जीवन की भाग दौड़ में उलझा मन... न जाने कितने उतारों चढ़ावों से थकित मन कभी
न कभी ऐसी कामना अवश्य करता है कि कोई उसका अपना उसे मीठी तान सुनाकर ऐसी नींद
सुला दे कि थकित मन को कुछ पलों के लिए विश्राम प्राप्त हो जाए... कुछ ऐसे ही उलझे
सुलझे से भाव हैं हमारी आज की रचना में... जिसका शीर्षक है “आकर तनिक मुझको सुलाओ”...
कात्यायनी...
थक चुकी हूँ मैं बहुत, आकर तनिक मुझको सुलाओ |
कोई मीठी तान तुम गाकर तनिक मुझको सुनाओ ||
कल सकल जग में अनोखा प्रात फिर आ जाएगा
कोई प्यारा स्वप्न पल में फिर कहीं खो जाएगा |
टूट ना जाए अनोखा स्वप्न, मुझको ना जगाओ
कोई मीठी तान तुम गाकर तनिक मुझको सुनाओ ||
सूर्य कर देगा उजाला निज करों से जब जगत में
व्यक्त कर पाऊँगी कैसे भाव उर के मुक्त स्वर में |
कह सकूँ मैं बात मन की, तनिक यह दीपक बढ़ाओ
कोई मीठी तान तुम गाकर तनिक मुझको सुनाओ ||
है अँधेरा बहुत, लेकिन राग का दीपक जला है
और मेरा थकित मन इस राग में अब खो चला है |
है मुझे स्वीकार सम्मोहन, न अब वापस बुलाओ
कोई मीठी तान तुम गाकर तनिक मुझको सुनाओ ||
काल के हर बाण का आघात सहना है कठिन
साँस की लड़ियों का इसमें जुड़के रहना है कठिन |
साथ छूटे ना तनिक, यों मन के तारों को मिलाओ
कोई मीठी तान तुम गाकर तनिक मुझको सुनाओ ||