कोविड 19 से 2021 तक
कुदरत की कहर से, शहर गाँव दोनो कॉप गए।
थम नही रही सासे, ऑक्सीजन की कमी से।
देवालय, विद्यालय, अस्पतालय सब एक हो गए।
अज़ान, घण्टियाँ, गुरु वाणी, चर्च प्रार्थना, सब थम से गए।
एम्बुलेंस के सायरन से, अब रूह, जान सब काँपने लगी।
देख लाशें कब्र और समशान में, आंकड़े धरे के धरे रह गए।
कभी दो बूंद जिंदगी को सारी दुनियाँ जानती थी।
कोविड वैक्सीन के नाम से अब दुनियाँ कापती है।
मीडियां अपने मुखरबिंदु से क्या कहे? वह भी शर्मसार है।
राजनीति प्रहार करने वाले, कोरोना के गिरप्त में आ गए।
ख़त, फोन, रुपये-पैसे की पोटलियां सभी बेकाम है।
कोरोना के प्रहार से ज्ञान और विज्ञान सकतें में है।
डॉक्टर थे भगवान कभी, उनके भी हाथ पैर फूलने लगे।
कानून भी अब मूक और अंधी नही रही, उसकी भी ज़ुबान खुलने लगी।
किसानों की आवाज बुलंद है अभी भी भारतीय सल्तनत के सामने।