छठा
नवरात्र – देवी के कात्यायनी रूप की उपासना
विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपेषु
वाद्येषु वाक्येषु च का त्वदन्या |
ममत्वगर्तेSतिमहान्धकारे,
विभ्रामत्येतदतीव विश्वम् ||
कल षष्ठी तिथि
– छठा नवरात्र – समर्पित है कात्यायनी देवी की उपासना के निमित्त | देवी के इस रूप
में भी इनके चार हाथ माने जाते हैं और माना जाता है कि इस रूप में भी ये शेर पर
सवार हैं | इनके तीन हाथों में तलवार, ढाल और कमलपुष्प हैं तथा स्कन्दमाता की ही
भाँति एक हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में दिखाई देता है | इनके चार हाथों को चतुर्विध
पुरुषार्थ के रूप में भी देखा जाता है और इसीलिए ऐसा माना जाता है कि इनकी उपासना
से चारों पुरुषार्थ – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष – की सिद्धि होती है |
यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक में सर्प्रथम उनका उल्लेख
उपलब्ध होता है | देवासुर संग्राम में देवताओं का कार्य सिद्ध
करने के लिये – महिषासुर जैसे दानवों का संहार करने के लिए - देवी कत ऋषि के पुत्र
महर्षि कात्यायन के आश्रम पर प्रकट हुईं और महर्षि ने उन्हें अपनी पुत्री के रूप
में स्वीकार किया | इसीलिये “कात्यायनी” नाम से उनकी प्रसिद्धि हुई | इस प्रकार
देवी का यह रूप पुत्री रूप है | यह रूप निश्छल पवित्र प्रेम का प्रतीक है | किन्तु साथ ही
यदि कहीं कुछ भी अनुचित होता दिखाई देगा तो ये कभी भी भयंकर क्रोध में भी आ सकती
हैं | स्कन्द
पुराण में उल्लेख है कि वे परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थीं और बाद
में पार्वती द्वारा प्रदत्त सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया था | पाणिनि पर
पतंजलि के भाष्य में इन्हें शक्ति का आदि रूप बताया गया है | देवी भागवत और
मार्कण्डेय पुराणों में इनका माहात्म्य विस्तार से उपलब्ध होता है |
“एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रय भूषितं,
पातु नः सर्वभीतेभ्यः कात्यायनी नमोSस्तु ते |” मन्त्र के जाप द्वारा देवी कात्यायनी की उपासना की जाती है
| इसके अतिरिक्त "चन्द्रहासोज्वलकरा
शार्दूलवरवाहना | कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ||” मन्त्र के द्वारा भी इनकी उपासना की जाती
है | ऐसा भी माना जाता है कि जिन कन्याओं के विवाह में बाधा आती
है वे यदि “ॐ कात्यायिनी महामाये,
सर्वयोगिन्यधीश्वरी | नन्दगोपसुतं देवी पतिं में कुरु, ते
नमः ||” मन्त्र से
कात्यायनी देवी की उपासना करें तो उन्हें उत्तम वर की प्राप्ति होती है | इसके
अतिरिक्त “ऐं क्लीं श्रीं त्रिनेत्रायै नमः” माँ कात्यायनी का यह बीज
मन्त्र है और इनकी उपासना के लिए इस बीज मन्त्र का जाप भी किया जा सकता है |
नवार्ण मन्त्र के द्वारा भी कात्यायनी देवी की उपासना की जाती है |
जो Astrologer दुर्गा के नौ रूपों को नवग्रहों से सम्बद्ध मानते हैं
उनकी मान्यता है कि भगवती का यह रूप बृहस्पति का तथा व्यक्ति के Horoscope में नवम
और द्वादश भाव का प्रतिनिधित्व करता है | देवगुरु बृहस्पति को सौभाग्य कारक तथा
विद्या, ज्ञान-विज्ञान और धार्मिक आस्थाओं का कारक भी माना जाता है | नवम भाव धर्म
तथा सौभाग्य का भाव तथा द्वादश भाव मोक्ष तथा व्यय आदि का भाव भी माना जाता है |
अतः नवम और द्वादश भावों से सम्बन्धित दोष दूर करने के लिए तथा बृहस्पति को
प्रसन्न करने के लिए कात्यायनी देवी की पूजा अर्चना का सुझाव ज्योतिषी देते हैं |
कात्यायनी देवी के रूप में माँ भगवती
सभी की रक्षा करें और सभी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करें...
मूल मंत्र
चन्द्रहासोज्वलकरा शार्दूलवरवाहना |
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ||
ध्यान
वन्दे वांछितमनोरथार्थ चन्द्रार्घकृतशेखराम्
|
सिंहारूढ़ा चतुर्भुजा
कात्यायनी यशस्वनीम् ||
स्वर्णाज्ञाचक्रस्थितां षष्टाम्
दुर्गां त्रिनेत्राम् |
वराभीतकरां षगपदधरां
कात्यायनसुतां भजामि ||
पट्टाम्बरपरिधानां स्मेरमुखी
नानालंकार भूषिताम् |
मंजीरहारकेयूरकिंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्
||
प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कांतकपोला
तुंगकुचाम् |
कमनीयां लावण्यां
त्रिवलीविभूषितनिम्ननाभिम ||
स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा
मुकटोज्जवलाम् |
स्मेरमुखीं शिवपत्नी
कात्यायनेसुते नमोSस्तुते ||
पट्टाम्बरपरिधानां
नानालंकारभूषिताम् |
सिंहस्थितां पदमहस्तां
कात्यायनसुते नमोSस्तुते ||
परमानन्दमयी देवि परब्रह्म
परमात्मा |
परमशक्ति परमभक्ति कात्यायनसुते नमोSस्तुते ||