वंशी की वह मधुर ध्वनि
सुना था मैंने, ईश्वर है हर जगह |
सोचा मैंने “क्यों नहीं सुन पाती उसका मधुर गान ?”
उत्तर मिला अपने भीतर से ही
“क्योंकि हमेशा करती हूँ प्रयास
सुनने का उस मधुर गान को |”
और प्रयास ले जाते हैं दूर लक्ष्य से |
अपने इस प्रयास में
सुनती हूँ मैं ध्वनियाँ
ध्वनियाँ, परिचित और अपरिचित
ध्वनियाँ, डालती हुई व्यवधान मेरी एकाग्रता में
ध्वनियाँ, देती हुई चुनौतियाँ मेरे ध्यान को
ध्वनियाँ, करती हुई मुझे आकर्षित
ध्वनियाँ, संगीतमय, कोलाहलमय
तब एक दिन पहुँच गई अपने भीतर
हो गई लीन
अपने मन के सागर की लहरों की
मधुर स्वरलहरियों में |
और हो गई ध्वनिहीन, मौन
समाप्त हो गया मेरा सारा प्रयास
सुनने को ईश्वर का वह मधुर गान
और तब सुनाई दी
वंशी की वह मधुर ध्वनि
जो थी निराकार, शाश्वत, चिरन्तन…
आज स्मार्तों का श्री कृष्ण जन्म महोत्सव है... सभी को श्री कृष्ण जन्म महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ...
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