Sun in Astrology
ज्योतिष में सूर्य
भारतीय वैदिक ज्योतिष में सभी नौ ग्रह का अपना विशेष महत्व होता है | Vedic Astrologer और पाश्चात्य ज्योतिषी भी सभी ग्रहों की दशा / अन्तर्दशा आदि में उन ग्रहों से सम्बन्धित फलकथन सदा से करते आ रहे हैं तथा यदि कोई अशुभ दशा हो तो उसका उपाय भी बताते हैं | किन्तु ग्रहों के परिणामों के विषय में जानने से पूर्व उन ग्रहों के स्वभाव आदि के विषय में संक्षेप में जान लेना आवश्यक है | तो क्यों न ग्रहों में सबसे प्रमुख तथा समस्त चराचर का प्राण तत्व कहे जाने वाले ग्रह सूर्य से ही आरम्भ किया जाए ?
नवग्रहों में सूर्य को राजा माना जाता है तथा सप्ताह के दिन रविवार का स्वामी रवि अर्थात सूर्य को ही माना जाता है | मान्यता है कि भगवान् सूर्य सात घोड़ों के रथ पर सवार होते हैं | वास्तव में ये सात घोड़े और कोई नहीं, भगवान् भास्कर की रश्मियाँ ही हैं | वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य आत्मा का कारक ग्रह है | इसका तत्व है अग्नि, वर्ण क्षत्रिय, लाल रंग का प्रतीक, पूर्व दिशा का स्वामी तथा स्वाभाविक दाहकत्व लिए हुए एक स्वाभाविक क्रूर ग्रह माना जाता है | सिंह सूर्य की अपनी राशि है तथा मेष सूर्य की उच्च राशि मानी जाती है और तुला में यह नीच का माना जाता है | चन्द्र, मंगल और गुरु सूर्य के मित्र ग्रह, शुक्र, शनि, राहु और केतु शत्रु ग्रह तथा बुध को सूर्य का सम ग्रह माना जाता है | कृत्तिका, उत्तर फाल्गुनी और उत्तराषाढ़ नक्षत्रों का देवता सूर्य को माना जाता है | छह वर्ष की सूर्य की दशा होती है, और जैसे कि सभी जानते हैं – सूर्य एक राशि में एक माह तक भ्रमण करके आगे बढ़ जाता है |
सूर्य का शाब्दिक अर्थ है सबका प्रेरक, सबको प्रकाश देने वाला, सबका प्रवर्तक होने के कारण सबका कल्याण करने वाला | यजुर्वेद में सूर्य को “चक्षो सूर्योSजायत” कहकर सूर्य को ईश्वर का नेत्र माना गया है | ऋग्वेद में आदित्यमण्डल के मध्य में स्थित सूर्य को सबका प्रेरक, अन्तर्यामी तथा परमात्मस्वरूप माना गया है | छान्दोग्योपनिषद् में सूर्य को प्रणव माना गया है | ब्रह्मवैवर्तपुराण में सूर्य को परमात्मा कहा गया है | गायत्री मन्त्र में तो है ही भगवान् सविता की महिमा का वर्णन – सूर्य का एक नाम सविता भी है – सविता सर्वस्य प्रसविता – सबकी सृष्टि करने वाला – यही त्रिदेव के रूप में जगत की रचना, पालन तथा संहार का कारण है |
सूर्य के जन्म के विषय में कथा है कि देवताओं और राक्षसों ने देवों को युद्ध में पराजित करके उनके समस्त अधिकारों का हनन कर लिया | तब काश्यप ऋषि की पत्नी देवमाता अदिति ने इस विपत्ति को दूर करने के लिए सूर्य की उपासना की | उस उपासना से प्रसन्न होकर सूर्य ने अदिति के गर्भ से जन्म लिया और आदित्य के रूप में दानवों को परास्त किया | कुल बारह आदित्यों का वर्णन ग्रन्थों में उपलब्ध होता है | ये बारह आदित्य हैं – धाता, अर्यमा, मित्र, वरुण, इन्द्र, विवस्वान, पूषा, पर्जन्य, अंशुमान, भग, त्वष्टा और विष्णु | ये बारह आदित्य क्रम से बारह वैदिक महीनों के देवता माने जाते हैं – चैत्र मास में तपने वाला सूर्य धाता है, वैशाख का देवता अर्यमा, ज्येष्ठ का मित्र, आषाढ़ का वरुण, श्रावण का इन्द्र, भाद्रपद का विवस्वान, आषाढ़ का पूषा, कार्तिक का पर्जन्य, मार्गशीर्ष का अंशुमान, पौष का भग, माघ का त्वष्टा तथा फाल्गुन मास में तपने वाले सूर्य का नाम विष्णु है |
सूर्य को प्रसन्न करने के लिए अथवा सूर्य की शान्ति के लिए Vedic Astrologer प्रायः अर्घ्य प्रस्तुत करने तथा मन्त्र जाप का सुझाव देते हैं | उन्हीं में से कुछ मन्त्र यहाँ प्रस्तुत हैं…
वैदिक मन्त्र : ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च | हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ||
पौराणिक मन्त्र: ॐ जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्, तSमोरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोSस्मि दिवाकरम्
तन्त्रोक्त मन्त्र – ॐ घृणि: सूर्याय नम: अथवा ॐ घृणि: सूर्य आदित्य नमः ॐ
बीज मन्त्र : ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः
गायत्री मन्त्र : ॐ आदित्याय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्
उपरोक्त मन्त्रों में से किसी भी एक मन्त्र का चयन करके आपनी सामर्थ्यानुसार संख्या में प्रातःकाल सूर्य को अर्घ्य देने के साथ मन्त्र का जाप करने से भगवान् सूर्य प्रसन्न होते हैं |
“ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात…” सर्वरक्षक, प्राणस्वरूप, दु:खविनाशक, सृष्टिकर्ता, सबसे श्रेष्ठ तेजोमय देव का हम ध्यान करते हैं – वे हमारी बुद्धि को सदा उत्तम कर्मों में प्रवृत्त करें…