सूर्य
के उत्तरायण गमन के पर्व मकर संक्रान्ति की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ…
इस
शुभावसर पर प्रस्तुत है महाभारत के वनपर्व अध्याय तीन से उद्धृत सूर्य
अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्…
धौम्य
उवाच
सूर्योSर्यमा भगस्त्वष्टा पूषार्क: सविता रवि: |
गभस्तिमानज: कालो मृत्युर्धाता प्रभाकर: ||
पृथिव्यापश्च तेजश्च खं वायुश्च परायणम् |
सोमो बृहस्पति: शुक्रो बुधो अंगारक एव च ||
इन्द्रो विवस्वान् दीप्तांशु: शुचि: शौरि: शनैश्चर: |
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च स्कन्दो वै वरुणो यम: ||
वैद्युतो जाठरश्चाग्नि रैन्धनस्तेजसां पति: |
धर्मध्वजो वेदकर्ता वेदांगो वेदवाहन: ||
कृतं त्रेता द्वापरश्च कलि: सर्वमलाश्रय: |
कला काष्ठा मुहूर्त्ताश्च क्षपा यामस्तथा क्षण: ||
संवत्सरकरोऽश्वत्थ: कालचक्रो विभावसु: |
पुरुष: शाश्वतो योगी व्यक्ताव्यक्त: सनातन: ||
कालाध्यक्ष: प्रजाध्यक्षो विश्वकर्मा तमोनुद: |
वरुण: सागरोंSशश्च जीमूतो जीवनोSरिहा ||
भूताश्रयो भूतपति: सर्वलोकनमस्कृत: |
स्रष्टा संवर्तको वह्नि: सर्वस्यादिरलोलुप: ||
अनन्त: कपिलो भानु: कामद: सर्वतोमुख: |
जयो विशालो वरद: सर्वधातुनिषेचिता ||
मन:सुपर्णो भूतादि: शीघ्रग: प्राणधारक: |
धन्वन्तरिर्धूमकेतुरादिदेवो दिते: सुत: ||
द्वादशात्मारविन्दाक्ष: पिता माता पितामह: |
स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम् ||
देहकर्ता प्रशान्तात्मा विश्वात्मा विश्वतोमुख: |
चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा मैत्रेय: करुणान्वित: ||
सूर्य, अर्यमा, भग,
त्वष्टा, पूषा (पोषक), अर्क,
सविता, रवि, गभस्तिमान
(किरणों से युक्त), अज (अजन्मा), काल (काल अथवा समय), मृत्यु
(अवसान), धाता (धारण करने वाला), प्रभाकर (प्रकाश उत्पन्न
करने वाला), पृथ्वी, आप: (जल), तेज, ख (आकाश), वायु, परायण (आश्रयदाता), सोम, बृहस्पति,
शुक्र, बुध, अंगारक
(मंगल), इन्द्र, विवस्वान्, दीप्तांशु (दीप्त अर्थात प्रकाशित अंशु अर्थात किरणों से युक्त), शुचि
(पवित्र), सौरि (सूर्यपुत्र मनु), शनैश्चर,
ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र
(त्रिदेव) स्कन्द (कार्तिकेय), वैश्रवण (कुबेर), यम (संयमित अथवा सन्तुलित करने वाले), वैद्युताग्नि, जाठराग्नि, ऐन्धनाग्नि (विद्युत, जठर और ईंधन तीनों प्रकार की अग्नियाँ), तेज:पति, धर्मध्वज,
वेदकर्ता, वेदांग, वेदवाहन
(जिनके द्वारा वेदों की रचना हुई, जो वेदों के अंग भी हैं और
वेदों के वाहक भी), कृत (सत्ययुग), त्रेता, द्वापर, सर्वामराश्रय कलि, कला,
काष्ठा मुहूर्तरूप समय, क्षपा (रात्रि),
याम (प्रहर), क्षण, संवत्सरकर,
अश्वत्थ, कालचक्र प्रवर्तक विभावसु, शाश्वतपुरुष, योगी, व्यक्ताव्यक्त
(जोई व्यक्त अर्थात प्रत्यक्ष भी है और अव्यक्त अर्थात अप्रत्यक्ष भी), सनातन,
कालाध्यक्ष, प्रजाध्यक्ष, विश्वकर्मा, तमोनुद (अंधकार को भगाने वाले), वरुण, सागर, अंशु, जीमूत (मेघ), जीवन, अरिहा
(शत्रुओं का नाश करने वाले), भूताश्रय, भूतपति, सर्वलोकनमस्कृत, स्रष्टा, संवर्तक, वह्नि, सर्वादि, अलोलुप (निर्लोभ), अनन्त, कपिल,
भानु, कामद, सर्वतोमुख,
जय, विशाल, वरद, सर्वभूतनिषेवित, मन:सुपर्ण, भूतादि,
शीघ्रग (शीघ्र चलने वाले), प्राणधारण, धन्वन्तरि, धूमकेतु, आदिदेव,
अदितिपुत्र, द्वादशात्मा (बारह स्वरूपों वाले
– द्वादश आदित्य), अरविन्दाक्ष, पिता-माता-पितामह,
स्वर्गद्वार-प्रजाद्वार, मोक्षद्वार, देहकर्ता, प्रशान्तात्मा, विश्वात्मा,
विश्वतोमुख, चराचरात्मा, सूक्ष्मात्मा, मैत्रेय, करुणान्वित
(दयालु) |
ये सूर्य के 108 नाम महाभारत के
वनपर्व में उपलब्ध होते हैं जो सूर्योपनिषद के इस वाक्य की पुष्टि करते हैं कि
सूर्य ही आत्मा है “आदित्यात् ज्योतिर्जायते |
आदित्याद्देवा जायन्ते | आदित्याद्वेदा जायन्ते | असावादित्यो ब्रह्म |”
अर्थात आदित्य से प्रकाश उत्पन्न होता है, आदित्य से ही समस्त देवता उत्पन्न हुए हैं, आदित्य ही
वेदों का भी कारक है और इस प्रकार आदित्य ही ब्रह्म है |
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