शिव षडाक्षर स्तोत्रम्
कल फाल्गुन शुक्ल एकादशी थी – जिसे आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है | क्योंकि इस दिन आमलकी अर्थात आँवले के वृक्ष की पूजा अर्चना की जाती है इसलिए इसे आमलकी एकादशी कहते हैं | साथ ही इसी दिन से होली का रंगोत्सव भी आरम्भ हो जाता है, अतः इस एकादशी को रंग की एकादशी या रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है |
आज प्रदोष के व्रत का पालन किया जाएगा – मंगलवार है इसलिए आज का प्रदोष भौम प्रदोष है | एकादशी को सामान्य रूप से भगवान विष्णु की उपासना का दिन माना जाता है और प्रदोष को भगवान शंकर की उपासना की जाती है | देखा जाए तो दोनों एक ही परम सत्य के दो रूप हैं | देवाधिदेव भगवान शंकर और भगवान विष्णु दोनों को नमन के साथ सभी को कल से आरम्भ हो चुके होलिकोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ…
ॐ शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम् |
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ||
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् |
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितन्नमामि ||
“ॐ नमः शिवाय” यह मन्त्र स्वयं में कितना पूर्ण है यह जानने के लिए प्रस्तुत है शिवषडाक्षर (ॐ न मः शि वा य) स्तोत्र :-
ॐकार बिन्दुसंयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः |
कामदं मोक्षदं चैव “ॐकाराय” नमो नमः ||
सभी योगियों के हृदयचक्र में जो ॐकार के रूप में विद्यमान हैं, योगीजन निरन्तर जिसका ध्यान करते हैं और जो समस्त प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने के साथ साथ मोक्ष के पथ पर भी अग्रसर करते हैं ऐसे उस परम तत्व को नमस्कार है – जिसे “ॐकार” के नाम से जाना जाता है | ॐकार संयुक्त वर्ण नहीं है अपितु स्वर, स्पर्श और ऊष्म वर्णों को अभिव्यक्त करने वाला पूर्ण बीजमन्त्र है – और इसी के बिन्दु अर्थात नाद पर – स्वर पर ध्यानावस्थित होकर ही परमात्मतत्व का ज्ञान किया जा सकता है ऐसी योगियों की मान्यता है | ॐ-कार के इसी महत्त्व के कारण ॐ-कार को योगीजन नमन करते हैं |
नमन्ति ऋषयो देवा नमन्ति अप्सरसां गणा: |
नरा नमन्ति देवेशं “नकाराय” नमो नमः ||
“न” अर्थात न-कार उस देवाधिदेव का प्रतिनिधित्व करता है जिसको समस्त ऋषिगण, समस्त देवता, समस्त अप्सराएँ और गण, तथा सभी मनुष्य अर्थात नर नमन करते हैं – अतः उस “न-कार” को हमारा नमस्कार है |
महादेवं महात्मानं महाध्यानपरायणम् |
महापापहरं देवं “मकाराय” नमो नमः ||
महादेव, परमात्मतत्व, नित्य अखण्ड ध्यान में लीन, समस्त पापों को हरने वाले देव का प्रतिनिधित्व “म” अर्थात म-कार करता है, अतः इस “म-कार” के प्रति हम श्रद्धानत हैं |
शिवं शान्तं जगन्नाथं लोकानुग्रहकारकम् |
शिवमेकपदं नित्यं “शिकाराय” नमो नमः ||
“शि” अर्थात शि-कार शिव अर्थात कल्याण, शान्तप्रकृति, समस्त चराचर के स्वामी, समस्त लोकों पर उपकार करने वाले, परमपद सत्य सनातन नित्य शिव का प्रतिनिधित्व करता है, अतः उस “शि-कार” के लिए हम नमन करते हैं |
वाहनं वृषभो यस्य वासुकिः कण्ठभूषणम् |
वामे शक्तिधरं देवं “वकाराय” नमो नमः ||
जिनका वाहन वृषभ है, जिनके कण्ठ का आभूषण है वासुकी, जिनके वामांग में स्वयं शक्ति विराजमान हैं – ऐसे देव का द्योतक है वर्ण “व” अर्थात व-कार, अतः “व-कार” के लिए हमारा नमस्कार |
यत्र तत्र स्थितो देवः सर्वव्यापी महेश्वरः |
यो गुरु: सर्वदेवानां “यकाराय” नमो नमः ||
महेश्वर सर्वत्र स्थित हैं – सर्वव्यापी हैं तथा समस्त देवों के गुरु हैं, और “य” वर्ण अर्थात य-कार इन्हीं महादेव का द्योतक है – अतः “य-कार” के लिए भी हमारा नमस्कार |
षडाक्षरमिदं स्तोत्रं यः पठेच्छिवसन्निधौ |
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ||
भगवान शिव के सान्निध्य में बैठकर अर्थात भगवान शिव को अपने अन्तस् में विराजमान कर जो इस षडाक्षर स्तोत्र का पाठ करता है वह शिवलोक को प्राप्त करके शिव के साथ विचरण करता है अर्थात कल्याण को प्राप्त होता है |
इति श्री रुद्रयामले उमामहेश्वरसम्वादे शिवषडक्षर स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ||