shabd-logo

मेरे जीवन के दुस्वप्न

22 मई 2022

86 बार देखा गया 86
जीवन के दुःस्वप्न तुम मेरे,
क्यों नयनों की गलियों में,
        आकर लगाते रहते हो फेरे?
         क्या चाहिए अब तुम्हें मुझसे?
        क्यों आकर करते हो मुझे तंग?
छोड़ तो दी  थीं तुम्हारी गलियां,
                तुम्हारा घर और आंगन।
मजबूर तुम्हीं ने तो किया था ,
कितनी रोयी और गिड़गिडा़ई थी मैं,
छोड़ दो अपने ये कुकृत्य ,
            ये छल,फरेब ये मदिरापान,
कि नहीं है मुझे इस माहौल की आदत 
          दे दो अपने उर में थोडा़ तो सम्मान,
पर कहां तुम्हें फर्क पडा़ था?
         तुम तो अपनी खुशियों में जी रहे थे।
वे सब नोंच रहे थे मुझे ,चील,कौवों की तरह,
और तुम मिले पैसों से ,
                 बोतल पर बोतलें पी रहे थे।
कि तुमने मुझे  बेंच दिया था,
               समझ कर बस एक सामान 
फिर मैं क्यों करती तुम्हारा मान?
               क्या औचित्य रह गया था?
तुम्हारे संग मुझे रह जाने का।
इतना अपमान सह ,साथ तुम्हारा निभाने का।
अब क्यों बुरा स्वप्न बनकर,
मेरी नींदों में आते हो?
             व्यथित मुझे कर जाते हो,
कि भय लगने लगा है,
            अब तो मुझे सोने से भी।
ये दिये गये विषयानुसार मेरी कल्पना पर आधारित महज एक रचना है ,और कुछ नहीं।

प्रभा मिश्रा 'नूतन'



          

Papiya

Papiya

👌🏼👌🏼👌🏼

23 सितम्बर 2023

Pragya pandey

Pragya pandey

Bahut sunder rchna hai 👌👌👌👌

20 सितम्बर 2022

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

20 सितम्बर 2022

धन्यवाद प्रज्ञा जी😊🙏

55
रचनाएँ
स्त्री हूँ ना
5.0
माँ की लाड़ली, पिता के ह्रदय की कली , बैठाई गई पलकों पर सदा, सँवरी,निखरी,नाजों से जो पली ,पर स्त्री हूँ ना तो कभी होना पडा़ शोहदों की फब्तियों का शिकार, कभी सहनी पडी़ एक तरफा प्यार के तेजाब की धार , कभी ससुराल में तानों और उलाहनाओं का हार पहनाया गया,कभी दहेज के लिए जिंदा जलाया गया, कभी हुआ बलात्कार तो कभी दुर्व्यसनों में लिप्त पिया का छोड़ना पडा़ द्वार ।स्त्री हूँ ना तभी , सही उपेक्षा कभी ,तो कभी वेदना में नहाई बेचारी कहलाई , मुझमें दिखती ही कहाँ !! पर पुरुष को बहन और एक माँ !! वासना के पुजारियों हेतु ,हूँ बस भोग की वस्तु क्योंकि स्त्री हूँ ना !!
1

विरह बेला

22 अप्रैल 2022
47
28
14

तड़प रही ,विरह बेला में,ब्याह कर,आई जो वधूटी।गये प्रियवर,समर में उसके,जिसकी अभी,मेंहदी भी न छूटी।अभी तो ,हुआ था ह्रदय उल्लसित,अभी तो,मन गगन पर,छाये थेस्वप्न घन।होना था अभी ही,उनका गमन?होना था ,उमंग उल

2

किस किस को बताऊं

22 अप्रैल 2022
43
32
11

किस -किस को बताऊं? कि मैंने छोडा़ तुमको।मजबूर किया, तुम्हीं ने मुझको

3

मत कोख में मारो

22 मई 2022
28
19
8

मैं तेरी बेटी हूँ मां, मुझको कोख में मत मारो ना, मेरा भी अस्तित्व मुझको, ऐसे नहीं नकारो ना। वीरांगना लक्ष्मीबाई, वो भी तो एक नारी थी। इतने सारे अंग्रेजों पर, एक अकेली भारी थी। नारी थी कल्पना भी, कल्पन

4

नहीं हूँ मैं

22 मई 2022
33
28
4

नहीं हूं मैं, रद्दी अखबार के जैसी, दबी,कुचली, किसी गृहस्थी की , अलमारी में बिछी,उपेक्षित। मैं औरत हूं आज की, स्वतंत्र परंपराओं , की पोषक, नव युग का हस्ताक्षर। हूं ,हर दिवस, की महत्वपूर्ण सुर्खियां। अप

5

मेरे जीवन के दुस्वप्न

22 मई 2022
30
26
3

जीवन के दुःस्वप्न तुम मेरे,क्यों नयनों की गलियों में, आकर लगाते रहते हो फेरे? क्या चाहिए अब तुम्हें मुझसे? क्यों

6

मैं द्वार तुम्हारे आई थी

22 मई 2022
33
29
1

प्रिय बडे़ अरमानों से मैं,द्वार तुम्हारे आई थी।हर पल हों ,जो मीठी यादें,मजबूती लाती सुंदर बातें,सब पिरो सकूं जिसमें,ह्रदय सूत्र वो लाई थी।प्रिय........।पर ह्रदय को कब तुमने जाना?और मन को कब अपना माना?

7

वो तुम ही ना !!

22 मई 2022
22
19
4

वो तुम ही हो न?जिसने खींच लिये,मेरे सामने से रास्ते,वो तुम ही हो न?जिसने बुझा दिये,मेरी मंजिल के दिये।वो तुम ही हो न?जिसने चुपके से ,लिखी निराशा भरी,तनहाई ,उम्मीद के,श्याम-पट पर मेरे। &nb

8

किसका तुझे इंतजा़र

29 जून 2022
27
23
0

खोलती,मूंदती , नयन द्वार बार -बार, इनमें बसी ज्योति राशि, किसका तुझे इंतजा़र? कागल की रेख खींच, कौन अशुभ रोकतीं? हर मिले विछोह पर, अश्रुधार झोकतीं। निशब्द हो मौन साध, किस साधना को साधतीं? कैस

9

सबसे बडी़ भूल

29 जून 2022
31
30
0

तकती रही राह, रात भर, तेरी प्रतीक्षा कर, उस समुंदर किनारे पर, जहाँ मिले थे, हम प्रथम बार। उठी थीं प्रेम हिलोरें, भिगो गयी थीं जो, हम दोनों के ही, मन के हर कोने,द्वार। भरे थे आंचल में, तुमन

10

सिलसिला

29 जून 2022
27
26
0

वो मीरा समझ, मुझको, वेदना ए विष, पिलाते रहे। नियति समझ, हम भी, गले लगाते रहे। एक क्षण को, न रुके वो, थकी मैं, भी नहीं। और सिलसिला, चलता रहा, यूं हीं।

11

आखिर किस पर विश्वास करें हम !!

29 जून 2022
7
7
0

भटक रहे हैं उजाले, अंधेरों की संगति में पड़कर, हमको राह दिखाने वाले,        सद्पथ पर चलाने वाले,    बढ़ रहे हैं स्वयं, पतन के पथ पर?       उंगली पकड़, ककहरा लिखाने वाले,              हमार

12

आखिर कब !!

29 जून 2022
2
2
0

घनी अँधेरी सड़कों पर , गलियों में ,चौराहों पर, बसों और ट्रेनों के अंदर खेतों में खींचकर , लूट ली जाती है , लड़कियों की आबरू पूरा जन सैलाब एकत्रित होकर , सड़कों पर , व्यक्त करता है , अपना आ

13

नहीं पता था...

29 जून 2022
5
5
2

नहीं पता था कि, हरियाली की चाहत में, बो लूंगी अपनी छाती पर पीपल, जो काट कर रख देगा, मेरी सारी स्वप्न जडे़ं, और मुझे खोखला कर देगा भीतर तक। नहीं पता था, कि जो दिख रहा है, उससे परे भी है एक सत्य

14

कुछ कहना है तुमसे

29 जून 2022
3
2
0

कुछ कहना है तुमसे, कहूं? पर चुप भी क्यों रहूं? जब सवाल, जीवन के अहम भाग का, अस्तित्व का, सुहाग का ,भाग का, तो क्यों, तिल तिल जलूं? क्यों सहूं? घोर मानसिक यातना, प्रताड़ना,प्रवंचना । बस चुप

15

वह नृत्यांगना

29 जून 2022
4
4
0

वह नृत्यांगना, नचाती नयन, फैलाती,समेटती,          हाथ, गिराती,उठाती,         उंगलियां। थिरकते कदम, करती स्वप्न वयन। उसके रंग,ढ़ंग, उसका चरित्र, कहां पवित्र?       वह वरांगना, उसकी ,भावभंग

16

सिखला दो ना

9 अगस्त 2022
2
2
0

मेरे अधरों के सच लेकर, इन्हें झूठ बोलना सिखला दो न। इन आँखों की निश्छलता लेकर, थोडा़ कपट इन्हें सिखा दो न। ले लो ह्रदय की मासूमियत मेरी, इसे पाषाण जरा बना दो ना। नहीं जानती अंतर, मोह और मोहब्बत में, र

17

वो ऐसा कैसे कर सकती थी!

9 अगस्त 2022
3
3
0

उन्होने कलेजे का टुकडा़ दान किया , मान दिया और सम्मान दिया । दे सकते थे जितना बेचारे, उतना उन्होने था प्रदान किया । फिर भी असन्तुष्ट कि , मिला न पूरा दहेज, किया बेटी और बहू में भेद। जिसने उसकी व

18

सबकुछ बदल गया था

9 अगस्त 2022
1
1
0

बदल रहा था सबकुछ, और मैं समझ न पाई कुछ दिल की गलियों में , वो एक दिन आये थे, सात फेरे लेकर मुझे, अपने जीवन में लाये थे । मैं पाकर उनको, फूली नहीं समाई थी , अपने भाग्य पर , आह!कितना इतराई थी । द

19

इससे पहले कि ...

9 अगस्त 2022
1
1
0

चढा़कर मुझे, अपने क्रोध की आँच पर, देखा भी नहीं, तुमने पलटकर, कि,सुलग रही हूँ मैं, राख हो रहीं , मेरी भावनायें, लगाव,विश्वास, तुम्हारे क्रोध की, इस आंच पर। आने लगी है, अब तो बू भी, टकराव की, तनाव की।

20

तुम्हारा खत

9 अगस्त 2022
2
2
0

खोलकर पढ़ती हूं, तुम्हारा खत, तुम्हारे जाने के बाद, जो, रख गये थे तुम, मेरे सोते में, चुपके से तकिये के नीचे। और , सफेद साडी़ में लिपटी मैं, भर लेती हूं, अपनी मांग फिर से, क्योंकि, लिखा था तुम्हारे खत

21

अभी बाकी है...

9 अगस्त 2022
1
1
0

श्वास अभी बाकी है, जान अभी बाकी है। कुछ ख्वाब हैं बचे हुये, जिनकी उडा़न अभी बाकी है। आधा अधूरा बटोरकर, मत पूरा चरित्र तोल दे। ये नसीब क्या पता, कब कौन द्वार खोल दे। सफर मिलने मिलाने का, पहचान अभी बाकी

22

तारों के नीचे

9 अगस्त 2022
0
0
0

तारों के नीचे ही तो,तुम मेरे जीवन में आये थे।आंखों में उमंग के,सौकडो़ं ज्योति पुंज लहराये थे।खुशियों के सारे तारे जैसे,मेरी झोली में समाये थे।खाई थीं हमने सदा,साथ रहने की कसमें,कितने ही किये थे,तुमने

23

अब तेरा यहाँ कौन तलाशी!!

10 अगस्त 2022
1
1
1

चल उड़ चल रे मन पंक्षी , अब तेरा यहाँ कौन तलाशी !!!! अब तेरा यहाँ कौन तलाशी । इतनी प्यारी तुझको काया ! जो तू इसको छोड़ न पाया ! छोड़ रहे तुझे अपने प्यारे, तू किसके लिए रुका रे ! छाई हुई घनघोर उदासी !!

24

आसमान छूने की चाहत

10 अगस्त 2022
1
1
0

आसमान छूने की चाहत, भला किसे नहीं होती? पर हर लड़की, उड़न परी, कल्पना चावला, मीराबाई चानू,या लवलीना तो नहीं होती। हर लड़की की आंखें, कुछ स्वप्न संजोती हैं, जिन्हे वह पलकों में, बडे़ प्यार से पिरोती ह

25

तब न था विश्वास !!

10 अगस्त 2022
2
1
0

तब न था विश्वास, कि हममें वो सुवास, जो गृह आंगन का, उपवन महका सकें। कीर्ति फैला सकें, सम्मान दिला सकें। गर्व से सिर ऊंचा उठा सकें। सुत पाने की चाह में, हम आ गये सारी। तो!कंधों पर, इतने हो गये भारी? उन

26

उम्मीद के तृण से

10 अगस्त 2022
1
1
0

उम्मीद के नन्हें तृण से,वो बुहार लेती हैं,अपना पूरा मन आंगन,फेंक देती हैं झाड़कर,निराशाओं,चिंताओं,दुविधाओं का सारा कचरा बाहर।खोलती हैं नयन खिड़कियां,आकर भरती हैं जिनमें,नव स्फूर्ति की,चमकती रोशनियां।ब

27

मुक्ति

10 अगस्त 2022
1
1
0

ये मांग का सिंदूर , सिंदूर नहीं , ये खून है जो, किया तुमने मेरे , विश्वास का। ये माथे की बिंदी, जो याद दिलाती है मुझे, कि ,बंधन में जुड़कर,भी तुम्हारे संग मैं, नहीं हो पाई एक, करने ही कहां दिया? तुमने

28

बलात्कार

10 अगस्त 2022
3
2
0

बलात्कार, सिर्फ एक शब्द नहीं, ये पुरुषों की, कलुषित मानसिकता के, बजबजाते नाले से उपजे, वासना के कीट का, वो घिनौना कृत्य है , जो तहस-नहस करके रख देता है, एक नारी का सम्पूर्ण जीवन !! बलात्कार, जिसमें क्

29

महत्वाकाँक्षा

10 अगस्त 2022
1
1
0

छोटी छोटी ,आकांक्षायें ,नयन सीपी में,संभाली मैंने ,महत्वाकांक्षा तो,कभी नहीं,पाली मैंने ।आंकाक्षा ही ,न पूर्ण हुयीं,महत्वाकांक्षा ,की क्या बात करूँ ?तब भी थे ,नयन सीपी में मोती,आज भी हैं ,अंतर बस इतना

30

उम्मीद की धरा पर

10 अगस्त 2022
1
1
0

उम्मीद की धरा पर,पुनः स्वप्नों का आगमन,भय किस बात का?क्यों करूं मैं पलायन?बिद्ध हुयी सवालों के शर से,तो,छिपी रहती कायरों सी,न निकलती,मैं उस असर से!माना नियति की हुयी,हर कदम ही एक विजय,समाप्त न र

31

पलकों के आँचल में

10 अगस्त 2022
1
1
0

पलकों के आंचल में छुपकर,कितने ही सपने रोये,हौंसलों की जलीं चितायें,सती आशाओं की विधवायें।कंधे मन के हुये जरजर,दिन-रैन उसने जो शव ढो़ये।सुनहरे बचपन की हुयी विदाई,दुख की दूर कहीं बजी शहनाई।यौवन दूल्हा स

32

कैसी विडंबना है कि.....

10 अगस्त 2022
1
1
0

कैसी विडंबना है कि,मेरा सारा समर्पण,मेरा सारा त्याग ,तुम क्षण भर में भुलाते हो।जलती हूं मैं,तुम्हारे लिये जब,अपना सर्वश्रेष्ठ कर,तभी तुम अपनी ,कीर्ति समां में फैला पाते हो।मेरा अस्तित्व ,तुमअपने तले छ

33

उड़ने दो हमें भी....

10 अगस्त 2022
1
1
0

उड़ने दो हमें भी,पतंगों की तरह,हैं चाहतें हमारी भी,कि हम भी महकें,पिता के आंगन,में निश्चिंच चहकें,खिलने दो हमें भी,सुमनों की तरह।लड़के व लड़की,के भेद में न बांटो,होने दो विकसित,मत डोर काटो।मत वासना के

34

हम बेटियाँ

10 अगस्त 2022
1
1
0

हम बेटियां, आंगन की चिडि़यां, भरी आत्मविश्वास में, जल नापें, थल नापें, ऊंचे उडे़ं आकाश में। ना चिड़वे, का मुंह ताकें, ना बहेलियों से घबरायें हम, अटूट साहस , के पंख पसारें, तय खुद की, करें दिशायें हम।

35

रंगों से भरी जिंदगी

10 अगस्त 2022
1
1
0

देह की शिराओं में,भर शोणित का लाल रंग,अपने आशीष के संग,देकर जीवन ,उसनेडाला मां की गोद में,आमोद,प्रमोद में।मां ने दिया ,अपनी परवरिश का रंग।पिता के स्नेह केसद्ववचन संग,पली मैं,बढी़ मैं,और उगते सूर्

36

तुम्हारे प्यार को .....

10 अगस्त 2022
1
1
0

तुम्हारे प्यार को, दिल की किताब, में दबाकर, देती रही , स्वयं को मैं धोखा, करती हूं तुमसे प्यार, इस सत्य को झुठलाकर। पर,फिर भी तुम, सदा मुस्कुराते रहे, सांसों के पन्नें महकाते रहे, जब भी देखा, मैंने

37

कब आओगे प्रियवर !!

10 अगस्त 2022
1
1
0

मुरझा रही हैं उम्मीद कलियाँ, गिर रही हैं बिखरकर, कब आओगे तुम प्रियवर? हो रही हूँ मैं अब विक

38

फिर शायद तुम्हारा .....

10 अगस्त 2022
1
1
0

कितना सरल है न? तुम्हारे लिये, सुनकर हमारा इंकार, देखकर हमारी उपेक्षा, फेंक देना तेजाब, हमारे चेहरे पर। पर!कितना दुष्कर है, हमारे लिये, वो पीडा़ सहना, उसी झुलसे चेहरे, के साथ रहना, दुनिया का सामना करन

39

मत निर्भया बनाओ हमको

10 अगस्त 2022
3
2
3

घिर जाते हैं जब गहन अँधेरे, और रूठ जाते हैं सवेरे, तब मन को समझाना पड़ता है, फिर,फिर दीप जलाना पड़ता है। हर क्षण हमारा मान हरण, स्तब्ध समां सब करे श्रृवण, उन चीखों संग रुकता जीवन, पर फिर,फिर कदम बढा़न

40

मैं नारी हूँ

13 अगस्त 2022
3
1
4

पूर्ण सत्य सुधा से भरकर,कठिनाइयों के ताप में तपकर,कांतियुक्त कुंदन बनकर,परिभाषित होती ,मैं नारी हूँ।समझदारी से तालमेल बिठाकर,पर घर में सामंजस्य बनाकर,दुख,क्लेश विस्मरण कर,सम्मानित होती ,मैं नारी हूँ।स

41

अपना शहर छोड़कर

13 अगस्त 2022
2
1
0

अपना शहर छोड़कर ,मेरे दिल के शहर में ,चाहूं कि तू बस जाये !!मैं सजाये बैठी हूँ ,तेरे प्यार की तस्वीर,अपने मन के खांचे में ,तू आकर एक नज़र तो डाले ,देखकर मुस्कुराये !!!करती हूँ ,बेपनांह ,मोहब्बत मैं तु

42

एकांत

13 अगस्त 2022
1
1
0

एकांत के क्षणों का लाभ उठाकर वासना के पुतले बहला-फुसलाकर, ले जाते हैं मासूम बच्चियों को , डाल देते हैं अपनी हवस मिटाकर !! खिलने से पहले ही ,वो मुरझाती हैं , जिन्हें नोच,खसोट कर ,ये करते बरबाद!! एकांत

43

सुखी संसार

13 अगस्त 2022
1
1
0

देखे तो थे स्वप्न हजार, मिले खुशहाल, सुखी संसार। देख रहे थे , &nbsp

44

इम्तेहान

13 अगस्त 2022
1
1
0

चल रहा है, जीवन की कक्षा में, सभी का इम्तेहान। उत्तर पुस्तिका पर, उत्तर पुस्तिका, लेते जा रहे हैं सभी । मैं लिये बैठी, एक उत्तर पुस्तिका, भर न पा रही वो भी। किसके पास , है कौन सी कलम? नहीं है मुझको ज्

45

जब से तुम गए

13 अगस्त 2022
2
1
0

जब से तुम गये,हैं वीरान,देहपुर की गलियाँ,पसरी है एक नीरसता यहाँ।मन के भवन के समीप,जो लगा था,उम्मीदों का तरु,झर गये उससे,एक एक कर,पीत होकर स्वप्न पत्र।पडे़ हैं निष्प्राण धरा पर,स्मृतियों की पवन,जब चलती

46

चल पडी़ हूँ सफर पर

2 सितम्बर 2022
3
2
0

चल पडी़ हूं सफर पर,मिली तनहाइयों को साथ ले।कुछ रिश्ता शायद दर्द का,जो चिपका रहा गोद से।हर कचोटती तनहाइयां,पता मेरा रही पूछतीं।अनसुलझे सवाल ले,रही स्वयं से जूझती।रोपी गयी ससुराल में,कभी मैं तरु लगी।जिस

47

लिखती हूँ दर्द

2 सितम्बर 2022
5
4
0

लिखती हूं दर्द ,सबको सुनाती हूं।स्वयं भी रोती हूं,सबको रुलाती हूं।दर्द ही पाया है,दर्द ही समाया है।जो पाया है,वही तो लिखूंगी।वेदना की कवियित्री हूं,तो वेदना ही लिखूंगी।हो जाती हूं विकल तब ,देखती हूं म

48

शब्द निशब्द हो गए

2 सितम्बर 2022
5
4
0

शब्द निशब्द हो गए,भाव शून्य हो गए,हम विचारते रहे,उन्हें निहारते रहे,फरेब हर जगह दिखे,सत्य कहीं सो गए ...... सो गएनयन युगल रो गए,शर्मसार हो गए,जिन्हें सँवारते रहे,ह्रदय बुहारते रहे,जड़ प्रकृति वो

49

फिर नन्हीं उम्मीदें जाग उठीं

3 सितम्बर 2022
2
1
0

फिर नन्हीं उम्मीदें जाग उठीं,फिर मन प्रसून है मुस्काया,अंधेरी,तंग गलियों में दिल की,फिर कोई दीप जलाने आया।फिर कोई आई एक किरण,करने रौशन नयनों का आंगन,फिर चमक उठे ज्योति पुंज,फिर आशाओं का परचम लहर

50

सुखी संसार

3 सितम्बर 2022
1
0
0

देखे तो थे स्वप्न हजार, मिले खुशहाल, सुखी संसार। देख रहे थे , &nbsp

51

खुला आसमान

3 सितम्बर 2022
3
2
0

बुन रही हैं वो ,अपनी आंखों में सपने,चुन रही हैं ,अपने हिस्से की खुशियां,भर रही हैं ,अपनी मुट्ठी में ,वे पूरा खुला आसमानदे रही हैं,अपनी उम्मीदों,को एक नव उडा़न।मिट गयी है न अब,पुरानी दकियानूसी सोच,अब न

52

जिसने कभी अपना कहा

3 सितम्बर 2022
4
3
0

बहुत शीघ्रता थी शायद,आने की धरा पर,जो नसीब छोड़ बदनसीबियाँ,ले आए बटोरकर।कभी बेवफा वक्त से हुए खफा,तो कभी क्रोध हालात पर आया,ऐ प्रभु तूने मुझे,इतना मासूम क्यों बनाया ।चले जब सफर पर,तो रास्ते सो गए,हम त

53

क्यों ना ......

3 सितम्बर 2022
5
5
4

उन्हें निहारूँ ,सत्य विचारूँ,कैसे अंतर्मन की बात करूँ !चुपचाप सुनूँ,कुछ न कहूँ,कैसे अत्याचार सहूँ !!असमंजस में अटकूँ,हर क्षण भटकूँ,क्यों ना नए पंथ चुनूँ !!प्रभा मिश्रा 'नूतन'

54

ये वर्तमान के समुद्र की लहरें

4 सितम्बर 2022
1
0
0

ये वर्तमान के समुद्र की लहरें, मुझे भयभीत कर जाती हैं, पूरे वेग से मेरी तरफ आती हैं, बहा ले जातीं मेरा मन ,अपने संग ले जातीं हैं अतीत के दूसरे छोर पर, पुनः वहां से अपने उसी वेग से, लौटती हुयी ,मेरे मन

55

पापा की परी

6 सितम्बर 2022
3
1
0

पापा की प्यारी , परी ही थी वो, जिसने पापा का , गृह उपवन &nb

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए