आज धनतेरस है – यानी देवताओं के वैद्य धन्वन्तरी की जयन्ती – धन्वन्तरी त्रयोदशी | प्राचीन काल में इस पर्व को इसी नाम से मनाते थे | कालान्तर में धन्वन्तरी का केवल “धन” शेष रह गया और इसे जोड़ दिया गया धन सम्पत्ति के साथ, स्वर्णाभूषणों के साथ | पहले केवल पीतल के बर्तन खरीदने की प्रथा थी क्योंकि वैद्य धन्वन्तरी की प्रिय धातु पीतल मानी जाती है | लेकिन आजकल तो आभूषणों की दुकानों पर आज के दिन लोग पागलों की तरह टूटे पड़ते हैं | पर क्या कभी संसार के प्रथम चिकित्सक देवताओं के वैद्य धन्वन्तरी – जिन्हें स्वयं देवता की पदवी प्राप्त हो गई थी – का भी स्मरण हम करते हैं – जिनका जन्मदिन वैदिक काल से धन्वन्तरी त्रयोदशी के नाम से मनाया जाता रहा है ?
वैद्य धन्वन्तरी एक महान चिकित्सक थे और इन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता था | समुद्र मन्थन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को इनका अवतरण हुआ था, और इनके एक दिन बाद अर्थात कार्तिक कृष्ण अमावस्या को भगवती लक्ष्मी का | इसीलिए कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धन्वन्तरी त्रयोदशी के रूप में मनाये जाने की प्रथा थी और अमावस्या को लक्ष्मी पूजा का विधान था |
माना जाता है वैद्य धन्वन्तरी ने ही अमृततुल्य औषधियों की खोज की थी | भाव प्रकाश, चरक संहिता आदि अनेक ग्रन्थों में इनके अवतरण के विषय में विवरण प्राप्त होते हैं | जिनमें थोड़े बहुत मतान्तर हो सकते हैं, लेकिन एक तथ्य पर सभी एकमत हैं – और वो यह है कि वैद्य धन्वन्तरी सभी रोगों के निवारण में निष्णात थे | उन्होंने भारद्वाज ऋषि से आयुर्वेद ग्रहण करके उसे अष्टांग में विभाजित करके अपने शिष्यों में बाँट दिया था | काशी नगरी के संस्थापक काशीराज की चतुर्थ पीढ़ी में आने वाले वैद्य धन्वन्तरी को पौराणिक काल में वही महत्त्व प्राप्त था जो वैदिक काल में अश्विनी कुमारों को था |
देवताओं के वैद्य तथा आयुर्वेद के जनक वैद्य धन्वन्तरी को श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए सभी को धन्वन्तरी त्रयोदशी – धनतेरस – की हार्दिक शुभकामनाएँ… इस आशा के साथ कि सभी स्वस्थ और सुखी रहें…