छायावाद के चार प्रमुख स्तम्भों
में से एक महान
कवि निराला... नवगीत के
उद्भावक और प्रवर्तक... कल महाप्राण निराला जी की पुण्य तिथि के अवसर पर कुछ पंक्तियाँ श्रद्धांजलि
स्वरूप प्रस्तुत की थीं... जो आज आप सबों के साथ साँझा कर रहे हैं... निराला जी
जैसा भावुक और उदारमना कवि वास्तव में समस्त जगती के प्राणों में महाप्राण का
संचार करके जगत से विदा हुआ... जिसने कविता को
उन्मुक्त भाव से विचरण करने देने के लिए उसे छन्द के बन्धन से मुक्त कर दिया... एक
ऐसा भावुक हृदय जो अपनी लाडली बिटिया का अठारह वर्ष की आयु में निधन हो जाने पर
कहता है “मेरी बेटी की अठारह वर्ष की आयु में मृत्यु नहीं हुई,
उसने गीता के अठारह अध्याय जिए हैं... और उसके बाद उसके जीवन पर शाश्वत विराम लगा
है...” किसी पत्थरहृदय को विदीर्ण कर जाएँ पिता के ये भाव... जिसने अपनी बेटी की
स्मृति में एक “सरोज स्मृति” नाम से एक वृहद्काव्य ही रच डाला... जिसने अपनी बेटी
के विवाह के सन्दर्भों में समाज में व्याप्त कुरीतियों और परम्पराओं का निर्वाह
करने से दृढ़ शब्दों में मना कर दिया था... एक ऐसा स्नेहपूर्ण पिता जो अपनी पत्नी
के अभाव में अपनी लाडली की विवाह के सेज स्वयं सँवारता हुआ लिखता है कि अगर बेटी की माँ जीवित
होती तो गृहस्थी की कला सिखाती, मैं मैं भला क्या सिखा पाऊँगा...
“मुझ भाग्यहीन की तू सम्बल, युग वर्ष बाद जब हुई विकल,
दुख ही जीवन की कथा रही, क्या
कहूँ आज, जो नहीं कही
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हो इसी कर्म पर वज्रपात यदि धर्म रहे नत सदा माथ,
इस पथ पर, मेरे कार्य सकल हो
भ्रष्ट शीत के से शतदल ||
कन्ये, गत
कर्मों का अर्पण कर, करता मैं तेरा
तर्पण...”
शत
शत नमन ऐसे महान रचनाधर्मी को जो अपनी रचनाओं के रूप में सदा अमर हैं...
कात्यायनी...