नहीं हूं मैं,
रद्दी अखबार के जैसी,
दबी,कुचली,
किसी गृहस्थी की ,
अलमारी में बिछी,उपेक्षित।
मैं औरत हूं आज की,
स्वतंत्र परंपराओं ,
की पोषक,
नव युग का हस्ताक्षर।
हूं ,हर दिवस,
की महत्वपूर्ण सुर्खियां।
अपने बलबूते पर,
बदल सकूं मैं,
ये जमीं,आसमां।
मैं जन्मदायिनी,
प्रेम प्रदायिनी,
संस्कृति की उपासक,
आराधक,
हूं अमोल कृति,
उस सृष्टि नियंता की।
मैं परिवार की,
अहम सूत्रधार,
इस संसार का सार।
हूं जिम्मेदार बेटी,
एक पत्नी,
एक माँ।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'