नक्षत्रों के गुण
हमने अपने पिछले अध्यायों में नक्षत्रों की नाड़ी, योनि, गण, वश्य और
तत्वों के विषय में बात की | नक्षत्रों का विभाजन तीन गुणों – सत्व, रजस और तमस – के
आधार पर भी किया जाता है | इन तीनों ही गुणों की आध्यात्मिक तथा दार्शनिक दृष्टि
से चर्चा तो इतनी विषद हो जाती है कि जिसका कभी अन्त ही सम्भव नहीं | आज के अध्याय
में हम इन गुणों के आधार पर नक्षत्रों के वर्गीकरण के विषय में बात करेंगे |
सभी जानते हैं कि समूची प्रकृति में सत्व, रजस और तमस ये
तीनों ही गुण पाए जाते हैं | सृष्टि की रचना प्रक्रिया, सृष्टि का पालन
पोषण संवर्धन तथा सृष्टि का संहार आदि जितनी भी प्रत्यक्ष क्रियाएँ हैं वे इन तीन
गुणों के माध्यम से ही संचालित होती हैं – इसीलिए प्रकृति को त्रिगुणात्मिका कहा
जाता है | जब समूची प्रकृति इन त्रिगुणों से मुक्त नहीं हो सकती तो फिर साधारण
मानव की तो बात ही क्या है | ज्योतिष शास्त्र की मान्यता है कि क्योंकि प्रत्येक
मनुष्य किसी नक्षत्र में जन्म लेता है तो उस नक्षत्र में जो भी गुण इन तीनों गुणों
में से होगा उसका प्रभाव मनुष्य पर निश्चित रूप से पड़ेगा तथा उसी के अनुसार उसका
गुण और स्वभाव भी विकसित होगा | यहाँ तक कि इन गुणों के ही कारण कई बार अशुभ
नक्षत्रों के भी शुभ फल देखे जा सकते हैं और कई बार शुभ नक्षत्रों के भी अशुभ
परिणाम दृष्टिगत होते हैं | वास्तव में ये त्रिगुण मनुष्य के स्वभाव अथवा चरित्र
की तीन परतें यानी Layers हैं, समय समय पर कभी कोई गुण प्रधान हो जाता है तो कभी कोई, किन्तु मूल
स्वभाव कभी नहीं बदलता |
सत्त्व गुण : सत – जिसका अर्थ होता है मूलभूत घटक – Essence - से सत्व
शब्द बना है | यानी किसी व्यक्ति का जो स्वाभाविक चरित्र होता है वह सत्व गुण के
अन्तर्गत आता है | सत्व अर्थात जिसकी सत्ता हो, जो विद्यमान हो, जिसका भाव हो अथवा
जो सत्य हो | सत्य क्या होता है ? प्रत्यक्ष को सत्य की संज्ञा दी जाती है | इसके
अतिरिक्त सम्पूर्णता, समग्रता, प्रकृति, मनुष्य के जन्मजात गुण – जो अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी, जीवन, आत्मा, इच्छा शक्ति, श्वास, जीवनी शक्ति, समानता, चेतना, मन, इन्द्रिय, धन सम्पत्ति,
अच्छाई, वास्तविकता, निश्चितता, साहस और बल आदि अर्थों में सत्व शब्द का ग्रहण किया जाता है | देवताओं को
सत्व गुणों से युक्त माना जाता है | नक्षत्रों में पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वा भाद्रपद, आश्लेषा, ज्येष्ठा एवं रेवती
ये छ: नक्षत्र सत्व गुण सम्पन्न नक्षत्र कहलाते हैं |
रजस गुण : रजस अर्थात राजाओं के समान – अर्थात मानवमात्र में जो राजाओं के
सामान विशेषताएँ होती हैं वे रजस गुण के अन्तर्गत आती हैं | रज – जिसका शाब्दिक
अर्थ होता है धूल – से रजस बना है | इस प्रकार किसी भी प्रकार का Powder भी रज ही
कहलाता है | इत्र, Perfumes, सूर्य की किरण का एक कण, कोई भी छोटा सा
कण यानी Small Particle, बादल, वर्षा, खेती के लिए जोती जा चुकी भूमि, इदासी, अन्धकार, Passion, अभिलाषा, उत्साह, मनोभाव, सभी भौतिक पदार्थों के वे मौलिक गुण अथवा अवयव जिनके कारण समस्त जगत के
समस्त प्राणी क्रियाशील रहते हैं | सभी मनुष्यों में यह गुण विद्यमान होता है | लक्ष्य
प्राप्ति के लिए इस गुण का होना अत्यन्त आवश्यक है | समस्त प्रकृति में जगत की
उत्पत्ति का मूल कारक रज – जिसे Menstrual Discharge कहा जाता है - का प्रतिनिधित्व
भी यही गुण करता है | इसके अभाव में संसार की उत्पत्ति ही सम्भव नहीं | कृत्तिका, उत्तर फाल्गुनी, उत्तराषाढ़, रोहिणी, हस्त, श्रवण, भरणी, पूर्वा
फाल्गुनी और पूर्वाषाढ़ ये नौ नक्षत्र रजस गुण के अन्तर्गत आते है |
तमस : तमस अर्थात अन्धकार | इसका सबसे बड़ा प्रतीक है कायिक, वाचिक अथवा
मानसिक किसी भी प्रकार की क्रूरता | मानसिक अन्धकार यानी अज्ञानता क एलिए इस शब्द
का प्रयोग प्रायः किया जाता है | इसके अतिरिक्त किसी को धोखा देना, किसी प्रकार का
भ्रम की स्थिति होना, दुःख और कष्ट, किसी प्रकार की व्याधि अर्थात रोग, विचारों में
स्पष्टता का अभाव, किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति, भय, क्रोध, किसी प्रकार का दुष्कर्म, घुटन अथवा Uneasiness का अनुभव होना आदि अर्थों में तमस शब्द का प्रयोग
किया जाता है | इच्छाओं के आधीन होने के लिए भी इस शब्द का प्रयोग करते हैं |
लोकाचार में राक्षसों को तमस वृत्ति का माना जाता है | अश्विनी, मघा, मूल, आर्द्रा, स्वाति, शतभिषज, मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा, पुष्य, अनुराधा और उत्तर
भाद्रपद नक्षत्र इस गुण का प्रतिनिधित्व करते हैं |
किसी व्यक्ति के गुण और स्वभाव के विषय में ज्योतिषीय दृष्टिकोण से केवल
इन गुणों के ही आधार पर फलकथन उचित नहीं होगा | नक्षत्रों के अन्य अवयवों को भी
समग्र रूप से ध्यान में रखकर कुछ कहा जाना चाहिए |
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