या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा – प्रथम नवरात्र को समस्त हिन्दू समाज ने भगवती के शैलपुत्री रूप की उपासना के साथ नव सम्वत्सर का स्वागत किया | कल द्वितीया तिथि है – दूसरा नवरात्र – माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना का दिन | देवी का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी का है – ब्रह्म चारयितुं शीलं यस्याः सा ब्रह्मचारिणी – अर्थात् ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति करना जिसका स्वभाव हो वह ब्रह्मचारिणी | इस रूप में भी देवी के दो हाथ हैं और एक हाथ में जपमाला तथा दूसरे में कमण्डल दिखाई देता है | जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है, ब्रह्मचारिणी का रूप है इसलिये निश्चित रूप से अत्यन्त शान्त और पवित्र स्वरूप है तथा ध्यान में मग्न है | यह रूप देवी के पूर्व जन्मों में सती और पार्वती के रूप में शिव को प्राप्त करने के लिये की गई तपस्या को भी दर्शाता है |
दक्षपुत्री सती ने जब अपने पति के अपमान से क्षुब्ध होकर उनके यज्ञ की अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया तो पर्वतराज हिमालय और उनकी पत्नी मैना की प्रार्थना पर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया | तब शिव को पति रूप में पुनः प्राप्त करने के लिए वन में जाकर घोर तप किया तथा समस्त प्रकार के भोज्य पदार्थों का त्याग करके केवल केवल कन्द मूल फल का ही भोजन किया | तब भी शिव की तपस्या भंग नहीं हुई तो पार्वती ने कन्द मूल फल का भी त्याग कर दिया और केवल वनस्पतियों का सेवन करती रहीं | उसके पश्चात वनस्पतियों के सेवन का भी त्याग कर दिया और केवल बिल्व पत्र ही ग्रहण करती रहीं | अन्त में ऐसा समय भी आया जब उन्होंने बिल्व पत्रों का भी सेवन बन्द कर दिया और तब उन्हें अपर्णा कहा जाने लगा | इतनी कठोर तपश्चर्या के कारण देवी के इस रूप को तपश्चारिणी भी कहा जाता है |
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलौ, देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा
जो लोग भगवती के नौ रूपों को नवग्रह से सम्बद्ध करते हैं उनकी मान्यता है कि यह रूप मंगल का प्रतिनिधित्व करता है तथा मंगल ग्रह की शान्ति के लिए माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना करनी चाहिए |
ऐसा भी माना जाता है कि अगर आप प्रतियोगिता तथा परीक्षा में सफलता चाहते हैं – विशेष रूप से छात्रों को – माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना अवश्य करनी चाहिये । इनकी कृपा से बुद्धि का विकास होता है और प्रतियोगिता आदि में सफलता प्राप्त होती है | इसके लिए निम्न मन्त्र के जाप का विधान है:
विद्याः समस्तास्तव देवि भेदास्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु |
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः ||
इसके अतिरिक्त“ऐंह्रीं श्रीं अम्बिकायै नमः” माँ ब्रह्मचारिणी के इस बीज मन्त्र के साथ भी देवी की उपासना की जा सकती है…
दोनों करकमलों में अक्षमाला और कमण्डल धारण किये भगवती का माँ ब्रह्मचारिणी का रूप सबकी रक्षा करे…