चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद्व्याप्य स्थिता जगत् ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
ॐ सर्वविजयेश्वरी विद्महे शक्तिः धीमहि अपराजितायै प्रचोदयात
कल अर्थात आश्विन शुक्ल नवमी तक समस्त हिन्दू समाज माँ भगवती के नौ रूपों – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी सिद्धिदात्री की उपासना में व्यस्त था | आज विजया दशमी का पर्व है | सर्वप्रथम सभी को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ – अपराजिता देवी हम सभी के भीतर की बुराइयों को नष्ट करके उन पर अच्छाइयों को विजयी बनाएँ यही एक मात्र भाव विजयादशमी का है |
विजया दशमी धार्मिक पर्व होने के साथ साथ एक प्रकार का लोकोत्सव भी है | हिन्दू घरों में अपराजिता देवी की पूजा के बाद बहनें अपने भाइयों के कानों मैं नौरते रखती हैं | प्राचीन काल में यात्रा पर जाते समय अथवा किसी युद्ध पर जाते समय अपराजिता देवी की पूजा का विधान था | विजया दशमी के दिन भद्रा रहित काल में रावणदहन की लीला भी आयोजित की जाती है | भगवान राम ने नारद मुनि के कहने पर आश्विन शुक्ल पक्ष के नवरात्रों में अपने भाई लक्षमण के साथ नौ दिनों तक देवी के नौ रूपों की पूजा अर्चना करने के उपरान्त दशमी तिथि को अपने अनुष्ठान का समापन अपराजिता देवी की पूजा के साथ किया था और उसके पश्चात युद्ध के लिए प्रस्थान किया था तथा युद्ध में दुष्ट रावण का वध करके विजय प्राप्त की थी | यही कारण है कि विजया दशमी को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है |
लेकिन इस पर्व का विशेष महत्त्व अपराजिता देवी की उपासना के कारण है | जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है – यह रूप देवी का ऐसा रूप है जो अपराजिता है – अर्थात् जिसकी कभी पराजय न हो सके – जो सदा विजयी रहे – जिसे कभी जीता न जा सके | इसीलिए नौ दिनों तक देवी के विविध रूपों की पूजा अर्चना करने के बाद विजयादशमी यानी दशम् नवरात्र को अपराजिता देवी की पूजा अर्चना के साथ नवरात्रों का पारायण होता है | वास्तव में अपराजिता माँ भगवती का ऐसा रूप है जिसमें उनके समस्त रूप और उनके गुण समाहित हैं और इस प्रकार यह रूप समन्वयन का प्रतिनिधित्व करता है | जीवन में सब प्रकार के संघर्षों पर विजय प्राप्त करने हेतु देवी अपराजिता की पूजा की जाती है | मान्यता है कि देवी अपराजिता अधर्म का आचरण करने वालों का विनाश करके धर्म की रक्षा करती हैं | यही कारण है कि इस दिन शस्त्र पूजा का भी विधान है |
देवी अपराजिता सिंह पर सवार मानी जाती हैं और इनके अनेक हाथों में अनेक प्रकार के अस्त्र होते हैं जो इस तथ्य का अनुमोदन करते हैं कि किसी प्रकार की भी बुरी शक्तियाँ, किसी प्रकार का भी अनाचार, किसी प्रकार का भी अ ज्ञान का माँ अपराजिता नाश करने में सक्षम हैं | यद्यपि अपराजिता देवी की अर्चना से सम्बन्धित विधि विधान विस्तार में तो तन्त्र ग्रन्थों में उपलब्ध होते है – जो निश्चित रूप से देवी के उग्र भाव की उपासना की विधि है | लेकिन देवी के स्नेहशील रूप की उपासना के मन्त्र देवी पुराण और दुर्गा सप्तशती में उपलब्ध होते हैं जिनमें अपराजिता देवी के स्नेहशील मातृ रूप को भली भाँति दर्शाया गया है |
ऐसा भी माना जाता ही कि देवी अपराजिता शमी वृक्ष में निवास करती हैं और इसीलिए कुछ स्थानों पर लोग विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष की पूजा भी करते है |
अपने इस रूप में देवी समस्त प्रकार की नकारात्मकता और कठिनाइयों का विनाश करती हैं क्योंकि यही मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु हैं |
व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो यह पर्व शक्ति और शक्तिमान के समन्वय का पर्व है । नवरात्रि के नौ दिन जगदम्बा की उपासना करके शक्तिशाली बना हुआ मनुष्य प्रत्येक क्षेत्र में विजय प्राप्ति के लिए तत्पर रहता है | नवदुर्गा के सम्मिलित स्वरूप अपराजिता देवी की कृपा से उसके मार्ग के समस्त कंटक दूर हो जाते हैं और उसके प्रत्येक प्रयास में उसे सफलता प्राप्त होती है । इसीलिए क्षत्रिय अपने अस्त्रों की पूजा करते हैं, अध्ययन अध्यापन में लगे लोग अपनी शास्त्रों की पूजा करते हैं, कलाकार अपने वाद्ययन्त्रों की पूजा करते हैं – यानी हर कोई अपने अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्ति की कामना से माँ अपराजिता देवी की पूजा अर्चना करने के साथ ही अपने उपयोग में आने वाली वस्तुओं की भी पूजा अर्चना करते हैं |
आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये ।
स कालो विजयो ज्ञेयः सर्वकार्यार्थसिद्धये ||
मम क्षेमारोग्यादिसिद्ध्यर्थं यात्रायां विजयसिद्ध्यर्थं |
गणपतिमातृकामार्गदेवतापराजिताशमीपूजनानि करिष्ये ।|
ज्योतिष के अनुसार माता अपराजिता के पूजन का समय अपराह्न अर्थात दोपहर के तत्काल बाद का है | अत: अपराह्न से संध्या काल तक कभी भी माता अपराजिता की पूजा कर यात्रा प्रारम्भ की जा सकती है | यात्रा निर्विघ्न सम्पन्न हो इसके लिए यात्रा प्रारम्भ करते समय निम्न स्तुति के साथ अपराजिता देवी की उपासना करनी चाहिए:
शृणुध्वं मुनय: सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम् ।
असिद्धसाधिनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम् ।।
नीलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणोज्ज्वलाम् ।
बालेन्दुमौलिसदृशीं नयनत्रितयान्विताम् ।।
पीनोत्तुङ्गस्तनीं साध्वीं बद्धद्मासनां शिवाम् ।
अजितां चिन्येद्देवीं वैष्णवीमपराजिताम् ।।
अपराजिता देवी प्रत्येक व्यक्ति के मन में प्राणी मात्र के प्रति समता की – दया और करुणा की – एकता की – भावना का विकास करते हुए हम सबके जीवन में ऊर्जा का संचार करती हुई सभी को जीवन के हर क्षेत्र में विजय दिलाती हुई समस्त प्रकार की नकारात्मकता और अज्ञान रूपी शत्रुओं का नाश करें, इसी कामना के साथ सभी को विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ…