प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी, तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् |
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनी तथा सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ||
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता:, उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ||
आज आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को माँ भगवती के एक रूप “शैलपुत्री” की उपासना के साथ ही शारदीय नवरात्रों का आरम्भ हो गया है | आज प्रथम नवरात्र है – माँ शैलपुत्री की अर्चना का दिन – जिनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में कमलपुष्प शोभायमान है तथा जो भैंसे पर सवार दिखाई देती हैं |
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
इस मन्त्र से माँ शैलपुत्री की उपासना का विधान है | माना जाता है कि शिव की पत्नी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपने पति का अपमान देखकर उसी यज्ञ की अग्नि में कूदकर स्वयं को होम कर दिया था और उसके बाद हिमालय की पत्नी मैना के गर्भ से हिमपुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या करके पुनः शिव को पति के रूप में प्राप्त किया | यद्यपि ये सबकी अधीश्वरी हैं तथापि पौराणिक मान्यता के अनुसार हिमालय की तपस्या और प्रार्थना से प्रसन्न हो कृपापूर्वक उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुईं | यह दुर्गा का प्रथम रूप है |
जैसा अपने पहले लेख में इंगित किया था, ऐसी भी मान्यता है कि नवरात्र में की जाने वाली भगवती दुर्गा के नौ रूपों की उपासना वास्तव में नवग्रहों की उपासना है | कथा आती है कि देवासुर संग्राम में समस्त देवताओं ने अपनी अपनी शक्तियों को एक ही स्थान पर इकट्ठा करके देवी को भेंट कर दिया था | माना जाता है कि वे समस्त देवता और कोई नहीं, नवग्रहों के ही विविध रूप थे, और दुर्गा के नौ रूपों में प्रत्येक रूप एक ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है | इस मान्यता के अनुसार दुर्गा का शैलपुत्री का यह रूप चन्द्रमा का प्रतिनिधित्व करता है और यदि किसी की कुण्डली में चन्द्रमा का कोई दोष है तो उसके निवारण के लिए माँ भगवती के शैलपुत्री रूप की उपासना करनी चाहिए |
मान्यता जो भी हो, किन्तु भगवती के इस रूप से इतना तो निश्चित है कि शक्ति का यह प्रथम रूप शिव के साथ संयुक्त है, जो प्रतीक है इस तथ्य का कि शक्ति और शिव के सम्मिलन से ही जगत का कल्याण सम्भव है |
माँ शैलपुत्री सभी की रक्षा करें और सबकी मनोकामनाएँ पूर्ण करें…