करवाचौथ व्रत
हम
सभी परिचित हैं कि भारत के उत्तरी और पश्चिमी अंचलों में कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को
करवाचौथ व्रत अथवा करक चतुर्थी के रूप में
मनाया जाता है | इस वर्ष बुधवार चार नवम्बर को पति की दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य
की कामना से महिलाएँ करवाचौथ के व्रत का पालन करेंगी | करवाचौथ के
व्रत का पारायण उस समय किया जाता है जब चन्द्रदर्शन के समय चतुर्थी तिथि रहे |
इसीलिए यदि प्रातःकाल से चतुर्थी तिथि नहीं भी हो तो प्रायः तृतीया में व्रत रखकर
तृतीया-चतुर्थी के सन्धिकाल – प्रदोष काल - में पूजा अर्चना का विधान है | कुछ
स्थानों पर निशीथ काल – मध्य रात्रि – में भी करवा चौथ की पूजा अर्चना की जाती है
| इस अवसर पर अन्य देवी देवताओं के साथ शिव परिवार की पूजा अर्चना की जाती है | इस
वर्ष चार नवम्बर को दिन में 3:25 के लगभग चतुर्थी
तिथि का आगमन होगा जो पाँच नवम्बर को सूर्योदय से पूर्व 5:14
तक रहेगी | इसलिए चार नवम्बर को करवाचौथ का व्रत पालन किया जाएगा |
कुछ
परिवारों में सरगी लेने की प्रथा है – जो सूर्योदय से पूर्व ली जाती है | इसलिए
प्रातः 5:14 तक ही सरगी भी ले ली जाएगी | सरगी की प्रथा आरम्भ
होने का सबसे बड़ा कारण यही है कि पहले छोटी आयु की बच्चियों के विवाह हो जाया करते
थे | ऐसे में परिवार के लोगों को लगता था कि सारा दिन इतनी छोटी बच्ची के लिए भूखा
प्यासा रहना कठिन होगा – जिस कारण से एक ऐसा नियम ही बना दिया गया कि बच्चियाँ
सूर्योदय से पूर्व कुछ हल्का भोजन जैसे फल इत्यादि ग्रहण कर लें ताकि सारा दिन
उन्हें इस भोजन का पोषण उपलब्ध होता रहे | आज की भाँति अन्न से बने किसी खाद्य
पदार्थ का भोजन नहीं किया जाता था क्योंकि ऐसा भोजन इस समय करना स्वास्थ्य के लिए
हानिकारक होता है | भारत के विभिन्न भागों में चार नवम्बर को रात्रि 7:58 से 8:50 के मध्य चन्द्रमा का उदय होने की सम्भावना |
दिल्ली और उत्तराखण्ड तथा इनके आस पास के क्षेत्रों में आठ बजकर बारह मिनट से आठ
बजकर सोलह मिनट के लगभग चन्द्रोदय हो सकता है |
ऐसी
मान्यता है कि सती ने अपने पति शिव के अपमान का बदला लेने के लिए अपने पिता दक्ष
के यज्ञ का विध्वंस करने हेतु उनके यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया था | उसके
बाद वे महाराज हिमालय की पुत्री के रूप में उनकी पत्नी मैना के गर्भ से पार्वती के
रूप में उत्पन्न हुईं | उस समय भगवान शंकर को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए बहुत
से अन्य उपवासों के साथ इस व्रत का भी पालन किया था | अतः यह व्रत और इसकी पूजा
शिव-पार्वती को समर्पित होती है |
करवाचौथ
एक आँचलिक पर्व है और उन अंचलों में इसके सम्बन्ध में बहुत सी कथाएँ प्रचलित हैं, व्रत के दौरान जिनका श्रवण सौभाग्यवती महिलाएँ करती हैं | उन सबमें महाभारत
की एक कथा हमें विशेष रूप से आकर्षित करती है | इसके अनुसार अर्जुन शक्तिशाली
अस्त्र प्राप्त करने के उद्देश्य से पर्वतों में तपस्या करने चले गए और बहुत समय
तक वापस नहीं लौटे | द्रौपदी इस बात से बहुत चिन्तित थीं | तब भगवान कृष्ण ने
उन्हें पार्वती के व्रत की कथा सुनाकर कार्तिक कृष्ण चतुर्थी का व्रत करने की सलाह
दी थी |
करवाचौथ का पालन उत्तर भारत में प्रायः सभी विवाहित हिन्दू महिलाएँ चिर
सौभाग्य की कामना से करती हैं और जिसमें पार्वती तथा गणेश की पूजा का विधान है | इस
व्रत को पार्वती की तपस्या का प्रतीक भी माना जाता है | कुछ स्थानों पर उन लड़कियों
से भी यह व्रत कराया जाता है जो विवाह योग्य होती हैं अथवा जिनका विवाह तय हो चुका
है | यह व्रत पारिवारिक परम्पराओं तथा स्थानीय रीति रिवाज़ के अनुसार किया जाता है |
व्रत की कहानियाँ भी अलग अलग हैं | लेकिन कहानी कोई भी हो, एक बात हर कहानी में समान
है कि बहन को व्रत में भूखा प्यासा देख भाइयों ने नकली चाँद दिखाकर बहन को व्रत का
पारायण करा दिया, जिसके फलस्वरूप उसके पति के साथ अशुभ घटना घट गई |
कथा एक लोक कथा ही है | किन्तु इस लोक कथा में इस विशेष दुर्घटना का
चित्र खींचकर एक बात पर विशेष रूप से बल दिया गया है कि जिस दिन व्यक्ति नियम संयम
और धैर्य का पालन करना छोड़ देगा उसी दिन से उसके कार्यों में बाधा पड़नी आरम्भ हो
जाएगी | नियमों का धैर्य के साथ पालन करते हुए यदि कार्यरत रहे तो समय अनुकूल बना
रह सकता है |
हम सभी नियम संयम की डोर को मज़बूती से थामे हुए सोच विचार कर हर कार्य करते हुए आगे बढ़ते रहें, इसी कामना के साथ सभी महिलाओं को करवाचौथ की अग्रिम रूप से हार्दिक शुभकामनाएँ...