पुरुषोत्तम
मास अथवा अधिक मास
आज पितृपक्ष की पञ्चमी तिथि है | 17 सितम्बर को पितृविसर्जनी अमावस्या
है | हर वर्ष महालया से दूसरे दिन यानी आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शारदीय नवरात्र
आरम्भ हो जाते हैं | किन्तु इस वर्ष ऐसा नहीं हो रहा है | इस वर्ष आश्विन मास में
मल मास यानी अधिक मास हो रहा है | अर्थात 18 सितम्बर से अधिक
मास आरम्भ हो रहा है जो 16 अक्तूबर को समाप्त होगा और शुद्ध
आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा यानी 17 अक्तूबर से माँ दुर्गा
की पूजा अर्चना का नव-दिवसीय पर्व नवरात्र आरम्भ होगा | 17 सितम्बर
को सायं 4:30 बजे के लगभग प्रतिपदा तिथि का आरम्भ होगा जो 18
सितम्बर को बारह बजकर पचास मिनट तक रहेगी | इस समय सूर्योदय छह बजकर
सात मिनट पर होने के कारण 18 सितम्बर से ही मल मास अथवा अधिक
मास का आरम्भ माना जाएगा |
प्रायः यह जिज्ञासा बनी रहती है कि ये अधिक मास क्या है | इसे सीधे
सरल भाव में इस प्रकार समझा जा सकता है कि जिस प्रकार अंग्रेजी वर्ष में हर चार वर्ष
में Leap Year हो जाता है और फरवरी 29 दिन की हो जाती है, उसी प्रकार हिन्दी में पूरा एक मास ही अधिक मास हो जाता है | इस वर्ष मलमास
के आरम्भ में गुरुदेव, शनि, बुध और मंगल अपनी अपनी राशियों यानी धनु, मकर, कन्या तथा
मेष में रहेंगे और आदित्यदेव तथा चन्द्रदेव भी कन्या राशि में होंगे | भगवान
भास्कर अमावस्या की समाप्ति पर नाग करण और तथा द्वितीय आश्विन प्रतिपदा के आरम्भ
में किन्स्तुघ्न करण में रहेंगे |
कुछ लोग मल मास यानी अधिक मास के
सन्दर्भ में कुछ अन्य प्रकार के वैज्ञानिक तथ्य भी प्रस्तुत करते हैं, जिनमें प्रमुख है कि
उनका मानना है कि सूर्य जब धनु या मीन राशि में आता है तब मल मास या खर मास कहलाता
है | तो इस प्रकार तो हर वर्ष मल मास होना चाहिए क्योंकि इन दोनों ही राशियों में
सूर्य का गोचर हर वर्ष होता है | साथ ही सिंहस्थ बृहस्पति को भी मल मास का कारण
बताया है | लेकिन समस्या ये है कि बृहस्पति एक वर्ष तक एक ही राशि में भ्रमण करता
है तो इस प्रकार से हर बारहवें वर्ष मल मास आना चाहिए | लेकिन ऐसा भी नहीं है |
जहाँ तक वैदिक ज्योतिषीय गणना का प्रश्न है तो उसके आधार पर मल मास या अधिक मास
वाला वर्ष हिन्दी महीनों का Leap Year कहा जा सकता है, जो चन्द्रमा की घटती बढ़ती कलाओं के कारण चन्द्रमा और सूर्य की दूरी में
सामंजस्य स्थापित करता है | उस समय सूर्य शकुनि, चतुष्पद,
नाग या किन्स्तुघ्न करणों में से किसी में होता है और ये चारों ही करण निम्न वर्ग
के माने जाते हैं इसलिए सम्भवतः अधिक मास को मल अथवा खर यानी दुष्ट मास कहने की
प्रथा रही होगी |
भारतीय धर्मशास्त्रों तथा
श्रीमद्भागवत और देवी भागवत महापुराण आदि अनेक पुराणों के अनुसार प्रत्येक तीसरे
वर्ष वैदिक महीनों में एक महीना अधिक हो जाता है जिसे अधिक मास, मल मास, खर मास अथवा
पुरुषोत्तम मास कहा जाता है | यह महीना क्योंकि बारह महीनों
के अतिरिक्त होता है इसलिए इसका कोई नाम भी नहीं है |
पुराणों के अनुसार अधिक मास को भगवान् विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होने के कारण इस
माह को पुरुषोत्तम मास कहा जाता है | अधिक मास के विषय में हमारे
विद्वान् पण्डितों की मान्यता है कि इस अवधि में कोई भी धार्मिक अनुष्ठान यदि किया
जाए तो वह कई गुणा अधिक फल देता है | साथ ही इस अवधि में
मांगलिक कार्य जैसे विवाह, नूतन गृह प्रवेश आदि वर्जित माने
जाते हैं | किन्तु विद्वज्जनों से क्षमाप्रार्थना सहित हमारा
व्यक्तिगत रूप से ऐसा मानना है कि पुराणों में कहा गया है कि श्राद्ध पक्ष में
हमारे पितृगण प्रसन्न होकर हमें आशीर्वाद देते हैं और अधिक मास में शुभ फलों का
आधिक्य होना चाहिए | तो इन दोनों ही अवधियों में किसी भी शुभकार्य की वर्जना नहीं
होनी चाहिए | परिवार में कोई शुभ कार्य सम्पन्न होगा तो हमारे दिवंगत पूर्वज हमें
आशीर्वाद ही देंगे, हमारा अहित नहीं करेंगे | इसी प्रकार जब
अधिक मास स्वयं भगवान विष्णु के लिए समर्पित है तो वह अशुभ कैसे हो सकता है ? इस
वर्ष तो अधिक मास का आरम्भ भी उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र और शुक्ल योग में हो रहा है
जो बहुत शुभ माना जाता है |
किन्तु यह अधिक मास होता किसलिए है ? यदि 30-31 दिनों का
एक माह होता है तो फिर 364-365 दिनों के एक वर्ष में ये एक मास अधिक कैसे हो जाता
है ?
यह
सौर वर्ष और चान्द्र वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए एक गणितीय प्रक्रिया
है | सौर वर्ष का मान लगभग 365-366 दिन (365 दिन, 15 घड़ी, 22 पल और 57 विपल) माना जाता है | जबकि चान्द्र वर्ष का मान लगभग 354-355 दिन (354 दिन, 22 घड़ी, एक पल और 23 विपल माना गया है | इस प्रकार प्रत्येक वर्ष में तिथियों का क्षय होते होते लगभग दस से
ग्यारह दिन का अन्तर पड़ जाता है जो तीन वर्षों में तीस दिन का होकर पूरा एक माह बन
जाता है | इस प्रकार प्रत्येक तीसरे वर्ष चान्द्र वर्ष बारह
माह के स्थान पर तेरह मास का हो जाता है | यह प्रक्रिया भारतीय वैदिक ज्योतिष का एक विशिष्ट अंग है | किन्तु असम, बंगाल, केरल और तमिलनाडु में अधिक मास नहीं होता क्योंकि वहाँ सौर वर्ष माना
जाता है |
यस्मिन् चन्द्रे न संक्रान्ति: सो
अधिमासो निगह्यते
यस्मिन् मासे द्विसंक्रान्ति: क्षय:
मास: स कथ्यते
अर्थात इसको इस प्रकार भी समझ सकते
हैं कि जब दो अमावस्या के मध्य अर्थात पूरे एक माह में सूर्य की कोई संक्रान्ति
नहीं आती तो वह मास अधिक मास कहलाता है | इसी प्रकार यदि एक चान्द्रमास के मध्य दो सूर्य
संक्रान्ति आ जाएँ तो वह क्षय मास हो जाता है – क्योंकि इसमें चान्द्रमास की अवधि
घट जाती है | क्षय मास केवल कार्तिक,
मार्गशीर्ष तथा पौष मास में होता है | और अधिक सरलता से इसे
इस प्रकार समझा जा सकता है कि सूर्य का कन्या राशि में संक्रमण आश्विन कृष्ण
चतुर्दशी यानी 16 सितम्बर को रात्रि साथ बजकर आठ मिनट के
लगभग होगा | उसके कुछ देर बाद रात्रि 7:57 के लगभग अमावस्या
तिथि लगेगी | उसके बाद 16 अक्तूबर को अमावस्या होगी लेकिन इस
मध्य सूर्य कन्या राशि में ही रहेगा | शुद्ध आश्विन शुक्ल प्रतिपदा अर्थात 17
अक्तूबर को यानी अमावस्या समाप्त होने के बाद भगवान भास्कर प्रातः
सात बजकर पाँच मिनट के लगभग तुला राशि में प्रस्थान करेंगे | इस प्रकार दो
अमावस्या के मध्य में सूर्य की कोई भी संक्रान्ति नहीं है |
जैसा कि ऊपर लिखा, अधिक
मास को स्वयं भगवान् विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त है इसीलिए इस पुरुषोत्तम मास में
भगवान् विष्णु की पूजा अर्चना का विधान है | किन्तु सबसे
उत्तम ईश सेवा मानव सेवा होती है – मानव सेवा माधव सेवा... हम सभी प्राणियों तथा
समस्त प्रकृति के साथ समभाव और सेवाभाव रखते हुए आगे बढ़ते रहें, पुरुषोत्तम मास में इससे अच्छी ईशोपासना हमारे विचार से और कुछ नहीं हो
सकती...
डॉ पूर्णिमा शर्मा