नक्षत्र और मानव के रूप गुण स्वभाव
हम नक्षत्रों के विषय में बात कर
रहे थे, उसी को आगे बढ़ाते हैं | 27 नक्षत्रों में प्रत्येक नक्षत्र में कितने तारे (Stars) होते हैं, प्रत्येक नक्षत्र के देवता (Deity) तथा
स्वामी अथवा अधिपति ग्रह (Lordship) कौन हैं, प्रत्येक नक्षत्र को क्या संज्ञा दी गई है इत्यादि विषयों पर हम बात कर
चुके हैं | नक्षत्रों
की संज्ञा से उनकी प्रकृति का भी कुछ अनुमान हो जाता है | साथ ही यह भी बताने का
प्रयास किया कि विभिन्न
राशियों में कितने अंशों तक किस नक्षत्र का प्रस्तार होता है | उपरोक्त चर्चा से
हमें ज्ञात हुआ कि:-
अश्वियमदहनकमलजशशिशूलभृददितिजीवफणिपितरः ।
योन्यर्यमदिनकृत्त्वष्टृपवनशक्राग्निमित्राश्च
।।
शक्रो नैर्ऋतिस्तोयं विश्वे ब्रह्मा हरिर्वसुर्वरुणः ।
अजपादो अहिर्बुध्न्यः पूषा चेतीश्वरा
भानाम् ।।
बृहत्संहिता 97/4,5
स्वयं अश्विनी कुमार अश्विनी
नक्षत्र के देवता हैं – समस्त देवों के वैद्य माने जाते हैं | भरणी के देवता हैं
यम – जो प्रतीक हैं सन्तुलन (Balance) और संयम का | कृत्तिका नक्षत्र का देवता मान
अगया है अग्नि को – जिसका स्वभाव होता है दाहकत्व | रोहिणी नक्षत्र के देवता हैं
स्वयं सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा | जलतत्व और शीतलता प्रदान करने वाला चन्द्रमा
मृगशिर नक्षत्र का देवता है | मंगलकारी शिव आर्द्रा नक्षत्र के देवता माने जाते
हैं | समस्त वसुओं को धारण करने वाली तथा पृथिवी का पर्याय माने जाने वाली देवमाता
अदिति पुनर्वसु की देवता हैं | धीर गम्भीर देवगुरु बृहस्पति को पुष्य नक्षत्र का
देवता माना जाता है | आश्लेषा – जो की स्वयं ही सर्परूप है – के देवता सर्प माने
जाते हैं | मघा का दैवत्व ताप प्रदान करने वाले सूर्य को दिया गया है | पूर्वा
फाल्गुनी के देवता अर्यमा और उत्तर फाल्गुनी के देवता हैं रवि – ये दोनों भी सूर्य
के ही पर्याय हैं | हस्त प्रतीक है कार्य का – शिल्प का – सम्भवतः यही कारण है कि
हस्त नक्षत्र के देवता त्वष्टा अर्थात विश्वकर्मा – जो देवों के शिल्पकार यानी
Arcitact हैं – को माना गया है | वायु चित्रा नक्षत्र का देवता है | इन्द्राग्नि
स्वाति नक्षत्र का और मित्र विशाखा नक्षत्र के देवता हैं | अनुराधा के देवता हैं
इन्द्र | ज्येष्ठा के देवता निर्ऋति (एक राक्षस का नाम) को माना जाता है | मूल के
देवता स्वयं जल को माना गया है | पूर्वाषाढ़ के देवता विश्वेदेव और उत्तराषाढ़ के
देवता स्वयं ब्रह्मा माने जाते हैं | श्रवण के देवता हैं विष्णु, धनिष्ठा के वसु, शतभिषज के देवता वरुण, पूर्वा भाद्रपद के देवता अजाचरण
(सूर्य विशेष), उत्तर भाद्रपद के देवता अहिर्बुन्ध्य (सूर्य विशेष) तथा रेवती
नक्षत्र के देवता पूषा (सूर्य विशेष) को माना जाता है |
जातक का जन्म जिस नक्षत्र में
होता है उसके देवता के स्वरूप और गुण के अनुसार ही काफी हद तक जातक का भी स्वरूप
और गुण भी होता है | यही कारण है कि यदि कहीं कोई अशुभ प्रभाव कुण्डली में
दृष्टिगत होता है तो उस जातक के जन्म नक्षत्र अथवा जिस ग्रह की दशा अन्तर्दशा चल
रही होती है उस ग्रह से सम्बन्धित नक्षत्र की पूजा अर्चना उस अशुभ प्रभाव को कम
करने के लिए करने की सलाह Astrologers
देते हैं |
यद्यपि केवल नक्षत्रों के आधार
पर ही फल कथन समझदारी नहीं, और भी बहुत सी बातों का अध्ययन करना आवाश्यक होता
है | किन्तु यह भी सत्य है कि ज्योतिष के
आधार पर फलकथन यानी Horoscope
Reading में अथवा जातक के रूप गुण के निर्धारण
में नक्षत्रों की विशेष भूमिका होती है...
https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/05/04/constellation-nakshatras-39/