हम बेटियां,
आंगन की चिडि़यां,
भरी आत्मविश्वास में,
जल नापें,
थल नापें,
ऊंचे उडे़ं आकाश में।
ना चिड़वे,
का मुंह ताकें,
ना बहेलियों से घबरायें हम,
अटूट साहस ,
के पंख पसारें,
तय खुद की,
करें दिशायें हम।
मधुर स्वप्नों,
के सुंदर मोती,
नयन सीपी,
में पालें हम,
आत्मनिर्भरता,
के दाने चुगते,
पूरा गगन,
संभाले हम।
तरस काग चिंतन,
पर जो,
अजन्मा हमको मारे हैं,
और क्रोध,
उन मनों पर जो,
श्री की ,
चकाचौंध से हारे हैं।
ये गृहलक्ष्मी के,
संहारक भूले,
सुंदर कुसुम ,
उपजायें हम,
सदाचार के,
पाठ पढा़ते,
बखूबी फर्ज,
निभायें हम।
दकियानूसी,
घन हम छांटें,
मायूसी को काटें हम,
तिमिर तिरोहित,
उम्मीदें खोजें,
निराशों में,
बिखरायें हम।
मुस्कानों के,
प्रसून खिलायें,
कोने कोने,
अपना परचम लहरायें हम।