11 अगस्त 2018
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मानव जीवन की वेदनाओं को समेटी हुईंं मेरी रचनाएँ अनुभूतियों पर आधारित हैं। हृदय में जमा यही बूँद-बूँद दर्द मानव की मानसमणि है । यह दुःख ही जीवन का सबसे बड़ा रस है,सबको मांजता है,सबको परखता है।अतः पथिक को जीवन की इस धूप-छाँव से क्या घबड़ाना, हँसते-हँसते सह लो सब ।
,मानव जीवन की वेदनाओं को समेटी हुईंं मेरी रचनाएँ अनुभूतियों पर आधारित हैं। हृदय में जमा यही बूँद-बूँद दर्द मानव की मानसमणि है । यह दुःख ही जीवन का सबसे बड़ा रस है,सबको मांजता है,सबको परखता है।अतः पथिक को जीवन की इस धूप-छाँव से क्या घबड़ाना, हँसते-हँसते सह लो सब ।
,मानव जीवन की वेदनाओं को समेटी हुईंं मेरी रचनाएँ अनुभूतियों पर आधारित हैं। हृदय में जमा यही बूँद-बूँद दर्द मानव की मानसमणि है । यह दुःख ही जीवन का सबसे बड़ा रस है,सबको मांजता है,सबको परखता है।अतः पथिक को जीवन की इस धूप-छाँव से क्या घबड़ाना, हँसते-हँसते सह लो सब ।
,मानव जीवन की वेदनाओं को समेटी हुईंं मेरी रचनाएँ अनुभूतियों पर आधारित हैं। हृदय में जमा यही बूँद-बूँद दर्द मानव की मानसमणि है । यह दुःख ही जीवन का सबसे बड़ा रस है,सबको मांजता है,सबको परखता है।अतः पथिक को जीवन की इस धूप-छाँव से क्या घबड़ाना, हँसते-हँसते सह लो सब ।
आपने सही कहा " जहां में ऐसा कौन है के जिसको गम मिला नहीं " मैं आपके रुदन में डूबे हुये शब्दों को भलीभांति समझ सकती हूँ .अभी कुछ ही दिनों पहले अपने प्यारे पापा मैं जिनकी सबसे लाड़ली थी और जिनके बिना मैं जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती थी उनको खोया है और एक आंसू ना गिरा पाई क्युकी माँ को जो संभालना था .ये रुदन अब भी नासूर बन टीस मरता रहता है .हम दोस्त एक दूसरे को शब्दों के माध्यम से ही सही अपनी पीड़ा साझा कर सकते है .
13 अगस्त 2018
प्रिय शशि भाई -- अंतर्वेदना को शब्दों में बांध आपने किस तरह ये लेख लिखा होगा ये समझना कोई मुश्ल्किल नही है | अपने जीवन के उन लम्हों यादों में जीना बहुत बड़ी पीड़ा देता है | और ये अपनी अपनी नियति भी है कि जीवन में आकस्मिक आघात लगें तो कोई ना कोई संभाल ले तो जीना कुछ आसान हो जाता है |पर यदि ऐसे समय पर कोई अपना - अपनापन ना दिखाए तो जीवन बहुत बोझिल हो जाता है | अगर माता- पिता में से कोई एक आपके साथ होते तो निश्चित रूप से उन्हें अपने लाडले का घर बसाने की चिंता जरुर होती | ऐसे दुनिया में अनगिन लोग हैं जिन्हें दुःख - विपादा में दूर के अपनों या फिर अपनों जैसे कथित बेगाने लोगों ने हर तरह का संबल दिया है अपनी वेदना ने आपको स्वयं दृष्टा बना दिया है |आपने वेदना के रस्ते मुक्ति पथ की अवधारणा को समझ उसे बड़े उदार मन से अपना भी लिया है | कोई और इतना कैसे समझ पाता है | वेदना - के रूप अनेक है | बुद्ध की वेदना सबकुछ होने की बोझिलता से उत्पन्न थी तो आम आदमी कुछ ना कुछ की तलाश में वेदना में डूबा रहता हो तो कहीं नियति सबकुछ छीन कर इंसान को इस वेदना से जोड़ देती है | वेदना में इंसान खुद के रूबरू खड़ा हो जाता है पर जीना तो हर हाल में पड़ता है |- अंततः नानक दुखिया सब संसार !!अच्छा है ये गम आसूं के रास्ते बह जाएँ अन्यथा भीतर जमा हो नासूर सरीखे बन जाते हैं |
12 अगस्त 2018