देखे तो थे स्वप्न हजार,
मिले खुशहाल,
सुखी संसार।
देख रहे थे ,
नयन मधुर स्वप्न ,
पर जीवन के पृष्ठों पर ,
लिख रहा था ब्रम्ह ,
अमावस के अँधकार सघन।
जुडी़ आज ही थी,
एक नयी राह ,
मन पाले था आकांक्षा ,
एक नव प्रभात की चाह !
सोचता भरेगा
सुख से आज दामन,
पर भोर के ,
आवरण में लिपटकर,
आये जीवन में तिमिर गहन।
भोर के कंधे पर सिर टिकाकर,
अँधकार सदा सोता है ,
हर लड़की के भाग्य में,
सुखी संसार कहाँ होता है !!!!
प्रभा मिश्रा 'नूतन'