कोरोना और
महावीर जयन्ती
जय श्री
वर्द्ध्मानाय स्वामिने विश्ववेदिने
नित्यानन्द
स्वभावाय भक्तसारूप्यदायिने |
धर्मोSधर्मो ततो हेतु सूचितौ सुखदुःखयो:
पितु: कारण
सत्त्वेन पुत्रवानानुमीयते ||
आज चैत्र शुक्ल त्रयोदशी है – भगवान् महावीर स्वामी की
जयन्ती का पावन पर्व | तो सबसे पहले तो सभी को
महावीर जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ… हमें याद है हमारे पितृ नगर नजीबाबाद में –
जहाँ जैन लोग बहुत अधिक तादाद में हैं... महावीर जयन्ती के अवसर पर जैन मन्दिर में
बहुत बड़ा आयोजन प्रातः से सायंकाल तक चलता था... जैन अध्येता होने के कारण हमें भी
वहाँ बुलाया जाता था... और सच में बहुत आनन्द आता था... दिल्ली में भी कई बार
महावीर जयन्ती के कार्यक्रमों में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ...
सभी जानते हैं कि महावीर स्वामी जैन धर्म के चौबीसवें
और अन्तिम तीर्थंकर थे | अब तीर्थंकर
किसे कहते हैं ? तीर्थं करोति स तीर्थंकर: – अर्थात जो अपनी साधना के माध्यम से
स्वयं संसार सागर से पार लगाने वाले तीर्थों का निर्माण करें वह तीर्थंकर |
तीर्थंकर का कर्तव्य होता है कि वे अन्यों को भी आत्मज्ञान के मार्ग
पर अग्रसर करने का प्रयास करें | इसी क्रम में प्रथम
तीर्थंकर हुए आचार्य ऋषभदेव और अन्तिम अर्थात चौबीसवें तीर्थंकर हुए भगवान् महावीर
– जिनका समय ईसा से 599-527 वर्ष पूर्व माना जाता है |
णवकार मन्त्र में सभी तीर्थंकरों को नमन किया गया है “ॐ णमो
अरियन्ताणं” | समस्त जैन आगम अरिहन्तों द्वारा ही भाषित हुए
हैं |
जैन दर्शन मानता है कि प्रत्येक वस्तु अनन्तधर्मात्मक
है और संसार की समस्त वस्तुएँ सदसदात्मक हैं | जैन दर्शन हमारे विचार से पूर्ण रूप से सम सामयिक दृष्टि है... सम्यग्दर्शन,
सम्यग्चरित्र तथा सम्यग्चिन्तन की भावना पर सबसे अधिक बल जैन दर्शन
में ही दिया गया है... और आज जिस प्रकार से सामाजिक परिदृश्य में, राजनीतिक परिदृश्य में, यहाँ तक कि पारिवारिक परिदृश्य
में भी जिस प्रकार से एक असहमति, कुण्ठा आदि का विकृत रूप देखने को मिलता है उससे
यदि मुक्ति प्राप्त हो सकती है तो वहाँ केवल ये सम्यग्दर्शन,
सम्यक्चरित्र और सम्यक्चिन्तन की भावनाएँ ही काम आएँगी... समस्त संसार यदि
सम्यग्दर्शन, सम्यग्चरित्र तथा सम्यग्चिन्तन की भावना को
अंगीकार कर ले तो बहुत सी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त हो सकती है – क्योंकि इस
स्थिति में समता का भाव विकसित होगा और फिर किसी भी प्रकार की ऊँच नीच अथवा किसी
भी प्रकार के ईर्ष्या द्वेष क्रोध घृणा इत्यादि के लिए कोई स्थान ही नहीं रह
जाएगा...
ये तो हुआ दार्शनिक पक्ष | व्यावहारिक और सामाजिक पक्ष
की यदि बात करें तो अपरिग्रह, अहिंसा, संयम और सेवा आदि जितने भी व्यवहारों पर भगवान महावीर स्वामी ने बल दिया
है वे सभी न केवल वर्तमान कोरोना काल में, अपितु सदा के लिए
मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए उपयोगी हैं | जैसे...
अहिंसा – अर्थात किसी प्रकार की मनसा वाचा कर्मणा हिंसा
का त्याग करें | परस्पर मैत्री भाव रखते हुए कोरोना के सम्बन्ध में जो दिशा
निर्देश दिए गए हैं उनका पालन करेंगे तो इस आपदा के समय अपना स्वयं का बचाव करते
हुए एक दूसरे के सहायक सिद्ध हो सकते हैं | लॉकडाउन में आवश्यक
होने पर यदि किसी कार्य से घर से बाहर निकलना भी पड़ जाता है तो शान्ति बनाए रहे, यहाँ
वहाँ हमारी सुरक्षा के लिए तत्पर पुलिस के समक्ष भी विनम्र रहें, उनसे झगड़ने की अपेक्षा उनके बताए दिशा निर्देशों का पालन करें ताकि स्थिति
उग्र न हो और किसी प्रकार की अहिंसा की स्थिति उत्पन्न न होने पाए |
अपरिग्रह – अभी तो हमारे लिए कोरोना परिग्रह बना हुआ है
– सारे संसार को इसने बन्धक बनाया हुआ है | तो क्यों न कुछ समय के लिए अपनी सभी
इच्छाओं का त्याग करके केवल सीमित मूलभूत आवश्यकताओं की ही पूर्ति पर ध्यान दिया
जाए – वो भी मिल बाँटकर ? आजकल इस प्रकार के समाचार भी प्राप्त हो रहे हैं कि कुछ
व्यक्तियों ने दवाओं आदि को अपने घरों में स्टोर करना आरम्भ कर दिया है कि न जाने
कब आवश्यकता पड़ जाए | अनावश्यक रूप से किसी वस्तु को अपने पास रखना ही परिग्रह
कहलाता है | क्योंकि प्रस्तरकालीन मानव की ही भाँति आज कुछ व्यक्तियों की सोच यही
बन चुकी है कि पहले स्वयं को बचाएँ, दूसरों के साथ चाहे जो हो | इस भावना से
मुक्ति प्राप्त करने के लिए अपरिग्रह का आचरण अपनाने की आवश्यकता है |
सेवा – यदि हम सम्यग्दर्शन,
सम्यग्चरित्र तथा सम्यग्चिन्तन के सिद्धान्त का पालन करेंगे तो सबको
एक समान मानते हुए असहाय तथा अशक्त व्यक्तियों की सहायता के लिए भी आगे आ सकेंगे –
और वह भी किसी पुरूस्कार अथवा नाम के लिए नहीं – न ही इसलिए कि सेवा करते हुए
समाचार पत्रों में हमारे चित्र प्रकाशित हो जाएँगे | क्योंकि वास्तविक सेवा वह
होती है कि जिसका किसी को पता भी न चल सके – जैसे कहा जाता है कि दान इस प्रकार
होना चाहिए कि एक हाथ दान करे तो दूसरे हाथ को उसका भान भी न होने पाए | आज
सेवाकार्य करते हुए चित्र खिंचवाना तथा उन्हें सोशल नेटवर्किंग पर पोस्ट करने की
जैसे एक होड़ सी लगी हुई है | वास्तव में सेवाकार्य करना चाहते हैं तो इस भावना से
ऊपर उठने की आवश्यकता है |
संयम
– महावीर स्वामी का एक सिद्धान्त संयम का आचरण भी है | संकट की घड़ी है, जन
साधारण के धैर्य की परीक्षा का समय है यह | कोरोना को हराना है तो धैर्य के साथ
घरों में रहने की आवश्यकता है | अनावश्यक रूप से घरों से बाहर निकलेंगे तो अपने
साथ साथ दूसरों के लिए भी समस्या बन सकते हैं | कोरोना के लक्षण दिखाई दें तो भी
धैर्य के साथ – संयम के साथ विचार चिकित्सक से सम्पर्क साधें ताकि समय पर उचित
चिकित्सा उपलब्ध हो सके |
और सबसे अन्त में लेकिन सबसे अधिक
महत्त्वपूर्ण मुखवस्त्रिका अर्थात मास्क | भगवान महावीर के अन्तिम सूत्र में
मुखवस्त्रिका का वर्णन है | मुख में वायु के माध्यम से किसी भी प्रकार के जीव का
प्रवेश होकर उसकी हिंसा न हो जाए इस भावना से मुखवस्त्रिका को आवश्यक बताया गया था
– जो कि कोरोना की रोकथाम में सबसे बड़ी आवश्यकता बन गई है | साथ ही बार बार हाथ
मुँह धोना और बाहर से आई प्रत्येक वस्तु को भी सेनिटायिज़ करके अर्थात साफ़ करके
उपयोग में लाना – इसका भी यही उद्देश्य था कि किसी प्रकार के कीटाणु उस वस्तु में
न रह जाएँ |
वे सभी सम्यग्दर्शन, सम्यग्चरित्र तथा सम्यग्चिन्तन के अन्तर्गत ही आते हैं | महावीर जयन्ती के
इस अवसर पर यदि हम इनका पालन करने का संकल्प ले लें तो कोरोना जैसी महामारी से
मुक्त होने में सहायता प्राप्त हो सकती है |
तो इस प्रकार की उदात्त भावनाओं का प्रसार करने वाले
भगवान महावीर को नमन करते हुए प्रस्तुत हैं कुछ पंक्तियाँ...
हे महावीर शत नमन तुम्हें, शत वार तुम्हें है नमस्कार
तुम्हारी कर्म श्रृंखला देव हमारी संस्कृति का श्रृंगार
|
हे महावीर श्रद्धा से नत शत वार तुम्हें है नमस्कार
जो पथ दिखलाया तुमने वह है सकल मनुजता का आधार ||
तुमने दे दी हर प्राणी को जीवन जीने की अभिलाषा
ममता के स्वर में समझा दी मानव के मन की परिभाषा |
बन गीत और संगीत जगत को हर्ष दिया तुमने अपार
हे महावीर श्रद्धा से नत शत वार तुम्हें है नमस्कार ||
तुमको पाकर रानी त्रिशला के संग धरती माँ धन्य हुई
विन्ध्याचल पर्वत से कण कण में करुणाभा फिर व्याप्त हुई
|
तुमसे साँसों को राह मिली,
जग में अगाध भर दिया प्यार
हे महावीर श्रद्धा से नत शत वार तुम्हें है नमस्कार ||
तुम श्रम के साधक, कर्म विजेता, आत्मतत्व के ज्ञानी तुम
सम्यक दर्शन, सम्यक चरित्र
और अनेकान्त के साधक तुम |
सुख दुःख में डग ना डिगें कभी,
समता का तुमने दिया सार
हे महावीर श्रद्धा से नत शत वार तुम्हें है नमस्कार ||
हे महावीर शत नमन तुम्हें, शत वार तुम्हें है नमस्कार
तुम्हारी कर्म श्रृंखला देव हमारी संस्कृति का श्रृंगार
|
हे महावीर श्रद्धा से नत शत वार तुम्हें है नमस्कार
जो पथ दिखलाया तुमने वह है सकल मनुजता का आधार ||
अस्तु, भगवान महावीर
स्वामी की जयन्ती पर यदि हम उनके सिद्धान्तों - सम्यग्दर्शन, सम्यग्चरित्र तथा सम्यग्चिन्तन - का पालन करने का संकल्प ले लें तो कोरोना
जैसी महामारी से मुक्त होने में सहायता प्राप्त हो सकती है... तो, इनका पालन करते हुए सुरक्षा निर्देशों का पालन करते हुए सभी स्वस्थ
रहें... सुरक्षित रहें... इसी कामना के साथ सभी को महावीर जयन्ती की हार्दिक
शुभकामनाएँ...