पूर्ण सत्य सुधा से भरकर,
कठिनाइयों के ताप में तपकर,
कांतियुक्त कुंदन बनकर,
परिभाषित होती ,मैं नारी हूँ।
समझदारी से तालमेल बिठाकर,
पर घर में सामंजस्य बनाकर,
दुख,क्लेश विस्मरण कर,
सम्मानित होती ,मैं नारी हूँ।
सहनशीलता से सधकर,
आत्मचिंतन में स्वयं को मथकर,
करके प्रयास सुख देकर,
प्रशंसित होती ,मैं नारी हूँ।
सर्वहित सर्वोपरि रखकर,
सदा संतुष्टि भाव में भरकर,
विपत्तियों में धैर्य धरकर,
सबको हिम्मत देती,मैं नारी हूँ।
संतानों में संस्कार गढ़कर,
उनका चरित्र निर्माण कर,
जीवन पथ पर अग्रसर कर,
हर उत्तरदायित्व वहन करती ,मैं नारी हूँ।
चमकी ,सबकी चमक देखकर,
खिली,खिली मुस्कान देखकर,
उड़ती ,उनकी उडा़न देखकर,
हर स्थिति में प्रसन्न ,मैं नारी हूँ।
स्वर्णिम शक्तियों से संचित होकर,
सुंदर भक्ति भाव से भरकर,
नित्य नेह का दीया जलाती,
हर सदस्य की कुशल मनाती,मैं नारी हूँ।
पर अत्याचार असह होकर,
जब बहता ,आँखों से कपोलों आकर,
तब काली का रूप धरकर,
अनाचार का दमन करती,मैं नारी हूँ।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'