4 सितम्बर 2018
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मानव जीवन की वेदनाओं को समेटी हुईंं मेरी रचनाएँ अनुभूतियों पर आधारित हैं। हृदय में जमा यही बूँद-बूँद दर्द मानव की मानसमणि है । यह दुःख ही जीवन का सबसे बड़ा रस है,सबको मांजता है,सबको परखता है।अतः पथिक को जीवन की इस धूप-छाँव से क्या घबड़ाना, हँसते-हँसते सह लो सब ।
,मानव जीवन की वेदनाओं को समेटी हुईंं मेरी रचनाएँ अनुभूतियों पर आधारित हैं। हृदय में जमा यही बूँद-बूँद दर्द मानव की मानसमणि है । यह दुःख ही जीवन का सबसे बड़ा रस है,सबको मांजता है,सबको परखता है।अतः पथिक को जीवन की इस धूप-छाँव से क्या घबड़ाना, हँसते-हँसते सह लो सब ।
,मानव जीवन की वेदनाओं को समेटी हुईंं मेरी रचनाएँ अनुभूतियों पर आधारित हैं। हृदय में जमा यही बूँद-बूँद दर्द मानव की मानसमणि है । यह दुःख ही जीवन का सबसे बड़ा रस है,सबको मांजता है,सबको परखता है।अतः पथिक को जीवन की इस धूप-छाँव से क्या घबड़ाना, हँसते-हँसते सह लो सब ।
,मानव जीवन की वेदनाओं को समेटी हुईंं मेरी रचनाएँ अनुभूतियों पर आधारित हैं। हृदय में जमा यही बूँद-बूँद दर्द मानव की मानसमणि है । यह दुःख ही जीवन का सबसे बड़ा रस है,सबको मांजता है,सबको परखता है।अतः पथिक को जीवन की इस धूप-छाँव से क्या घबड़ाना, हँसते-हँसते सह लो सब ।
बहुत अच्छा लेख है | इस समस्या में मैं सारा दोष युवा पीढ़ी को नहीं दूंगा | इसमें कुछ दोष हमारी शिक्षा पद्धति और समाज के पिछड़ेपन का भी है | हमारे समय में हमें बचपन से ही देश के आदर्श पुरुषों की कहानियां सुनाई जाती थी , शिक्षा प्रद नाटक दिखाए जाते थे , हर घड़ी हर पल हम पर दृष्टि रखी जाती थी == हम कहाँ जा रहें हैं , क्या कर रहें हैं | पूरे घर मैं एक व्यक्ति का शासन चलता था | सब एक दूसरे से जुड़े रहते थे | सबमें आपस मैं प्यार अपनापन होता था | पर अब सब कुछ बिखर गया है | न माँ बाप बच्चों को पर्याप्त प्यार दे पा रहे हैं , न उनके साथ कुछ समय व्यतीत कर उन्हें अपने से जोड़ पा रहे हैं | इसलिए उन्हें ब स जहाँ भी ज़रा सा अपनापन प्यार मिलता है वो उसके लिए समर्पित हो जाते है |
6 सितम्बर 2018
प्रिय शशिभाई -- आपने जब कल मेल से दोनों बच्चों की मौत की खबर की कतरन भेजी तो मेरा मन बहुत व्याकुल हो उठा | मेरे दोनों बच्चे भी युवावस्था की नाजुक दहलीज पर हैं |अतः सब बच्चों में उनकी छवि देखती हूँ या कहूं मुझे नजर आ जाती है | उनको समझाने और उनका मन टटोलने की भरसक कोशिश रहती है पर कोई अनजान सी आशंका भयभीत भी कर देती है | बढ़ते भौतिकवादी युग में किशोर और युवा भी अति संवेदनशील और अतिवादी हो चले हैं | वे गाँव गली की मर्यादायों और वर्जनाओं से दूर हो हर वर्जना तोड़ने को आतुर हैं | पर इन युवाओं को ये भूलना नहीं चाहिए प्रेम शाश्वत है , उसकी मंजिल जरुर मिलना ही नहीं | पर वे पगले अति भावुकता में ये बात समझने को तैयार नहीं होते कि उनका जीवन अनमोल है | वे पढ़े लिखें और आत्मनिर्भर हों और तब ऐसे निर्णय जरुर उनके पक्ष में खुद - ब -खुद हो जायेंगे |इस मर्मान्तक घटना पर आपका मर्मस्पर्शी चिंतन बहुत विचलित- सा कर गया | बच्चो के मातापिता की दशा का स्मरण कर आँखें नम हो गईं | हर बच्चे को देख यही दुआ निकलती है कि वे सलामत रहें और अपयश का शिकार कभी ना हों | माँ बाप और बच्चों -दोनों का एक दूसरे पर विश्वास जरुर होना चाहिए | माता पिता को भी आज बहुत आत्म मंथन की जरूरत है | सुंदर भावपूर्ण लेखन के लिए आपको आभार |
4 सितम्बर 2018