Dasha Mahavidya
आज तीसरा नवरात्र है और नवरात्रों में कुछ तन्त्र साधक दश महाविद्याओं की सिद्धि के लिए भी साधना करते हैं | शाक्त सम्प्रदाय ने इस विश्वास को पोषित किया कि सर्वशक्तिमान केवल एक नारी ही है | वास्तव में शक्ति ही जीवन है, शक्ति ही सत्य है तथा शक्ति सर्वत्र व्याप्त भी है | फिर चाहे वह नवदुर्गा के नौ रूपों में प्रतिबिम्बित होती हो अथवा दशमहाविद्याओं के रूप में | दशमहाविद्याओं की साधना यद्यपि तान्त्रिक साधना है, किन्तु यदि साधारण साधक भी यदि इनकी सामान्य रूप से उपासना करें तो उनके लिए भी ये शुभ फलदायी होती हैं |
हिन्दू धर्म की तीन अन्तःप्रवाहित तथा परस्पर विरोधी धाराएँ हैं – जिनमें वैष्णव भगवान् विष्णु की उपासना करते हैं, शैव भगवान् शिव की पूजा अर्चना करते हैं तथा शाक्त माँ भगवती के शक्ति रूप की उपासना करते हैं – जो भगवान् विष्णु और शिव दोनों की ही अन्तःकरण की शक्ति हैं तथा वे ही प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से समस्त ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, स्थिति तथा लय की कारणभूता भी हैं | शिव यदि शिव अर्थात मंगल हैं तो शक्ति स्वयं प्रकाश है, और शिव तथा शक्ति के सम्मिलन से ही संसार की रचना होती है तथा रचना करना शक्ति का मूलभूत धर्म है | वै ज्ञान िक दृष्टि से भी यह सत्य प्रतीत होता है |
शाक्त विचारधारा के अनुसार भगवती दुर्गा ही पराशक्ति हैं | यही कारण है कि श्री दुर्गा भागवत पुराण – जिसका एक अंग श्री दुर्गा सप्तशती भी है – को शाक्त पुराण भी कहा जाता है | अन्य सभी सम्प्रदायों के ही सामान शाक्त सम्प्रदाय का भी उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति – परमतत्व की प्राप्ति – परम ज्ञान की प्राप्ति ही है | इसके लिए एकनिष्ठ साधना द्वारा उपलब्ध एक विशेष प्रकार की शक्ति की आवश्यकता होती है | अतः शाक्त सम्प्रदाय के लोग सशक्त बनने अर्थात सिद्धियाँ प्राप्त के लिए अनेक प्रकार से योग साधना तथा तन्त्र साधना करते हैं | इस क्रम में वे दश महाविद्याओं की उपासना करते हैं | इनके अनुसार शक्ति के इस दश रूपों में एक सत्य समाहित है – महाविद्या – महान ज्ञान – जिसके अन्तर्गत माँ भगवती के दश लौकिक व्यक्तित्वों की व्याख्या होती है | शक्ति के ये दश व्यक्तित्व हैं :-
काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी |
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा ||
बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका |
एता दश महाविद्या: सिद्धविद्या: प्रकीर्तिता ||
काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला ये दश महाविद्याएँ साधक को सिद्धि प्रदान करने वाली कही गई हैं |
देवी भागवत के अनुसार शिव और सती के विवाह से सती के पिता दक्ष अप्रसन्न थे | उन्होंने एक यज्ञ का आयोजन किया और शिव को अपमानित करने के उद्देश्य से उन्हें आमन्त्रित नहीं किया | किन्तु सती अपने पिता के घर यज्ञ में जाना चाहती थीं | शिव ने उन्हें रोकना चाहा तब सती ने स्वयं को महाकाली के भयानक रूप में परिवर्तित कर लिया | शिव घबराकर वहाँ से भागने लगे तो वे जिस भी दिशा में जाते उसी दिशा में उन्हें सती किसी न किसी रूप में मार्ग रोके खड़ी मिलतीं | अन्त में शिव ने उन्हें जाने दिया जहाँ दक्ष के द्वारा शिव की निन्दा किये जाने पर सती ने यज्ञ कुण्ड में अपने प्राणों की आहुति देकर दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया | इस प्रकार दशों दिशाओं में जो उनके दश रूप प्रकट हुए वे ही दश महाविद्या के नाम से जाने जाते हैं |
शिव पुराण के अनुसार माँ दुर्गा ने दश रूप धारण करके उनकी सहायता से दुर्गम दैत्य का वध किया था – ये ही देवी के दश रूप दश महाविद्या कहलाए | दश महाविद्याओं का यह समन्वित रूप इस तथ्य को भी सिद्ध करता है कि नारी वास्तव में सर्वशक्तिमान है | शाक्त दर्शन इन दश महाविद्याओं को भगवान विष्णु के दश अवतारों से भी सम्बद्ध करता है और साथ ही यह भी स्पष्ट करता है कि महाविद्याओं के ये दशों रूप चाहे भयानक हों अथवा सौम्य – जगज्जननी जगदम्बिका के रूप में पूज्यमान हैं |
इनके विषय में विस्तार से अगले लेख में…
ये दशो महाविद्याएँ समस्त कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली तथा सर्वार्थ का साधन करने वाली हैं, किन्तु इनकी उपासना की विधियाँ प्रायः तान्त्रिक हैं तथा बहुत कठिन हैं | और हमारा ऐसा मानना है कि गृहस्थी लोगों को इस प्रकार की तान्त्रिक उपासनाओं से प्रायः बचना चाहिए | यदि उपासना में थोड़ी सी भी चूक हो जाए तो न केवल साधक पर बल्कि उसके परिवार के लिए भी घातक सिद्ध हो सकती है |
देवी के सभी रूप समस्त संसार का कल्याण करें यही कामना है…