शारदीय नवरात्र 2020 की तिथियाँ (कैलेण्डर)
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा यानी 17 अक्तूबर शनिवार से शारदीय नवरात्र आरम्भ होने जा रहे
हैं | यों पितृविसर्जनी अमावस्या यानी महालया के दूसरे दिन से शारदीय नवरात्रों का
आरम्भ हो जाता है | महालया अर्थात पितृविसर्जनी अमावस्या को श्राद्ध पक्ष का समापन हो
जाता है | महालया का अर्थ ही है महान आलय अर्थात महान आवास –
अन्तिम आवास – शाश्वत आवास | श्राद्ध पक्ष के इन पन्द्रह
दिनों में अपने पूर्वजों का आह्वान करते हैं हमारे असत् आवास अर्थात पञ्चभूता पृथिवी
पर आकर हमारा सम्मान स्वीकार करें, और महालया के दिन पुनः
अपने अस्तित्व में विलीन हो अपने शाश्वत धाम प्रस्थान करें | और उसी दिन से आरम्भ हो जाता है अज्ञान रूपी महिष का वध करने वाली
महिषासुरमर्दिनी की उपासना का कार्यक्रम | क्योंकि वह
देवी ही समस्त प्राणियों में चेतन आत्मा कहलाती है और वही सम्पूर्ण जगत को चैतन्य
रूप से व्याप्त करके स्थित है | इस प्रकार अज्ञान का नाश
होना अर्थात जीव का पुनर्जन्म – आत्मा का शुद्धीकरण – ताकि आत्मा जब दूसरी देह में
प्रविष्ट हो तो सत्वशीला हो…
“या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते, नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः |
चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद्वाप्य स्थित जगत्, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||” (श्री
दुर्गा सप्तशती पञ्चम अध्याय)
किन्तु इस वर्ष आश्विन में
अधिक मास होने के कारण महालया और नवरात्र के घट स्थापना में एक माह का अन्तराल पड़ा
है | इससे पूर्व सन 2001 में भी ऐसा ही
हुआ था जब आश्विन माह में अधिक मास हुआ था और नवरात्र श्राद्ध पक्ष की समाप्ति के
एक माह पश्चात आरम्भ हुए थे | अस्तु, सर्वप्रथम तो,
माँ भगवती सभी का कल्याण करें और सभी की मनोकामनाएँ पूर्ण करें, इस
आशय के साथ सभी को शारदीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ...
वास्तव
में लौकिक दृष्टि से यदि देखा जाए तो हर माँ शक्तिस्वरूपा माँ भगवती का ही
प्रतिनिधित्व करती है - जो अपनी सन्तान को जन्म देती है, उसका भली भाँति पालन पोषण करती है और किसी भी विपत्ति का सामना करके उसे
परास्त करने के लिए सन्तान को भावनात्मक और शारीरिक बल प्रदान करती है, उसे शिक्षा दीक्षा प्रदान करके परिवार – समाज और देश की सेवा के योग्य
बनाती है – और इस सबके साथ ही किसी भी विपत्ति से उसकी रक्षा भी करती है | इस
प्रकार सृष्टि में जो भी जीवन है वह सब माँ भगवती की कृपा के बिना सम्भव ही नहीं |
इस प्रकार भारत जैसे देश में जहाँ नारी को भोग्या नहीं वरन एक सम्माननीय व्यक्तित्व
माना जाता है वहाँ नवरात्रों में भगवती की उपासना के रूप में उन्हीं आदर्शों को
पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जाता है |
इसी
क्रम में यदि आरोग्य की दृष्टि से देखें तो दोनों ही नवरात्र ऋतु परिवर्तन के समय
आते हैं | चैत्र नवरात्र में सर्दी को विदा करके गर्मी का आगमन हो रहा होता है और
शारदीय नवरात्रों में गर्मी को विदा करके सर्दी के स्वागत की तैयारी की जाती है |
वातावरण के इस परिवर्तन का प्रभाव मानव शरीर और मन पर पड़ना स्वाभाविक ही है | अतः
हमारे पूर्वजों ने व्रत उपवास आदि के द्वारा शरीर और मन को संयमित करने की सलाह दी
ताकि हमारे शरीर आने वाले मौसम के अभ्यस्त हो जाएँ और ऋतु परिवर्तन से सम्बन्धित
रोगों से उनका बचाव हो सके तथा हमारे मन सकारात्मक विचारों से प्रफुल्लित रह सकें
|
आध्यात्मिक
दृष्टि से नवरात्र के दौरान किये जाने वाले व्रत उपवास आदि प्रतीक है समस्त गुणों
पर विजय प्राप्त करके मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होने के | माना जाता है कि
नवरात्रों के प्रथम तीन दिन मनुष्य अपने भीतर के तमस से मुक्ति पाने का प्रयास
करता है, उसके बाद के तीन दिन मानव मात्र का प्रयास होता है अपने भीतर
के रजस से मुक्ति प्राप्त करने का और अन्तिम तीन दिन पूर्ण रूप से सत्व के प्रति
समर्पित होते हैं ताकि मन के पूर्ण रूप से शुद्ध हो जाने पर हम अपनी अन्तरात्मा से
साक्षात्कार का प्रयास करें – क्योंकि वास्तविक मुक्ति तो वही है |
इस प्रक्रिया में प्रथम तीन दिन दुर्गा के रूप में माँ
भगवती के शक्ति रूप को जागृत करने का प्रयास किया जाता है ताकि हमारे भीतर बहुत
गहराई तक बैठे हुए तमस अथवा नकारात्मकता को नष्ट किया जा सके | उसके बाद के तीन
दिनों में देवी की लक्ष्मी के रूप में उपासना की जाती है कि वे हमारे भीतर के
भौतिक रजस को नष्ट करके जीवन के आदर्श रूपी धन को हमें प्रदान करें जिससे कि हम
अपने मन को पवित्र करके उसका उदात्त विचारों एक साथ पोषण कर सकें | और जब हमारा मन
पूर्ण रूप से तम और रज से मुक्त हो जाता है तो अन्तिम तीन दिन माता सरस्वती का
आह्वाहन किया जाता है कि वे हमारे मनों को ज्ञान के उच्चतम प्रकाश से आलोकित करें
ताकि हम अपने वास्तविक स्वरूप – अपनी अन्तरात्मा – से साक्षात्कार कर सकें |
नवरात्रों में माँ भगवती की उपासना के समय हम सभी का यही
प्रयास रहे इसी कामना के साथ प्रस्तुत है इस वर्ष
के नवरात्रों की तिथियों की तालिका... प्रथम नवरात्र को सूर्य और
चन्द्र चित्रा नक्षत्र पर भ्रमण करते हुए बहुत अच्छा योग बना रहे हैं...
शनिवार 17 अक्तूबर –
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा – प्रथम नवरात्र और घट
स्थापना मुहूर्त प्रातः 6:23 से 10:12 तक / अभिजित मुहूर्त 11:43 से 12:29 तक / देवी के शैलपुत्री रूप की उपासना / चन्द्र दर्शन – प्रतिपदा तिथि का आरम्भ 16 अक्तूबर को अर्द्धरात्र्योत्तर एक बजे (17 अक्तूबर
को सूर्योदय से लगभग साढ़े पाँच घंटे पूर्व) से हो जाएगा,
लेकिन घट स्थापना सूर्योदय के बाद ही होगी | किन्स्तुघ्न करण, विषकुम्भ योग | इसी दिन महाराजा अग्रसेन जयन्ती भी है तथा तुला
संक्रान्ति – अर्थात सूर्य का तुला राशि में संक्रमण – भी है | प्रातः सात बजकर छह
मिनट के लगभग भगवान भास्कर तुला राशि में प्रस्थान कर जाएँगे | आदित्यदेव इस समय
चित्रा नक्षत्र पर चल रहे हैं |
रविवार 18 सितम्बर – आश्विन शुक्ल द्वितीया – द्वितीय नवरात्र – देवी के ब्रह्मचारिणी रूप की
उपासना |
सोमवार 19 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल तृतीया – तृतीय नवरात्र – देवी के चन्द्रघंटा रूप की
उपासना / चित्रांगदा देवी की उपासना |
मंगलवार 20 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल चतुर्थी – चतुर्थ नवरात्र – देवी के कूष्माण्डा रूप की
उपासना / उपांग ललिता व्रत – ललिता पञ्चमी |
बुधवार 21 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल पञ्चमी – पञ्चम नवरात्र - देवी के स्कन्दमाता रूप की
उपासना |
गुरुवार 22 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल षष्ठी – षष्ठं नवरात्र – देवी के कात्यायनी रूप की
उपासना / सरस्वती आवाहन |
शुक्रवार 23 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल सप्तमी – सप्तम नवरात्र – देवी के कालरात्रि रूप की
उपासना / महालक्ष्मी पूजन / सरस्वती पूजन | सूर्य का स्वाति नक्षत्र पर संक्रमण अर्द्धरात्रि
में साढ़े बारह बजे के लगभग |
शनिवार 24 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल अष्टमी – अष्टम / नवम नवरात्र – महाष्टमी - देवी के
महागौरी रूप की उपासना / 23 अक्तूबर को 6:57 पर – अर्थात सूर्योदय के बाद -
अष्टमी तिथि आरम्भ होगी तथा 24 अक्तूबर को प्रातः 6:58
पर समाप्त होगी और उसके बाद नवमी तिथि आ जाएगी जो 25 अक्तूबर को प्रातः 7:41 तक रहेगी | इस प्रकार अष्टमी
और नवमी दोनों के उपवास 24 अक्तूबर को ही होंगे तथा इसी दिन
देवी के सिद्धिदात्री रूप की भी उपासना की जाएगी | सरस्वती बलिदान |
रविवार 25 अक्तूबर – आश्विन शुक्ल दशमी – दशम नवरात्र – देवी के अपराजिता रूप की उपासना /
सरस्वती विसर्जन / विजया दशमी मुहूर्त दिन में 2:17 से 3:3 तक |
माँ भगवती सभी का कल्याण करें यही
कामना है...