संकष्टी चतुर्थी
आज माघ शुक्ल चतुर्थी तिथि है – विघ्न विनाशक
गणपति की उपासना का पर्व जिसे लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी – आँचलिक बोली में संकट
चतुर्थी – वक्रतुंडी चतुर्थी – तिलकुटा चौथ – कहा जाता है – का पावन पर्व है (सायं
पाँच बजकर तैंतीस मिनट तक तृतीया है और उसके बाद चतुर्थी तिथि का आरम्भ हो रहा है
जो कल दिन में दो बजकर पचास मिनट तक रहेगी) | तिथि के आरम्भ में बव करण और आयुष्मान
योग होगा तथा सूर्य और चन्द्र क्रमशः उत्तराषाढ़ और मघा नक्षत्रों पर एक दूसरे से
नवम-पञ्चम भावों में अत्यन्त शुभ स्थिति में रहेंगे | व्रत के पारायण के लिए
दिल्ली में आज चन्द्रोदय आठ बजकर तैंतीस मिनट पर ही | साथ ही आज लोहड़ी का उल्लासमय
पर्व भी है | अस्तु, सभी को संकष्टी चतुर्थी
तथा लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाएँ..
लगभग समूचे देश
में विघ्नहर्ता सुखकर्ता भगवान् गणेश की उपासना का पर्व संकष्टी चतुर्थी बड़ी आस्था
और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है | मान्यता है कि इसी दिन
भगवान् शंकर ने अपने पुत्र गणेश के शरीर पर हाथी का सिर लगाया था और माता पार्वती
अपने पुत्र को इसी रूप में पाकर अत्यन्त प्रसन्न हो गई थीं | इस दिन स्थान स्थान पर गणपति की प्रतिमाओं की स्थापना करके नौ दिनों तक
उनकी पूजा अर्चना की जाती है और दसवें दिन पूर्ण श्रद्धा भक्ति भाव से उन
प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है |
इन कथाओं का
यद्यपि कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, किन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि आस्था विज्ञान
पर भारी होती है और आस्थापूर्वक की गई उपासना से वास्तव में मनुष्य में इतनी सामर्थ्य
आ जाती है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में वह पूर्ण मनोयोग से तत्पर हो
जाता है | यही कारण है कि समस्त ज्योतिषी भी जब किसी समस्या
के निदान के लिए कोई उपाय बताते हैं तो आस्थापूर्वक मन्त्रजाप की सलाह अवश्य देते
हैं |
संकष्टी चतुर्थी
के दिन तिल गुड़ से गणपति की उपासना की जाती है | इसका कारण सम्भवतः यह रहा होगा
कि कडकडाती ठण्ड में तिल और गुड़ का सेवन सर्दी से बचने का भी एक उपाय होता है |
हर ऋतु में हर मौसम में हर प्रान्त में ईश्वरोपासना के समय वही
वस्तु अर्पण की जाती है जो या तो उस मौसम और उस प्रान्त में सरलता से उपलब्ध होती
है या उस मौसम में होने वाले रोगों के प्रकोप से बचाने में सहायक होती है |
इसलिए तिल गुड़ से गणपति की उपासना का यही औचित्य प्रतीत होता है |
अस्तु! ऋद्धि
सिद्धि दाता गणपति के प्रति आस्थापूर्वक नमन करते हुए प्रस्तुत हैं विघ्नविनाशक की
अंगपूजा के सहित गणपतेरेकविंशतिनामस्तोत्रम् और मंगलम् | गणपति की अंगपूजा
करके उनके इक्कीस नामों का स्मरण करना चाहिए | जल में दुग्ध,
अक्षत, सिंदूर आदि मिलाकर दूर्वा से गणपति के
सभी अंगों की क्रमशः पूजा का विधान इस प्रकार है...
अंगपूजा :
ॐ गणेशाय नमः – पादौ पूजयामि
ॐ विघ्नराजाय नमः – जानुनी पूजयामि
ॐ आखुवाहनाय नमः – उरु: पूजयामि
ॐ हेरम्बाय नमः – कटि पूजयामि
ॐ कामरीसूनुवे नमः – नाभिं पूजयामि
ॐ लम्बोदराय नमः – उदरं पूजयामि
ॐ गौरीसुताय नमः – स्तनौ पूजयामि
ॐ गणनाथाय नमः – हृदयं पूजयामि
ॐ स्थूलकंठाय नमः – कण्ठं पूजयामि
ॐ पाशहस्ताय नमः – स्कन्धौ पूजयामि
ॐ सिद्धिबुद्धिसहिताय नमः – हस्तान् पूजयामि
ॐ स्कन्दाग्रजाय नमः – वक्त्रं पूजयामि
ॐ विघ्नहर्ताय नमः – ललाटं पूजयामि
ॐ सर्वेश्वराय नमः – शिर: पूजयामि
ॐ गणाधिपतये नमः – सर्वांगाणि पूजयामि
गणपतेरेकविंशतिनामस्तोत्रम्
ॐ सुमुखाय नमः ॐ
गणाधीशाय नमः ॐ उमा पुत्राय नमः
ॐ गजमुखाय नमः ॐ
लम्बोदराय नमः ॐ हर सूनवे नमः
ॐ शूर्पकर्णाय नमः ॐ
वक्रतुण्डाय नमः ॐ गुहाग्रजाय नमः
ॐ एकदन्ताय नमः ॐ
हेरम्बराय नमः ॐ चतुर्होत्रै नमः
ॐ सर्वेश्वराय नमः ॐ
विकटाय नमः ॐ हेमतुण्डाय नमः
ॐ विनायकाय नमः ॐ
कपिलाय नमः ॐ वटवे नमः
ॐ भाल चन्द्राय नमः ॐ
सुराग्रजाय नमः ॐ सिद्धि विनायकाय नमः
मंगलम्
स जयति सिन्धुरवदनो देवो यत्पादपंकजस्मरणम् |
वासरमणिरिव तमसां राशीन्नाशयति विघ्नानाम् ||
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः |
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशी: विनायकः ||
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः |
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ||
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा |
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ||
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् |
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये ||
व्यासं वसिष्ठनप्तारं शक्तेः पौत्रमकल्मषम् |
पराशरात्मजं वन्दे शुकतातं तपोनिधिम् ||
व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे |
नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः ||
अचतुर्वदनो ब्रह्मा द्विबाहुरपरो हरिः |
अभाललोचनः शम्भुर्भगवान् बादरायणः ||
सभी का जीवन मंगलमय रहे और सभी आस्थापूर्वक लक्ष्यप्राप्ति की दिशा में अग्रसर रहें, इसी कामना के साथ सभी को संकष्टी चतुर्थी और लोहड़ी की एक बार पुनः हार्दिक शुभकामनाएँ...