बिना पतवार ओ माँझी
उम्र की नैया चलती जाए... भव सागर की लहरों में हिचकोले खाती उम्र की नैया निरन्तर
आगे बढ़ती जाती है... अपना गन्तव्य पर पहुँच कर ही रहती है... कितनी तूफ़ान आएँ...
पर ये बढ़ती ही जाती है... कुछ इसी तरह के उलझे सुलझे से विचार आज की इस रचना में
हैं... सुनने के लिए कृपया वीडियो देखें... कात्यायनी...