Venus
शुक्र
आज बात करते हैं समस्स्त प्रकार की भौतिक सुख सुविधाओं, कलाओं, शिल्प, सौन्दर्य, बौद्धिकता, राजनीति , समाज में मान प्रतिष्ठा, प्रेम और रोमांस इत्यादि के कारण दैत्याचार्य शुक्र की | शुक्र का अर्थ होता है श्वेत, उज्जवल | दैत्य गुरु शुक्राचार्य का प्रतिनिधित्व करता है यह ग्रह | श्रीमद्देवीभागवत के अनुसार शुक्र कवि नामक एक ऋषि के वंशजों की अथर्वण शाखा के भार्गव ऋषि थे | कुछ कुछ स्त्रियों जैसे कोमल स्वभाव वाले आचार्य शुक्र ब्राह्मण ग्रह हैं | कथा उपलब्ध होती है कि ये अंगिरस ऋषि के पास विद्याध्ययन के लिए गए, किन्तु अंगिरस ऋषि अपने पुत्र बृहस्पति का पक्ष लेते थे, जो निश्चित रूप से शुक्र को नहीं भाता था | अतः वहाँ से वे गौतम ऋषि के पास चले गए | बाद में उन्होंने भगवान् शंकर की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और उनसे संजीवनी मन्त्र की शिक्षा ली | यह विद्या मृत व्यक्ति को भी जीवन देने में सक्षम थी | देवयानी इन्हीं की पुत्री थीं | इसी बीच इनकी माता का वध कर दिया गया क्योंकि उन्होंने कुछ दैत्यों को शरण दी थी | इस घटना से उन्हें विष्णु से घृणा हो गई और उन्होंने दैत्यों का गुरु बनना स्वीकार कर लिया | इधर इनकी पुत्री देवयानी का विवाह प्रस्ताव बृहस्पति के पुत्र कच ने ठुकरा दिया | महाभारत के अनुसार तब उसका विवाह ययाति के साथ हुआ जिनसे कुरु वंश उत्पन्न हुआ और शुक्राचार्य ने भीष्म का गुरु बनकर उन्हें राजनीति का ज्ञान कराया |
कुछ अन्य मतान्तर और रूपान्तर भी इस कथा में हैं, किन्तु यहाँ हम ज्योतिष के आधार पर शुक्र की बात कर रहे हैं | वैदिक ज्योतिष के अनुसार शुक्र धन सम्पत्ति का लाभ कराने वाला ग्रह माना जाता है | कला, शिल्प, सौन्दर्य, बौद्धिकता, राजनीति तथा समाज में मान प्रतिष्ठा में वृद्धि कराने वाला ग्रह शुक्र को माना जाता है | जितनी भी प्रकार की विलासिता के साधन हैं उन सबका यह कारक ग्रह माना जाता है, तथा स्त्री पुरुष सम्बन्धों, प्रेम, रोमांस और प्रजनन का भी सम्बन्ध शुक्र के साथ माना जाता है | भरणी, पूर्वा फाल्गुनी तथा पूर्वाषाढ़ नक्षत्रों और वृषभ तथा तुला राशियों का स्वामित्व इसे प्राप्त है | मीन राशि में यह उच्च का तथा कन्या राशि में नीच का हो जाता है | बुध और शनि के साथ इसकी मित्रता है, सूर्य और चन्द्र के साथ शत्रुता है, तथा बृहस्पति के साथ यह तटस्थ भाव से रहता है | जल तत्व वाला यह ग्रह ज्येष्ठ मास तथा वसन्त ऋतु और दक्षिण-पूर्व दिशा का स्वामी है | इसकी दशा सबसे अधिक समय – बीस वर्षों तक – रहती है तथा लगभग एक माह यह एक राशि में संचार करता है, किन्तु वक्री, अस्त अथवा अतिचारी होने पर इस अवधि में कुछ दिनों का अन्तर भी हो सकता है |
शुक्र को बलि बनाने अथवा इसके दुष्प्रभाव को कम करने के लिए Vedic Astrologer कुछ मन्त्रों के जाप का सुझाव देते हैं | प्रस्तुत हैं उन्हीं में से कुछ मन्त्र…
वैदिक मन्त्र : ॐ अन्नात्परिश्रुतो रसं ब्रह्म्न्नाव्य पिबत् क्षत्रम्पयः सोमम्प्रजापति | ऋतेन सत्यमिन्द्रिय्वीपानं गुं शुक्रमन्धस्य इन्द्रस्य इन्द्रियम इदं पयोSमृतं मधु ||
पौराणिक मन्त्र : ॐ हिमकुन्द मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुं | सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ||
अथवा – दैत्यानां गुरु तद्वद्श्वेतवर्णः चतुर्भुजः | दण्डी च वरदः कार्यः साक्षसूत्रकमण्डलु: ||
तन्त्रोक्त मन्त्र : ॐ शुं शुक्राय नमः
बीज मन्त्र : ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नमः
गायत्री मन्त्र : ॐ भृगुसुताय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो शुक्र: प्रचोदयात
अथवा – ॐ भृगुवंशजाताय विद्महे श्वेतवाहनाय धीमहि तन्नो कवि: प्रचोदयात्
अथवा – ॐ शुक्राय विद्महे शुक्लाम्बरधरः धीमहि तन्नो शुक्र: प्रचोदयात
शुक्र सभी के सुख सौभाग्य में वृद्धि करे तथा सबका जीवन प्रेममय करे…
Venus
शुक्र
आज बात करते हैं समस्स्त प्रकार की भौतिक सुख सुविधाओं, कलाओं, शिल्प, सौन्दर्य, बौद्धिकता, राजनीति, समाज में मान प्रतिष्ठा, प्रेम और रोमांस इत्यादि के कारण दैत्याचार्य शुक्र की | शुक्र का अर्थ होता है श्वेत, उज्जवल | दैत्य गुरु शुक्राचार्य का प्रतिनिधित्व करता है यह ग्रह | श्रीमद्देवीभागवत के अनुसार शुक्र कवि नामक एक ऋषि के वंशजों की अथर्वण शाखा के भार्गव ऋषि थे | कुछ कुछ स्त्रियों जैसे कोमल स्वभाव वाले आचार्य शुक्र ब्राह्मण ग्रह हैं | कथा उपलब्ध होती है कि ये अंगिरस ऋषि के पास विद्याध्ययन के लिए गए, किन्तु अंगिरस ऋषि अपने पुत्र बृहस्पति का पक्ष लेते थे, जो निश्चित रूप से शुक्र को नहीं भाता था | अतः वहाँ से वे गौतम ऋषि के पास चले गए | बाद में उन्होंने भगवान् शंकर की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और उनसे संजीवनी मन्त्र की शिक्षा ली | यह विद्या मृत व्यक्ति को भी जीवन देने में सक्षम थी | देवयानी इन्हीं की पुत्री थीं | इसी बीच इनकी माता का वध कर दिया गया क्योंकि उन्होंने कुछ दैत्यों को शरण दी थी | इस घटना से उन्हें विष्णु से घृणा हो गई और उन्होंने दैत्यों का गुरु बनना स्वीकार कर लिया | इधर इनकी पुत्री देवयानी का विवाह प्रस्ताव बृहस्पति के पुत्र कच ने ठुकरा दिया | महाभारत के अनुसार तब उसका विवाह ययाति के साथ हुआ जिनसे कुरु वंश उत्पन्न हुआ और शुक्राचार्य ने भीष्म का गुरु बनकर उन्हें राजनीति का ज्ञान कराया |
कुछ अन्य मतान्तर और रूपान्तर भी इस कथा में हैं, किन्तु यहाँ हम ज्योतिष के आधार पर शुक्र की बात कर रहे हैं | वैदिक ज्योतिष के अनुसार शुक्र धन सम्पत्ति का लाभ कराने वाला ग्रह माना जाता है | कला, शिल्प, सौन्दर्य, बौद्धिकता, राजनीति तथा समाज में मान प्रतिष्ठा में वृद्धि कराने वाला ग्रह शुक्र को माना जाता है | जितनी भी प्रकार की विलासिता के साधन हैं उन सबका यह कारक ग्रह माना जाता है, तथा स्त्री पुरुष सम्बन्धों, प्रेम, रोमांस और प्रजनन का भी सम्बन्ध शुक्र के साथ माना जाता है | भरणी, पूर्वा फाल्गुनी तथा पूर्वाषाढ़ नक्षत्रों और वृषभ तथा तुला राशियों का स्वामित्व इसे प्राप्त है | मीन राशि में यह उच्च का तथा कन्या राशि में नीच का हो जाता है | बुध और शनि के साथ इसकी मित्रता है, सूर्य और चन्द्र के साथ शत्रुता है, तथा बृहस्पति के साथ यह तटस्थ भाव से रहता है | जल तत्व वाला यह ग्रह ज्येष्ठ मास तथा वसन्त ऋतु और दक्षिण-पूर्व दिशा का स्वामी है | इसकी दशा सबसे अधिक समय – बीस वर्षों तक – रहती है तथा लगभग एक माह यह एक राशि में संचार करता है, किन्तु वक्री, अस्त अथवा अतिचारी होने पर इस अवधि में कुछ दिनों का अन्तर भी हो सकता है |
शुक्र को बलि बनाने अथवा इसके दुष्प्रभाव को कम करने के लिए Vedic Astrologer कुछ मन्त्रों के जाप का सुझाव देते हैं | प्रस्तुत हैं उन्हीं में से कुछ मन्त्र…
वैदिक मन्त्र : ॐ अन्नात्परिश्रुतो रसं ब्रह्म्न्नाव्य पिबत् क्षत्रम्पयः सोमम्प्रजापति | ऋतेन सत्यमिन्द्रिय्वीपानं गुं शुक्रमन्धस्य इन्द्रस्य इन्द्रियम इदं पयोSमृतं मधु ||
पौराणिक मन्त्र : ॐ हिमकुन्द मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुं | सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ||
अथवा – दैत्यानां गुरु तद्वद्श्वेतवर्णः चतुर्भुजः | दण्डी च वरदः कार्यः साक्षसूत्रकमण्डलु: ||
तन्त्रोक्त मन्त्र : ॐ शुं शुक्राय नमः
बीज मन्त्र : ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नमः
गायत्री मन्त्र : ॐ भृगुसुताय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो शुक्र: प्रचोदयात
अथवा – ॐ भृगुवंशजाताय विद्महे श्वेतवाहनाय धीमहि तन्नो कवि: प्रचोदयात्
अथवा – ॐ शुक्राय विद्महे शुक्लाम्बरधरः धीमहि तन्नो शुक्र: प्रचोदयात
शुक्र सभी के सुख सौभाग्य में वृद्धि करे तथा सबका जीवन प्रेममय करे…