माँ वर दे
सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रंकाल्यै नमो नमः
वेदवेदान्तवेदांगविद्यास्थानेभ्यः एव च |
सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोSस्तु ते ||
माँ सरस्वती विद्या की – ज्ञान और विज्ञान की –
समस्त कलाओं की अधिष्ठात्री देवी हैं | और जब व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त होता है तब वह
अज्ञान के अन्धकार से मुक्त हो जाता है... किसी प्रकार का भय अथवा सन्देह उसके मन
में नहीं रहता... उसी प्रकार जिस प्रकार समय का भान कराती सूर्य की रश्मियाँ जब संसार
में उजाला प्रसारित कर देती हैं तब बाहर का समस्त अन्धकार दूर होकर सारा दृश्य
हमारे समक्ष प्रत्यक्ष हो जाता है |
जब व्यक्ति का विज्ञान से परिचय हो जाता है तब
उसके समक्ष समस्त रहस्य उजागर होने लगते हैं और उसे सुझाई देने लगता है अपने
गन्तव्य तक पहुँचने का मार्ग |
जब व्यक्ति का कला से परिचय होता है तब उसके
समक्ष उपस्थित होने लगते हैं सारे रंग प्रकृति के... मानवीय भावनाओं के...
संवेदनाओं के... आवेगों के...
और ज्ञान – विज्ञान तथा कलाओं से जब व्यक्ति
परिचित हो जाता है तब उसके पास छिपाने के लिए कुछ शेष नहीं रह जाता... जो कुछ होता
है सब प्रत्यक्ष होता है... और वह अपने ज्ञान विज्ञान से जगत को प्रकाशित करता हुआ
तथा अपनी कलाओं के माध्यम से समस्त जड़ चेतन में मधुर प्रेम का रस घोलता हुआ अपने
गन्तव्य की ओर बढ़ता चला जाता है... उसी प्रकार जिस प्रकार दिन के उजाले का पास
छिपाने के लिए कुछ भी नहीं होता... जो होता है वो है जगत को कर्मरत बनाए रखने के
लिए चारों ओर फैलता उजियाला...
आज वसन्त पञ्चमी को हम ज्ञान विज्ञान और कलाओं की
दात्री माँ वाणी का वन्दन करते हैं... इस कामना के साथ कि हमें समस्त प्रकार के
अज्ञान, भयों
सन्देहों,
कुरीतियों तथा दुर्भावों आदि से मोक्ष प्राप्त हो... क्योंकि वास्तविक ज्ञान वही
है जो व्यक्ति को समस्त प्रकार के अज्ञान, भयों सन्देहों, कुरीतियों तथा दुर्भावों आदि से मुक्ति
दिलाकर शारीरिक,
बौद्धिक, सामाजिक, भौतिक तथा
आध्यात्मिक विकास के पथ पर अग्रसर करे... सा विद्या या विमुक्तये... (विष्णुपुराण
1/19/41) वास्तविक ज्ञान वही है जो मोक्ष का मार्ग दिखाए...
प्रिय मित्रों, वसन्त की ऋतु में जब कामदेव अपने धनुष पर
पुष्पों के बाण चढ़ा लेटे हैं और समूची प्रकृति वासन्ती परिधान किये और अनेकों रंग
बिरंगे पुष्पों से स्वयं का श्रृंगार करके मानों अपने प्रियतम को रिझाने का उपक्रम
कर रही होती है... वहीं ये रुत समर्पित होती है माँ वाणी की पूजा अर्चना के लिए...
माँ वाणी, जो अधिष्ठात्री देवी हैं विद्या
की – ज्ञान और विज्ञान की – समस्त कलाओं की... प्रस्तुत है उन्हीं ज्ञान विज्ञान
की दात्री माँ वाणी की अर्चना में समर्पित कुछ शब्द-पुष्प...
माँ वर दे वर दे / सरस्वती वर दे…
वीणा पर वह भैरव गा दे, जो सोए उर स्वतः जगा दे |
सप्त स्वरों के सप्त सिन्धु में सुधा सरस
भर दे |
माँ वर दे वर दे / सरस्वती वर दे…
गूँज उठें गायन से दिशि दिशि, नाच उठें नभ के तारा शशि |
पग पग में नूतन नर्तन की चंचल गति भर दे |
माँ वर दे वर दे / सरस्वती वर दे…
तार तार उर के हों झंकृत, प्राण प्राण प्रति हों स्पन्दित |
नव विभाव अनुभाव संचरित नव नव रस कर दे |
माँ वर दे वर दे / सरस्वती वर दे…
वीणा पुस्तक रंजित हस्ते, भगवति भारति देवि नमस्ते |
मुद मंगल की जननि मातु हे, मुद मंगल कर दे |
माँ वर दे वर दे / सरस्वती वर दे…
____________कात्यायनी डॉ पूर्णिमा शर्मा