सुर मेरे...
सुर मेरे ! उपहार बन जा
जिसे पा न सका जीवन में
सुन , मेरा वो प्यार बन जा
फिर न पुकारे हमें कोई
तू ही वह दुलार बन जा
खो गये हैं स्वप्न हमारे
दर्द की पहचान बन जा
न कर रूदन, मौन हो अब
सुर, मेरा वैराग्य बन जा
जीवन की तू धार बन जा
राधा का घनश्याम बन तू
प्रह्लाद का विश्वास बन ना
ध्रुव का हरिनाम बन कर
सुर, मेरा ब्रह्मज्ञान बन जा
अंतरात्मा की आवाज बन
निरंकार - ओंकार बन जा
गीता और क़ुरआन बन ना
झंकृत करे विकल हिय को
तू मीरा की वीणा बन जा
आँखें न रहे कभी मेरी तो
इस " सूर " का साज़ बनना
बनें हम भी बुद्ध- महावीर
तू ही अनहद नाद बन जा
करे उद्घोष सत्य का हम
पथिक का सतनाम बन जा
-व्याकुल पथिक
( जीवन की पाठशाला )