ॐ नमः शिवाय
शंकराचार्येण विरचितं शिवाष्टक स्तोत्रम्
सभी को महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ…
भगवान् शिव की महिमा का गान करने के
लिए बहुत से स्तोत्र उपलब्ध होते हैं, जैसे शिवाष्टकं, लिंगाष्टकं,
रुद्राष्टकं, बिल्वाष्टकम् इत्यादि इत्यादि… शिवरात्रि के पावन पर्व पर प्रस्तुत
है इन्हीं में से एक – जिसका पाठ बहुत से लोग करते होंगे - शिवाष्टकं – जिसके
रचयिता हैं आदि शंकराचार्य…
तस्मै नम: परमकारणकारणाय, दीप्तोज्ज्वलज्ज्वलित
पिङ्गललोचनाय |
नागेन्द्रहारकृतकुण्डलभूषणाय, ब्रह्मेन्द्रविष्णुवरदाय
नम: शिवाय ||
जो समस्त कारणों के भी कारण हैं, दीप्त ज्योति के समान उज्जवल पिंगल नेत्र जिनके हैं, जो सर्प के हार और कुण्डलादि से विभूषित हैं तथा जो ब्रह्मा, इन्द्र और विष्णु को भी वर देने में समर्थ हैं ऐसे भगवान शिव
को हम नमन करते हैं |
श्रीमत्प्रसन्नशशिपन्नगभूषणाय, शैलेन्द्रजावदनचुम्बितलोचनाय
|
कैलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय, लोकत्रयार्तिहरणाय
नम: शिवाय ||
निर्मल चन्द्रमा तथा सर्प ही जिनके
आभूषण है, शैलेन्द्रजा (हिमसुता) पार्वती जिनके नेत्रों का चुम्बन करती हैं,
कैलाश और महेन्द्र पर्वत जिनका आवास हैं ऐसे भगवान शिव को हम नमन करते हैं |
पद्मावदातमणिकुण्डलगोवृषाय,
कृष्णागरुप्रचुरचन्दनचर्चिताय |
भस्मानुषक्तविकचोत्पलमल्लिकाय, नीलाब्जकण्ठसदृशाय
नम: शिवाय ||
स्वच्छ पद्मरागमणि के कुण्डलों से
किरणों की वर्षा करने वाले , अगरु
और बहुत से चन्दन से चर्चित भस्म एवं प्रफुल्लित कमल और जुही से सुशोभित नीलकमल सदृश कण्ठ वाले
भगवान शँकर को मेरा नमस्कार है ।
लम्बत्सपिङ्गल
जटा मुकुटोत्कटाय, दंष्ट्राकरालविकटोत्कटभैरवाय |
व्याघ्राजिनाम्बरधराय
मनोहराय, त्रिलोकनाथनमिताय नम: शिवाय ||
पिंगल वर्ण की लम्बी लटकती जटाएँ और
मुकुट जो धारण करते हैं, तीक्ष्ण दाँतों के कारण जो विकट प्रतीत
होते हैं, व्याघ्राजिन जिन्होंने धारण किया हुआ
है, इतने पर भी जो मनोहर हैं ऐसे त्रिलोकी
के नाथ भगवान शिव को हम नमन करते हैं |
दक्षप्रजापतिमहाखनाशनाय, क्षिप्रं
महात्रिपुरदानवघातनाय |
ब्रह्मोर्जितोर्ध्वगक्रोटिनिकृंतनाय, योगाय
योगनमिताय नम: शिवाय ||
दक्षप्रजापति के महायज्ञ का जिन्होंने विध्वंस
किया, जिन्होंने त्रिपुरासुर का वध किया, ब्रह्मा के दर्पयुक्त ऊर्ध्व मुख को जिन्होंने काट दिया (प्राणीमात्र
के दर्प को नष्ट करने वाले), योग स्वरूप तथा योग से नमित भगवान शिव को हम नमन करते
हैं |
संसारसृष्टिघटनापरिवर्तनाय, रक्ष:
पिशाचगणसिद्धसमाकुलाय |
सिद्धोरगग्रहगणेन्द्रनिषेविताय, शार्दूलचर्मवसनाय
नम: शिवाय ||
प्रत्येक कल्प में संसार की संरचना को
परिवर्तित करने की क्षमता रखने वाले, राक्षस, पिशाच, सर्प, सिद्ध गणों तथा इन्द्रादि से सेवित, व्याघ्रचर्म को धारण करने वाले भगवान शिव को हम नमन करते हैं
|
भस्माङ्गरागकृतरूपमनोहराय, सौम्यावदातवनमाश्रितमाश्रिताय
|
गौरीकटाक्षनयनार्धनिरीक्षणाय, गोक्षीरधारधवलाय
नम: शिवाय ||
भस्मरूपी अंगराग धारण करने वाले, मनोहर रूप वाले, अत्यन्त शान्त तथा
सुन्दर वनों के आश्रितों के आश्रित, माता पार्वती को कटाक्ष से निहारने
वाले तथा गौदुग्ध के समान धवल भगवान शिव को हम नमन करते हैं |
आदित्य सोम वरुणानिलसेविताय, यज्ञाग्निहोत्रवरधूमनिकेतनाय
|
ऋक्सामवेदमुनिभि:
स्तुतिसंयुताय, गोपाय गोपनमिताय नम: शिवाय ||
सूर्य, चन्द्र, वरुण, पवन जिनकी सेवा करते हैं, यज्ञ तथा अग्निहोत्र के धूम में जो निवास करते हैं, ऋक्सामादि वेद तथा समस्त मुनिजन जिनकी संस्तुति करते हैं, गौओं के जो पालनकर्ता हैं ऐसे भगवान शिव को हम नमन करते हैं |
शिवाष्टकमिदं पुण्यं य:
पठेच्छिवसन्निधौ |
शिवलोकमवाप्नोति
शिवेन सह मोदते ||
आदि गुरु शंकराचार्य जी कहते हैं कि इस
शिवाष्टक स्तोत्र का भगवान् शंकर का अपने मन में ध्यान करते हुए (शिव सन्निधौ) जो
व्यक्ति पठन करता है शिव को प्राप्त करते हुए (शिव की भक्ति को प्राप्त करते हुए)
शिवलोक (कल्याण) को प्राप्त होता है |
इसी शिवाष्टक स्तोत्र के साथ
सभी को एक बार पुनः महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ…
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