अजीब मसला है जिंदगी का।
लोग कहने लगे है, रही जिंदगी, तो दुनियाँ जहां को समझ लेंगे।
लहरे भी अनगिनत होंगी कोरोना की अभी, तीसरी का इंतजार है।
पहली लहर से घबराए भागे, मौत से बचने के लिए योंही जिंदगियां गवा दिए रोड, रेल ट्रैक पर।
दीन दानवीरों की टोलियां मद्दत किया उनकी जो प्रवासी मजदूर बन गए थे।
अजीब मसला है जिंदगी का।
दूसरी लहर में कुछ न थमा शिवा मानव की सासों के रेल बेस योंही दौड़ती रही।
एक तरफ अस्पताल में मौत का मंजर रहा। गली के दोनों कोनो से एक तरफ से, लाश के वास्ते, दूसरी तरफ बरात के वास्ते।
शहर की लाशें समशान और कब्रो में, गाँवों की लाशें गंगा यमुना की धारा में।
अजीब मसला है जिंदगी का।
जन जन लगा रहा आत्मनिर्भर बनने में, देश आत्मनिर्भर बन सका हाथ फैलाया दुनियाँ में।
राजनीति अब ओछी लगने लगी, तीमारदारों की बातों में।लाशों के अम्बार भी उन्हें कूड़े के ढेर लगते है, तरस नही खाती उनकी निगाहे सच को छुपाने में।
आत्मनिर्भर देश बन न सका, आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाते रहे चुनाव की रैलीयों में।
अजीब मसला है जिंदगी का।
कमा करोङो अरबो न बचा सके भाई-बहन, माँ-बाप के साथ अपनी संतानों को।
देख लाशों के मंजरों को गाँव शहर सब कॉप गए। अभी अधिकारी कहते है जांच होगी इन लाशों की।
कौन मरा कोरोना से, कौन मरा बुढापा से, कुछ तो अटैक, अस्थमा, मर गए सास की बीमारी से।
अजीब मसला है जिंदगी का।