हम सभी उतने ही समर्थ हैं जितनी ये प्रकृति | जिस प्रकार प्रकृति बिना कोई प्रतिदान माँगे निरन्तर अपने स्नेह का दान करती रहती है – दुलराती रहती है समस्त चराचर को – उसी प्रकार हम सबमें भी इतनी सामर्थ्य है कि हम प्रतिदान की अभिलाषा किये बिना स्नेह का दान करते रहें... भरण पोषण करने की सामर्थ्य हमने इस प्रकृति से ही तो प्राप्त की है... हम अपने जीवन का निर्माण अपनी भावनाओं – अपनी सोच और अपनी सामर्थ्य के अनुसार करने की सामर्थ्य रखते हैं और ये रचनाधर्मिता भी हमें इस रचनाधर्मी प्रकृति से ही प्राप्त हुई है... और ऐसा इसलिए कि हम सभी इस प्रकृति का ही तो एक अभिन्न अंग हैं... जिस दिन हम प्रकृति द्वारा प्राप्त अपनी इन समस्त क्षमताओं को “वास्तव में” पहचान जाएँगे उस दिन हम प्रकृति को किसी भी प्रकार की क्षति पहुँचाना बन्द कर देंगे और उसका सम्मान करना सीख जाएँगे – और यही सबसे बड़ा सदुपयोग होगा हमारी क्षमताओं का... सभी का आज का दिन सार्थक और मंगलमय हो...