28 जुलाई 2018
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मानव जीवन की वेदनाओं को समेटी हुईंं मेरी रचनाएँ अनुभूतियों पर आधारित हैं। हृदय में जमा यही बूँद-बूँद दर्द मानव की मानसमणि है । यह दुःख ही जीवन का सबसे बड़ा रस है,सबको मांजता है,सबको परखता है।अतः पथिक को जीवन की इस धूप-छाँव से क्या घबड़ाना, हँसते-हँसते सह लो सब ।
,मानव जीवन की वेदनाओं को समेटी हुईंं मेरी रचनाएँ अनुभूतियों पर आधारित हैं। हृदय में जमा यही बूँद-बूँद दर्द मानव की मानसमणि है । यह दुःख ही जीवन का सबसे बड़ा रस है,सबको मांजता है,सबको परखता है।अतः पथिक को जीवन की इस धूप-छाँव से क्या घबड़ाना, हँसते-हँसते सह लो सब ।
,मानव जीवन की वेदनाओं को समेटी हुईंं मेरी रचनाएँ अनुभूतियों पर आधारित हैं। हृदय में जमा यही बूँद-बूँद दर्द मानव की मानसमणि है । यह दुःख ही जीवन का सबसे बड़ा रस है,सबको मांजता है,सबको परखता है।अतः पथिक को जीवन की इस धूप-छाँव से क्या घबड़ाना, हँसते-हँसते सह लो सब ।
,मानव जीवन की वेदनाओं को समेटी हुईंं मेरी रचनाएँ अनुभूतियों पर आधारित हैं। हृदय में जमा यही बूँद-बूँद दर्द मानव की मानसमणि है । यह दुःख ही जीवन का सबसे बड़ा रस है,सबको मांजता है,सबको परखता है।अतः पथिक को जीवन की इस धूप-छाँव से क्या घबड़ाना, हँसते-हँसते सह लो सब ।
परम श्रधेय गुरुदेव को इतनी श्रद्धा और दिखावे रहित भावना से किसी ने भी याद नहीं किया होगा | सचमुच जीवन में कितना मुश्किल है सरल होना और ये सरल भाव ही तो भगवान् को भी प्रिय है तभी तो शबरी के निश्छल प्रेम के वशीभूत हो जूठे बेर खाने से भी परहेज नहीं किया प्रभु ने | इस मंच पर आलोक जी आपको कितने स्नेह से पढ़ रहे हैं ये देखकर मुझे अपार प्रसन्नता हुई | उनका पढना आपके लेखन की सफलता है भाई | सस्नेह
29 जुलाई 2018
प्रिय शशि भाई रोज आपके ब्लॉग पर एक नजर मार लेती थी पर पिछले दो दिन बड़ी व्यस्तता के रहे और आपका ब्लॉग पढ़ नहीं पायी | आज आपके जन्म दिन के बारे में जान कर अपार हर्ष हुआ |आपको मेरी और से ढेरों शुभकामनायें | और हमारी प्यारी छोटी बहन श्वेता ने ब्लॉग पर कितनी सुंदर पंक्तियाँ लिख दी आपके लिए और कितना सार्थक प्रश्न किया | अंततः जीवन का सार यही है कि जिसके पास कुछ नहीं वो तो अधूरा है ही पर सब कुछ साथ होने का दावा करने वाले भी कहाँ चैन का जीवन जी पाते हैं ? एक बार फिर शुभकामना |!
29 जुलाई 2018
बहुत अच्छा लिख रहे हैं - `` हो सकता है कि यह जो अनाशक्ति का भाव है उसी ने मेरे जीवन में एक खालीपन सा ला दिया है जिसकी भरपाई मैं ब्लॉग लेखन से कर रहा हूं। जहां से कुछ सीखने को मिल रहा है वही मेरा गुरु है। शरीर की सूखी हड्डियों के घर्षण से उत्पन्न ज्ञान के प्रकाश से युक्त गुरु के लिये भी भक्त द्वारा की गई प्रशंसा मेघ बन उस ज्ञान रुपी दीपक को बुझा सकती है।`` यह किसी लेखक की अभिव्यक्ति नहीं शशि जी , आत्मा की शैली है |
29 जुलाई 2018