ज्योतिष से सम्बन्धित अपने लेखों में हम अब तक बहुत से योगों पर चर्चा कर चुके हैं | ग्रहों के विषय में संक्षिप्त रूप से चर्चा | हमने पञ्चांग के पाँचों अंगों के विषय में जानने का प्रयास किया | संस्कारों पर – विशेष रूप से जन्म से पूर्व के संस्कार और जन्म के बाद नामकरण संस्कार पर चर्चा की | आज से उन्हीं संस्कारों के मुहूर्त निर्णय के लिए आवश्यक तथा पञ्चांग के पाँचों अंगों में सबसे महत्त्वपूर्ण अंग “नक्षत्र” पर विस्तार से प्रकाश डालने का प्रयास आरम्भ करते हैं... “आरम्भ” इसलिए, क्योंकि विषय लम्बा है, जिसमें बहुत समय लग सकता है...
संस्कारों के विषय में बात करते हुए हमने गर्भाधान संस्कार से नामकरण संस्कार तक छह संस्कारों के विषय में बात की | इनमें से कुछ संस्कार गर्भ से पूर्व सम्पन्न किये जाते हैं, कुछ गर्भ की अवस्था में और कुछ शिशु के जन्म लेने के बाद | इनके बाद जीवन भर – पुनर्जन्म की यात्रा आरम्भ करने तक अन्य दस संस्कारों का विधान वैदिक हिन्दू परपरा में है | इनमें गर्भाधान और जातकर्म को यदि छोड़ दें तो शेष संस्कारों में मुहूर्त का विशेष ध्यान रखा जाता है | यद्यपि आजकल तो बहुत से लोग जातकर्म के लिए ज्योतिषी – Astrologer – से मुहूर्त निश्चित कराने लगे हैं | हमारी कुछ मित्रों से ज्ञात हुआ कि उनकी सन्तान का जन्म ज्योतिषी द्वारा बताए गए समय पर सर्जरी के द्वारा कराया गया | उन्हें लगता है कि पहले एक बहुत अच्छी सी जन्मकुण्डली बनवा ली जाए और जब वो कुण्डली बन जाए तो उसके समय पर ही बच्चे को सर्जरी के द्वारा जन्म दे दिया जाए तो सन्तान निश्चित रूप से वैसी ही उत्पन्न होगी जैसी वे लोग चाहते हैं | उन लोगों ने जब बच्चे के जन्म से पूर्व उसके जन्म का समय निश्चित करके कुण्डली बनवाई थी तो उसके अनुसार बच्चा अत्यन्त भाग्यशाली, तीव्र बुद्धि तथा और भी बहुत से सद्गुणों से युक्त होना चाहिए था | किन्तु दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो सका और बच्चे का स्वभाव तथा भाग्य उस जन्मपत्री से बिल्कुल विपरीत ही निकला |
ईश्वर ने कुछ कार्यों – विशेष रूप से जन्म और मृत्यु के लिए जो समय निश्चित किया है उसमें यदि व्यवधान डाला जाएगा तो ऐसा ही होगा | बच्चे का जन्म स्वाभाविक रूप से किसी और समय होना चाहिए था – क्योंकि गर्भस्थ आत्मा ने अपनी माता का चयन करने के साथ ही संसार में प्रवेश के लिए कोई समय निश्चित किया हुआ था | किन्तु मनुष्य के हस्तक्षेप के कारण उसे किसी अन्य समय संसार में प्रविष्ट होना पड़ा | ऐसा करके उसका भाग्य तो नहीं बदला जा सकता न ? बहरहाल, ये एक विस्तृत चर्चा का विषय है | यहाँ हम बात कर रहे हैं संस्कारों में मुहूर्त के महत्त्व की | प्रत्येक संस्कार एक निश्चित और शुभ मुहूर्त में किया जाए तो निश्चित रूप से उसका परिणाम अनुकूल ही होगा | किन्तु अन्धविश्वास कहीं भी नहीं होना चाहिए | मुहूर्त निश्चित करने में नक्षत्रों की विशेष भूमिका होती है | अस्तु, अपने अगले लेख से हम वार्ता आरम्भ करेंगे नक्षत्रो के विषय में...
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