जन्म से पुनर्जन्म – गर्भाधान संस्कार की ही बात आगे बढाते हुए अब बात करते हैं गर्भ संस्कारों के अगले चरण - पुंसवन संस्कार की | गर्भाधान निर्विघ्न सम्पन्न हो गया, माता पिता दोनों ने स्वस्थ मन और स्वस्थ शरीर से इस कार्य को सम्पन्न किया तो उसके तीन माह के बाद पुंसवन संस्कार किये जाने का विधान था | वैसे तो - पुंसः सवनं पुन्सवनम् – अर्थात जिस संस्कार को करने से पुत्र सन्तान की प्राप्ति हो वह पुंसवन संस्कार कहलाता था | किन्तु इसकी मूलभूत भावना बहुत विशाल थी | इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य था माता पिता तथा उनके सम्बन्धियों को इस प्रकार की शिक्षा देना ताकि वह गर्भस्थ शिशु की देखभाल अच्छी तरह कर सके | इसका भी उद्देश्य वही था जो गर्भाधान संस्कार का था – स्वस्थ, सुन्दर और गुणवान सन्तान की प्राप्ति |
यों, मनु, याज्ञवल्क्य और शौनक के अनुसार यह संस्कार उस समय तक सम्पन्न कर दिया जाना चाहिए जब तक की शिशु गर्भ में भ्रमण करना (Movement) नहीं आरम्भ कर देता | किन्तु बृहस्पति मानते हैं कि गर्भ में शिशु के भ्रमण आरम्भ करने का बाद (सवनं स्पन्दिते शिशौ) यह संकार किया जाना चाहिए | और इन मतान्तरों के कारण इस संस्कार को सम्पन्न करने की समय सीमा गर्भ का निश्चय हो के बाद तीन माह की अवधि से लेकर आठ माह की अवधि तक विस्तृत हो जाती है | इसका एक कारण यह भी था कि गर्भ के लक्षण प्रत्येक महिला में अलग अलग समय प्रकट होते थे | आज के युग में तो मेडिकल साइंस की तरक्क़ी के साथ ही इस विषय में भी समय पर ही पुष्टि कर ली जाती है | किन्तु पहले ऐसा नहीं होता था | इसमें भी प्रथम गर्भ के समय गर्भ से तीन माह की अवधि में पुंसवन संस्कार सम्पन्न कर लेने का विधान था | उसके बाद जब भी गर्भ होता था तो उस समय पुंसवन संस्कार चौथे, छठे अथवा आठवें माह में किये जाने की प्रथा थी | इसको और अधिक स्पष्ट करते हुए बृहस्पति ने कहा है:
तृतीये मासि कर्तव्यं गृष्टेरन्यत्रशोभनम् |
गृष्टेश्चतुर्थे मासे तु षष्ठे मासेSव चाष्टमें ||
किन्तु अधिकाँश में इसका समय गर्भ धारण करने के तीन माह के भीतर ही माना जाता है | साथ ही कुछ मनीषियों का मानना है कि प्रथम गर्भ के समय ही यह संस्कार किया जाना चाहिए | क्योंकि उस समय गर्भिणी को तथा उसके पति और अन्य सम्बन्धियों को सारी बातें – सारी Precautions के विषय में भली भाँति समझा दिया जाता है इसलिए बाद के गर्भ में इस संस्कार की उतनी आवश्यकता नहीं रह जाती | किन्तु कुछ विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि जितनी बार भी महिला गर्भवती हो उतनी बार ही यह संस्कार किया जाना चाहिए | उनके अनुसार – आवश्यक नहीं कि पिछले संस्कार के समय बताई गई बातें दूसरे संस्कार के समय तक याद रह ही जाएँ...
क्रमशः...........