ज़ख्म दिल के
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(जीवन की पाठशाला)
कांटों पे खिलने की चाहत थी तुझमें,
राह जैसी भी रही हो चला करते थे ।
न मिली मंज़िल ,हर मोड़ पर फिरभी
अपनी पहचान तुम बनाया करते थे।
है विकल क्यों ये हृदय अब बोल तेरा
दर्द ऐसा नहीं कोई जिसे तुमने न सहा।
ज़ख्म जो भी मिले इस जग से तुझे
समझ,ये पाठशाला है तेरे जीवन की।
शुक्रिया कह उसे ,जिसने ये दर्द दिये
तेरी संवेदना सुंगध बन,जो महकती है।
पहचान उन्हें भी जो न थें अपने कभी
ग़ैर हैं जो उनके लिये,न रोया करते हैं।
करे उपहास-तिरस्कार न हो फ़र्क़ तुझे
इस सफर में मुसाफिर तो चला करते हैं।
माँ को ढ़ूँढो नहीं इस तरह पगले उनमें
तेरी आँसुओं पे वाह-वाह किया करते हैं।
न तू अपराध है न पाप फिर से सुन ले
कहने दे गुनाह, दोस्ती को न समझते हैं।
तेरी बगिया नहीं वीरान है फूल खिले
तेरे कर्मों की पहचान,ये दुआ करते हैं
बात ऐसी भी न कर ये राही खुद से
जीत की बाजी यूँ न गंवाया करते हैं ।
है चिर विधुर तू, न तेरा कोई पर्व यहाँ
विधाता की नियत पे,नहीं शक करते हैं।
- व्याकुल पथिक