पोस्टग्रेजुएट कालेज के दो गुरुदेव कुछ वर्ष पूर्व रिटायर्ड हुये। तो इनमें से एक गुरु जी ने शुद्ध घी बेचने की दुकान खोल ली थी,तो दूसरे अपने जनरल स्टोर की दुकान पर बैठ टाइम पास करते दिखें । हम कभी तो स्वयं से पूछे क

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अपने पे भरोसा है तो एक दाँव लगा ले..

25 सितम्बर 2018
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अपने पे भरोसा है तो एक दाँव लगा ले...***********************पशुता के इस भाव से आहत गुलाब पंखुड़ियों में बदल चुका था और गृह से अन्दर बाहर करने वालों के पांव तल कुचला जा रहा था। काश ! यह जानवर न आया होता, तो उसका उसके इष्ट के मस्तक पर चढ़ना तय था। पर, नियति को मैंने इतना अधिकार नहीं दिया है कि वह मु

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ऐसा सुंदर सपना अपना जीवन होगा ...

26 सितम्बर 2018
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ऐसा सुंदर सपना अपना जीवन होगा *************************** मैं तो बस इतना कहूँगा कि यदि पत्नी का हृदय जीतना है , तो कभी- कभी घर के भोजन कक्ष में चले जाया करें बंधुओं , पर याद रखें कि गृह मंत्रालय पर आपका नहीं आपकी श्रीमती जी का अधिकार है। रसोईघर से उठा सुगंध आपके दाम्पत्य जीवन को निश्चित अनुराग से भ

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व्याकुल पथिकः

29 सितम्बर 2018
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आपके कर्मों की ज्योति अब राह हमें दिखलायेगी-----------------------------------------कुछ यादें कुछ बातें, जिनकी पाठशाला में मैं बना पत्रकार***************************एक श्रद्धांजलि श्रद्धेय राजीव अरोड़ा जी को***********************किया था वादा आपने कभी हार न मानेंगे ,बनके अर्जुन जीवन रण में जीतेंगे हा

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ओ दूर के मुसाफिर हमको भी साथ लेले रे

30 सितम्बर 2018
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ओ दूर के मुसाफ़िर हम को भी साथ ले ले रे******************** मैं छोटी- छोटी उन खुशियों का जिक्र ब्लॉग पर करना चाहता हूँ, उन संघर्षों को लिखना चाहता हूँ, उन सम्वेदनाओं को उठाना चाहता हूँ, उन भावनाओं को जगाना चाहता हूँ, जिससे हमारा परिवार और हमारा समाज खुशहाली की ओर बढ़े । बिना धागा, बिना माला इन बिख

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गुजरा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा, हाफ़िज़ खुदा तुम्हारा

1 अक्टूबर 2018
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गुज़रा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा , हाफ़िज़ खुदा तुम्हारा********************************आज रविवार का दिन मेरे आत्ममंथन का होता है। बंद कमरे में, इस तन्हाई में उजाला तलाश रहा हूँ। सोच रहा हूँ कि यह मन भी कैसा है , जख्मी हो हो कर भी गैरों से स्नेह करते रहा है।*************

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जागते रहेंगे और कितनी रात हम..

4 अक्टूबर 2018
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जागते रहेंगे और कितनी रात हम ... ************************सच कहूँ, तो मेरा अब तक का अपना चिन्तन जो रहा है, वह यह है कि पुरुष व्यर्थ में श्रेष्ठ होने के दर्प में जी रहा है ,क्यों कि वह नारी ही जो अपने प्रेम, समर्पण और सानिध्य से उसे सम्पूर्णता देती है। यहाँ उसका सहज कर्म योग है।**********************

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इस्तीफा जो नज़ीर न बना...

6 अक्टूबर 2018
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इस्तीफा जो नज़ीर न बना ..( बातें, कुछ अपनी- कुछ जग की ) ************************* सोच रहा हूँ कि जिस नज़ीर की बात उस समय शीर्ष पर स्थित राजनेता कर रहे थें। उनके उस चिन्तन का क्या हश्र हुआ ,इस आधुनिक भारत में ..? क्या आज शीर्ष पर बैठें राजनेता, अधिकारी से लेकर परिवार का मुखिया तक किसी भी मामले में

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माँ, महालया और मेरा बाल मन

7 अक्टूबर 2018
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माँ , महालया और मेरा बाल मन...************************** आप भी चिन्तन करें कि स्त्री के विविध रुपों में कौन श्रेष्ठ है.? मुझे तो माँ का वात्सल्य से भरा वह आंचल आज भी याद है। ****************************जागो दुर्गा, जागो दशप्रहरनधारिनी, अभयाशक्ति बलप्रदायिनी, तुमि जागो... माँ - माँ.. मुझे

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कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है

12 अक्टूबर 2018
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कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है..******************** पुरुष समाज में से कितनों ने अपनी अर्धांगिनी में देवी शक्ति को ढ़ूंढने का प्रयास किया अथवा उसे हृदय से बराबरी का सम्मान दिया..? शिव ने अर्धनारीश्वर होना इसलिये तो स्वीकार किया। पुरुष का पराक्रम और नारी का हृदय यह किसी कम्प्यूटर के हार्डवेय

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जब किसी से गिला रखना

14 अक्टूबर 2018
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जब किसी से कोई गिला रखना ************************ यहाँ मैं गृहस्थ, विरक्त और संत मानव जीवन की इन तीनों ही स्थितियों को स्वयं की अपनी अनुभूतियों के आधार पर परिभाषित करने की एक मासूम सी कोशिश में जुटा हूँ। *************************मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यूँ नह

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जब तक मैंने समझा जीवन क्या है , जीवन बीत गया..

17 अक्टूबर 2018
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जब तक मैंने समझा जीवन क्या है ,जीवन बीत गया...********************************रावण का पुतला दहन हम नहीं भूले हैं। लेकिन, भ्रष्टाचार, अनाचार और कुविचार से ग्रसित हो हम

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है ये कैसी डगर चलते हैं सब मगर ..

21 अक्टूबर 2018
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है ये कैसी डगर चलते हैं सब मगर... ************************मैं और मेरी तन्हाई के किस्से ताउम्र चलते रहेंगे , जब तक जिगर का यह जख्म विस्फोट कर ऊर्जा न बन जाए , प्रकाश बन अनंत में न समा जाए।***************************(बातेंःकुछ अपनी, कुछ जग की)कल सुबह अचानक फोन आया ..अंकल! महिला अस्पताल में पापा ने आ

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वसुधैव कुटुम्बकम का दर्पण यूँ कैसे चटक गया...

22 अक्टूबर 2018
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वसुधैव कुटुम्बकम का दर्पण यूँ क्यों चटक गया..********************बड़ी बात कहीं उन्होंने ,यदि हम इतना भी त्याग नहीं कर सकते तो आखिर फिर क्यों दुहाई देते हैं वसुधैव कुटुम्बकं की ? शास्त्र कहते हैं कि आदर्श बोलते तो है पर उसका पालन नहीं करते तो पुण्य क्षीण होता है ।****************गुज़रो जो बाग से तो दु

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वो जुदा हो गये देखते देखते...

27 अक्टूबर 2018
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वो जुदा हो गए देखते देखते..*************************दबाव भरी पत्रकारिता हम जैसे फुल टाइम वर्कर के लिये जानलेवा साबित हो रही है। पहले प्रेस छायाकार इंद्रप्रकाश श्रीवास्तव की दुर्घटना में मौत और एक और छायाकार कृष्णा का घायल होना,वरिष्ठ क्राइम रिपोर्टर दिनेश उपाध्याय का मौत के मुहँ से निकल कर किसी तरह

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आदमी मुसाफिर है, आता है जाता है..

29 अक्टूबर 2018
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दिवंगत पत्रकार की श्रद्धांजलि सभा में फफक कर रो पड़ी केंद्रीय राज्यमंत्री अनुप्रिया ----------आदमी मुसाफिर है, आता है, जाता है************************** पत्रकारिता जगत ही नहीं समाजसेवा के हर क्षेत्र में यदि हम त्यागपूर्ण तरीके से अपना कर्म करेंगे, तो समाज हमारा ध्यान आज इस अर्थ प्रधान युग में भी रखता

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रस्म-ए- उल्फ़त को निभाएं तो निभाएं कैसे

1 नवम्बर 2018
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रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएं तो निभाएं कैसे..********************** एक बात मुझे समझ में नहीं आती है कि इस अमूल्य जीवन की ही जब कोई गारंटी नहीं है, तो फिर क्यों इन संसारिक वस्तुओं से इतनी मुहब्बत है। खैर अपना यह जीवन आग और मोम का मेल है, कभी यह सुलगता है, तो कभी वह पिघलता है...***********************दर्द

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आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन..

4 नवम्बर 2018
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आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन ..***************************** यहाँ मंदिर पर बड़े लोग सैकड़ों डिब्बे मिठाई दनादन बंधवा रहे हैं। ये बेचारे मजदूर तो ऊपरवाले का नाम ले, अपने मन की इच्छाओं का दमन कर लेते हैं , परंतु इन गरीबों के बच्चों को कभी आप ने दूर से टुकुर-

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मुझसे पहले तू जल जाएगा...

7 नवम्बर 2018
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मुझसे पहले तू जल जायेगा.. दीपोत्सव पर्व को लेकर बजारों में रौनक है। कल धनतेरस पर करोड़ों का व्यापार हुआ है। बड़े प्रतिष्ठान चाहे जो भी हो,धन सम्पन्न ग्राहकों का प्रथम आकर्षण वहीं केंद्रित रहता है। छोटे -छोटे दुकानदार फिर भी कुछ उदास से ही दिख रहे हैं , इस चकाचौंध भरे त्योहार में। सो, हमारा प्रयास हो

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कितना मुश्किल है पर भूल जाना...

8 नवम्बर 2018
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कितना मुश्किल है पर भूल जाना...(दीपावली और माँ की स्मृति)*******************************हमें तो उस दीपक की तरह टिमटिमाते रहना है ,जो बुझने से पहले घंटों अंधकार से संघर्ष करता है, वह भी औरों के लिये, क्यों कि स्वयं उसके लिये तो नियति ने " अंधकार " तय कर रखा है..******************************बिछड़ गया

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दुनिया सुने इन खामोश कराहों को...

10 नवम्बर 2018
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दुनिया सुने इन खामोश कराहों को..***************************असली तस्वीर तो अपने शहर के भद्रजनों की इस कालोनी का यह चौकीदार है और उसके सिर ढकने के लिये प्रवेश द्वार पर बना छोटा सा यह छाजन है, जहाँ एक कुर्सी है और शयन के लिये पत्थर का पटिया है।****************************इस समूह में इन अनगिनत अनचीन्ही

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आदमी बुलबुला है पानी का..

13 नवम्बर 2018
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आदमी बुलबुला है पानी का..****************************मृतकों के परिजनों के करुण क्रंदन , भय और आक्रोश के मध्य अट्टहास करती कार्यपालिका की भ्रष्ट व्यवस्था के लिये जिम्मेदार कौन..************************* यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बस्ते हैं ग़ज़ब ये है की अपनी मौत की आहट नहीं सुनते ख़ुदा जाने यह

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ठहर जाओ सुनो मेहमान हूँ मैं चंद रातों का..

15 नवम्बर 2018
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मेरे दिल से ना लो बदला ज़माने भर की बातों का ठहर जाओ सुनो मेहमान हूँ मैं चँद रातों का चले जाना अभी से किस लिये मुह मोड़ जाते हो खिलौना, जानकर तुम तो, मेरा दिल तोड़ जाते हो मुझे इस, हाल में किसके सहारे छोड़ जाते हो खिलौना ... खिलौना फिल्म की यह गीत और यह मेहमान ( अतिथि ) शब्द मेरे जीवन की सबसे कड़वी

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ये ज़िद छोड़ो,यूँ ना तोड़ो हर पल एक दर्पण है..

20 नवम्बर 2018
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ये ज़िद छोड़ो, यूँ ना तोड़ो हर पल एक दर्पण है ..***************************ये जीवन है इस जीवन का यही है, यही है, यही है रंग रूप थोड़े ग़म हैं, थोड़ी खुशियाँ यही है, यही है, यही है छाँव धूप ये ना सोचो इसमें अपनी हार है कि जीत है उसे अपना लो जो

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दिल से कदमों की आवाज़ आती रही

2 दिसम्बर 2018
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दिल से कदमों की आवाज़ आती रही************************हो, गुनगुनाती रहीं मेरी तनहाइयाँदूर बजती रहीं कितनी शहनाइयाँज़िंदगी ज़िंदगी को बुलाती रहीआप यूँ फ़ासलों से गुज़रते रहेदिल से कदमों की आवाज़ आती रहीआहटों से अंधेरे चमकते रहेरात आती रही रात जाती रही... कैसी विडंबना है मानव जीवन का कि कर्म नहीं नि

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ढूंढती हैं नजर तू कहां है मगर

6 दिसम्बर 2018
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ढूँढती हैं नज़र तू कहाँ हैं मगर*****************************हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ हैअब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमेंयाद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी सेरात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमेंज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमेंये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें ... कहने को तो पत

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आईना वोही हता है, चेहरे बदल जाते हैं

14 दिसम्बर 2018
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आईना वो ही रहता है , चेहरे बदल जाते हैं *****************************जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगेकिराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है.. तो मित्रों , सियासी आईने की तस्वीर एक बार फिर बदल गयी । जिन्हें गुमान था , उनका विजय रथ रसातल में चला गया। सिंहासन पर बैठे वज़ीर बदल गये हैं। भारी जश्न है चार

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यातना गृह

31 जुलाई 2019
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यातना गृह..!*********** मीरजापुर के एक रईस व्यक्ति के " करनी के फल " पर लिखा संस्मरण***************************** यह पुरानी हवेली उसके लिये यातना गृह से कम नहीं है..मानों किसी बड़े गुनाह के लिये आजीवन कारावास की कठोर सजा मिली हो .. ऐसा दंड कि ताउम्र इस बदरंग हवेली के चहारदीवारी के पीछे उस वृ

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रामनाम सत्य..!

3 अगस्त 2019
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रामनाम सत्य ..!!!***************( लघु कथा )रामनाम सत्य .. रामनाम सत्य.. क्या कोई शवयात्रा है ? सड़क पर तो ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा था.. फिर क्यों भरी दुपहरी में यह व्यक्ति ऐसे बुदबुदा रहा था .! क्या यह उसका अंतर्नाद है अथवा विरक्त मन की आवाज ..ठीक से समझ नहीं

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काकी माँ

11 अगस्त 2019
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काकी माँ..**************************** काकी माँ तो सचमुच बड़े घर की बेटी हैं। संकटकाल में भी वक्त के समक्ष न तो वे नतमस्तक हुईं , न ही अपने मायके एवं ससुराल के मान- सम्मान पर आंच आने दिया । वे संघर्ष की वह प्रतिमूर्ति हैं ।*************************** काकी माँ..

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माँ तुझे ढ़ूंढता रहा अपनों में

14 अगस्त 2019
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जन्म दिन पर एक बालक की अपनी माँ से प्रार्थना है कि वह अपने उस स्नेह को उसकी स्मृति से हटा ले ,जिसकी तलाश में उसे तिरस्कृत एवं अपमानित होना पड़ता है। ------------------------------------------------माँ तुझे ढ़ूंढता रहा अपनों में***********

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हम न संत बन सके

25 अगस्त 2019
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माँ की छाया ढ़ूंढने में सर्वस्व लुटाने वाले एक बंजारे का दर्द --( जीवन की पाठशाला )--------------------------------------हम न संत बन सके***************शब्द शूल से चुभे , हृदय चीर निकल गये दर्द जो न सह स

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ज़ख्म दिल के

2 सितम्बर 2019
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ज़ख्म दिल के************(जीवन की पाठशाला)कांटों पे खिलने की चाहत थी तुझमें,राह जैसी भी रही हो चला करते थे ।न मिली मंज़िल ,हर मोड़ पर फिरभी अपनी पहचान तुम बनाया करते थे।है विकल क्यों ये हृदय अब बोल तेरादर्द ऐसा नहीं कोई जिसे तुमने न सहा।ज़ख्म जो भी मिले इस जग से तुझेसमझ,ये पाठशाला है तेरे जीवन की।शुक्रिय

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ज़िंदगी तूने क्या किया

6 सितम्बर 2019
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ज़िदगी तूने क्या किया*****************( जीवन की पाठशाला से )जीने की बात न कर लोग यहाँ दग़ा देते हैं।जब सपने टूटते हैंतब वो हँसा करते हैं। कोई शिकवा नहीं,मालिक ! क्या दिया क्या नहीं तूने।कली फूल बन के अब यूँ ही झड़ने को है।तेरी बगिया में हम ऐसे क्यों तड़पा करते हैं ?ऐ

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ऐसे थें मेरे शिक्षक.. ( संस्मरण)

7 सितम्बर 2019
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ऐसे थें मेरे शिक्षक .. *************** विद्वतजनों से भरा सभाकक्ष , मंच पर बैठे शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी एवं सम्मानित होने वाले वे दर्जन भर शिक्षक जो स्नातकोत्तर महाविद्यालय से लेकर प्राइमरी पाठशालाओं से जुड़े हैं मौजूद थें। सभ

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सत्य का अनुसरणःएक यक्ष प्रश्न

10 सितम्बर 2019
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सत्य का अनुसरणः एक यक्ष प्रश्न ?************************( जीवन की पाठशाला से )*************************आज का मेरा विषय यह है कि यदि मैंने यह कह दिया होता - " हाँ, पिताजी यह स्याही की बोतल मुझसे ही गिरी है।" तो मेरे इस असत्य वचन से मेरा परिवार नहीं बिखरता।************************* जहां में सबसे ज

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ख़ामोश होने से पहले

12 सितम्बर 2019
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ख़ामोश होने से पहले **************** ख़ामोश होने से पहले हमने देखा है दोस्त, टूटते अरमानों और दिलों को, सर्द निगाहों को सिसकियों भरे कंपकपाते लबों को और फिर उस आखिरी पुकार को रहम के लिये गिड़गिड़ाते जुबां को बदले में मिले उ

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मयंक का हठयोग

15 सितम्बर 2019
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मयंक का हठयोग ( लघु कथा ) ********* अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर सुबह का

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क्या खोया क्या पाया जग में

18 सितम्बर 2019
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क्या पाया क्या खोया जग में**********************गुरु कृपा से उपजे ज्योति गुरू ज्ञान बिन पाये न मुक्तिमाया का जग और ये घरौंदाफिर-फिर वापस न आना रे वंदे पत्थर-सा मन जल नहीं उपजेहिय की प्यास बुझे फिर कैसे.. भावुक व्यक्ति की सबसे बड़ी कमजोरी यह होती है कि वह अपने प्रति किसी के द्वारा दो बोल सहानुभूति

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सजदा

21 सितम्बर 2019
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सजदा*******न कभी सजदा कियाना दुआ करते हैं हम दिल से दिल को मिलाया बोलो,ये इबादत क्या कम है। दर्द जो भी मिला ख़ुदा ! तेरी दुनियाँ से कोई शिकवा न किया बोलो,ये बंदगी क्या कम है ।कांटों के हार को समझ नियति का उपहारहर चोट पे मुस्कुरायाबोलो,ये सब्र क्या कम है।अपनों से मिले ज़ख्म पे ग़ैरों ने लगाया

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माँ , महालया और मेरा बालमन

27 सितम्बर 2019
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माँ , महालया और मेरा बालमन...************************** आप भी चिन्तन करें कि स्त्री के विविध रुपों में कौन श्रेष्ठ है.? मुझे तो माँ का वात्सल्य से भरा वह आंचल आज भी याद है। ****************************जागो दुर्गा, जागो दशप्रहरनधारिनी,अभयाशक्ति बलप्रदायिनी, तुमि जागो... माँ - माँ.. मुझे भी महाल

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सुर मेरे..

29 सितम्बर 2019
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सुर मेरे...सुर मेरे ! उपहार बन जा जिसे पा न सका जीवन में सुन , मेरा वो प्यार बन जा फिर न पुकारे हमें कोई तू ही वह दुलार बन जा खो गये हैं स्वप्न हमारे दर्द की पहचान बन जा न कर रूदन, मौन हो अब सुर, मेरा वैराग्य बन जा जीवन की तू धार बन जा राधा का घनश्याम बन तू प्रह्लाद का विश्वास बन ना ध

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पथिक ! जो बोया वो पाएगा

1 अक्टूबर 2019
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पथिक ! जो बोया वो पाएगा------. अंतराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर********************* बारिश में भींगने के कारण पिछले चार-पांच दिनों से गंभीर रूप से अस्वस्थ हूँ। स्थिति यह है कि बिस्तरे पर से कुर्सी पर बैठन

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गाँधी तेरा सत्य ही मेरा दर्पण

3 अक्टूबर 2019
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गाँधी तेरा सत्य ही मेरा दर्पण**********************" हम कोई महात्मा गाँधी थोड़े ही हैं कि समाजसेवा की दुकान खोल रखी है। किसी दूसरे विद्यालय में दाखिला करवा लो अपने बच्चे का.." पिता जी के स्वभाव में अचानक

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हमारी छोटी-छोटी खुशियाँ

9 अक्टूबर 2019
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हमारी छोटी- छोटी खुशियाँ********************* भाग -1 उस उदास शाम भी मैं जीवन की शून्यता और दर्द से स्वयं को उभारने की कोशिश में जुटा हुआ था कि किसी ने आवाज लगायी.. " सा'ब , खुरमा ताजा है, लेंगे ? " " ले आओं भाई दस का " -मैंने कहा। ठेलेवाले की पुकार सुनकर उस दिन न जाने क्यों मैं स्वयं को रोक न

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स्नेह भरे ये पर्व..

13 अक्टूबर 2019
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हमारी छोटी-छोटी खुशियाँ( भाग- 2)*************************** परम्पराओं के वैज्ञानिक पक्ष को तलाशने की आवश्यकता है , उसमें समय के अनुरूप सुधार और संशोधन हो , न कि उसका तिरस्कार और उपहास ..**************************** यह परस्पर प्रेम

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इक वो भी दीपावली थी..

18 अक्टूबर 2019
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हमारी छोटी-छोटी खुशियाँ( भाग- 3 )*************************** सच कहूँ तो पहले अभाव में भी खुशियाँ थीं और अब इस इक्कीसवीं सदी में सबकुछ होकर भी खुशियों का अभाव है।**************************** पिछले कुछ महीनों में स्वास्थ्य तेजी से गिरा है, फिर भी ठीक पौने चार बजे ब्रह्ममुहूर्त में शैय्या त्याग

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सामाजिक स्नेह की प्रथम अनुभूति (हमारी छोटी-छोटी खुशियाँ)

23 अक्टूबर 2019
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हमारी छोटी- छोटी खुशियाँ ( भाग- 4) दीपावली की वह शाम************************** नियति ने हमारे लिये क्या तय कर रखा है, हम नहीं जानते, कहाँ तो मैं इस चिंता में दुःखी था कि घर पहुँचने पर भोजन क्या कर

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रोशनी के साथ क्यों धुआँ उठा चिराग से

30 अक्टूबर 2019
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हमारी छोटी-छोटी खुशियाँ (भाग -5)************************** मैं अपनी भावनाओं से ऊपर उठकर इन दीपकों की तरह अपने दर्द को अपनी खुशी बनाने की कला सीख रहा हूँ। आँसू को मोती समझना यदि आ गया ,तो जीवन की पाठशाला में हो रही इस कठिन परीक्षा में स्वयं को सफल समझूँगा। *************************** सुबह के स

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जेकर जाग जाला फगिया उहे छठी घाट आये.

2 नवम्बर 2019
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जेकर जाग जाला फगिया उहे छठी घाट आये..**************आठ दशक पूर्व खत्री परिवार ने मीरजापुर में शुरू की थी छठपूजा*******************काँच ही बांस के बहंगिया बहँगी लचकत जायेपहनी ना पवन जी पियरिया गउरा घाटे पहुँचायगउरा में सजल बाटे हर फर फलहरियापियरे पियरे रंग शोभेला डगरिया

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शब्दबाण

14 नवम्बर 2019
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शब्दबाण********************************* उसके वह कठोर शब्द - " कौन हूँ मैं ..प्रेमिका समझ रखा है.. ? व्हाट्सअप ब्लॉक कर दिया गया है..फिर कभी मैसेज या फोन नहीं करना.. शांति भंग कर रख दिया है ।" यह सुनकर स्तब्ध रह गया था मयंक.. ********************************** अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर

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कलुआ ( जीवन की पाठशाला )

20 नवम्बर 2019
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**************************कलुआ होने का उसे कोई मलाल नहीं है..यह तो उसके श्रम की निशानी है..। हाँ, उसके निश्छल हृदय को कोई काला-कलूटा न कहे..इंसानों की इस बस्ती में फिर कोई शुभचिंतक उसे न छले..और कोई कामना नहीं है उसकी..।*************************अरी सुनती हो.. !जरा देख

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नारी-सम्मान पर डाका ?

8 दिसम्बर 2019
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नारी-सम्मान पर डाका ?*********************************पुत्र के मामले में माता-पिता और पति के मामले में पत्नी की दृष्टि जबतक सजग नहीं होगी , पुरुषों के ऐसे पाशविक वृत्ति एवं कृत्य पर अंकुश नहीं लग सकेगा********************************

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माँ ! एक सवाल मैं करूँ ? ( जीवन की पाठशाला )

25 दिसम्बर 2019
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माँ ! एक सवाल मैं करूँ ? ( जीवन की पाठशाला )*************************** इस सामाजिक व्यवस्था के उन ठेकेदारों से यह पूछो न माँ - " बेटा-बेटी एक समान हैं , तो दो- दो बेटियों के रहते बाबा की मौत किसी भिक्षुक जैसी स्थिति में क्यों हुई.. क्रिसमस की उस भयावह रात के पश्चात हमदोनों के जीवन में उजाला क्यों

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पथिक! काहे न धीर धरे

30 दिसम्बर 2019
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पथिक! काहे न धीर धरे( जीवन की पाठशाला )----आत्म उद्बोधन---- ज़िदगी में ग़म है ग़मों में दर्द है दर्द में मज़ा है मज़े में हम है.. वर्ष 2019 का समापन मैं कुछ इसी तरह के अध्यात्मिक चिंतन संग कर रहा हूँ , परंतु ऐसा भी नहीं है कि इस ज्ञानसूत्र से मेरा हृदय आलोकित हो उठा है। असत्य बोल कर क्यों कथन

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नया सवेरा

27 जुलाई 2020
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नया सवेरा *************************** लॉकडाउन ने क्षितिज को गृहस्वामी होने के अहंकार भरे " मुखौटे" से मुक्त कर दिया था, तो शुभी भी इस घर की नौकरानी नहीं रही। प्रेमविहृल पति-पत्नी को आलिंगनबद्ध देख मिठ्ठू पिंजरे में पँख फड़फड़ाते हुये..*************************** क्षितिज कभी मोबाइल तो कभी टीवी

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आत्माराम

1 अगस्त 2020
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आत्माराम उसके घर का रास्ता बनारस की जिस प्रमुख मंडी से होकर गुजरता था। वहाँ यदि जेब में पैसे हों तो गल्ला-दूध , घी-तेल, फल-सब्जी, मेवा-मिष्ठान सभी खाद्य सामग्रियाँ उपलब्ध थीं।लेकिन, इन्हीं बड़ी-बड़ी दुकानों के मध्य यदि उसकी निगाहें किसी ओर उठती,तो वह सड़क के नुक्कड़ पर स्थित विश्वनाथ साव की कचौड़

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यादों की ज़ंजीर

6 अगस्त 2020
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यादों की ज़ंजीर रात्रि का दूसरा प्रहर बीत चुका था, किन्तु विभु आँखें बंद किये करवटें बदलता रहा। एकाकी जीवन में वर्षों के कठोर श्रम,असाध्य रोग और अपनों के तिरस्कार ने उसकी खुशियों पर वर्षों पूर्व वक्र-दृष्टि क्या डाली कि वह पुनः इस दर्द से उभर नहीं सका है। फ़िर भी इन बुझी हुई आशाओं,टूटे हुये हृद

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माँ का रुदन

13 अगस्त 2020
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माँ का रुदन************** अरे ! ये कैसा रुदन है..? स्वतंत्रता दिवस पर्व पर उल्लासपूर्ण वातावरण में देशभक्ति के गीत गुनगुनाते हुये चिरौरीलाल शहीद उद्यान से निकला ही था कि किसी स्त्री के सिसकने की आवाज़ से उसके कदम ठिठक गये थे। ऐसे खुशनुमा माहौल में रुदन का स्वर सुन च

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सज़ा

21 अगस्त 2020
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सज़ा**** पौ फटते ही उस मनहूस रेलवे ट्रैक के समीप आज फिर से भीड़ जुटनी शुरू हो गयी थी। यहाँ रेल पटरी के किनारे पड़ी मृत विवाहिता जिसकी अवस्था अठाइस वर्ष के आस-पास थी, को देखकर उसकी पहचान का प्रयास किया जा रहा था। सूचना पाकर पुलिस भी आ च

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इतनी बड़ी सज़ा

23 अगस्त 2020
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इतनी बड़ी सज़ा************* शहर की उस तंग गली में सुबह से ही तवायफ़ों के ऊपर तेजाब फेंके जाने से कोहराम मचा था। मौके पर तमाशाई जुटे हुये थे। कुछ उदारमना लोग यह हृदयविदारक दृश्य देख -- " हरे राम- हरे राम ! कैसा निर्दयी इंसान था.. ! सिर्फ़ इतना कह कन्नी काट ले रहे थे। " एक दरिंदा जो इस

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नौकरानी

27 अगस्त 2020
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नौकरानी********** समीप के देवी मंदिर में कोलाहल मचा हुआ था। मुहल्ले की सुहागिन महिलाएँ पौ फटते ही पूजा का थाल सजाये घरों से निकल पड़ी थीं। उनके पीछे- पीछे बच्चे भी दौड़ पड़े थे। उधर,आकाँक्षा इन सबसे से अंजान सिर झुकाए नित्य की तरह घर के बाहर गली में मार्निंग वॉक कर रही थी । वह भूल चुकी थी कि

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फेरीवाला

3 सितम्बर 2020
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फेरीवाला **********(जीवन के रंग) वही अनबुझी-सी उदासी फिर से उसके मन पर छाने लगी थी। न मालूम कैसे यह उसके जीवन का हिस्सा बन गयी है कि दिन डूबते ही सताने चली आती है। बेचैनी बढ़ने पर मुसाफ़िरख़ाने से बाहर निकल वह भुनभुनाता है-- किस मनहूस घड़ी में उसका नाम रजनीश रख दिया गया है ,जबकि उसके खुद की ज़िदगी म

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मोक्ष

7 सितम्बर 2020
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मोक्ष*****(जीवन के रंग) बचपन से ही वह सुनता आ रहा है कि जैसा कर्म करोगे-वैसा फल मिलेगा , किन्तु अब जाकर इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि पाप-पुण्य की परिभाषा सदैव एक-सी नहीं होती है। बहुधा उदारमना व्यक्ति को भी कर्म की इसी पाठशाला में ऐसा भयावह दंड मिलता है कि उसकी अंतर्रात्मा यह कह चीत्कार कर उठती है

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यादों की ज़ंजीर

12 सितम्बर 2020
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यादों की ज़ंजीर(जीवन के रंग) रात्रि का दूसरा प्रहर बीत चुका था, किन्तु विभु आँखें बंद किये करवटें बदलता रहा। एकाकी जीवन में वर्षों के कठोर श्रम,असाध्य रोग और अपनों के तिरस्कार ने उसकी खुशियों पर वर्षों पूर्व वक्र-दृष्टि क्या डाली कि वह पुनः इस दर्द से उभर नहीं सका है। फ़िर भी इन बुझी हुई आशाओं,टूटे

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